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फिर क्या हुआ पापा, क्या सौरव कुमार ने सी एम साहिब से बात की। क्या हरपाल सिंह को उसके किये की सज़ा मिली। क्या न्याय सेना को सफलता मिली। बताईये न पापा, बताईये न……… दस साल के बालक हनी ने सवालों की झड़ी लगा थी अपने पापा की ओर।
इस सारे घटनाक्रम के लगभग चौदह वर्ष बाद। चंडीगढ़ से एक गाड़ी जालंधर की ओर लगभग तीन घंटे से भागी जा रही थी। गाड़ी को ड्राईवर चला रहा था। ड्राईवर के साथ वाली सीट पर लगभग 34 वर्ष की एक महिला बैठी थी। पिछली सीट पर बैठा बालक हनी बार बार अपने पापा को सवाल पूछता जा रहा था और उसके पापा उसके साथ वाली सीट पर बैठे मुस्कुरा रहे थे।
हनी बेटा, बिहेव योरसेल्फ। सामने वाली सीट पर बैठी महिला ने पीछे मुड़ते हुये हनी को डांटने वाले अंदाज़ में कहा।
अरे करने दो इसे ज़िद, चंद्रिका। इसे ये कहानी सुनाने के लिये ही मैने तुमसे अगली सीट पर बैठने की रिक्वेस्ट की थी और खुद पीछे बैठा हूं। कार में राजकुमार की आवाज़ गूंज उठी।
राजकुमार अब लगभग चालीस वर्ष का हो चुका था। चेहरा एक दम क्लीन शेवन और चेहरे की तरह ही सिर भी एकदम क्लीन शेवन। शरीर अब पहले से भी मजबूत लग रहा था, जैसे नियमित रूप से कसरत करता हो।
तो सुनाईये न फिर पापा, आगे क्या हुआ। मुझे आपकी और प्रधान अंकल की ये कहानी पूरी सुननी है। हनी एक बार फिर ज़िद पर उतर आया था।
जरूर सुनाऊंगा पूरी कहानी बेटा, पर अब बाकी की कहानी घर आने के बाद। वो देखो हम जालंधर में प्रवेश कर चुके हैं। प्रधान अंकल का घर अब कुछ ही समय में आने वाला है। पुन्नु भईया से मिलना है न तुझे। राजकुमार ने हनी को बहलाने वाले ढंग में कहा।
हां पापा, पुन्नु भईया बहुत अच्छे हैं। मुझे बहुत सारे चाकलेट और बहुत सी चीज़ें लेकर देते हैं। हनी के इतना कहते ही राजकुमार की मन में पुन्नु के बचपन का वो रूप आ गया जो ‘भईया चाकलेट, भईया चाकलेट’ करता हुआ उसके पीछे भागता था। कितनी तेज़ निकल जाता है समय, राजकुमार ये सोच कर मुस्कुरा रहा था।
आप ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हैं, पापा। हनी की आवाज़ से राजकुमार की सोच टूटी।
कुछ नहीं बेटा, बस यूं ही। अच्छा अब ज़रा ये बताओ कि जब हम प्रधान जी के घर जायेंगे तो प्रधान जी पापा को देखकर क्या कहेंगे। राजकुमार ने बात का विषय बदलते हुये कहा।
ओ मेरा पुत्तर आ गया, ओ मेरा राजकुमार आ गया। हनी ने बिल्कुल प्रधान जी की नकल करते हुये कहा।
हनी, बैड मैनर्स बेटा, बड़ों की नकल नहीं उतारते। एक बार फिर चंद्रिका ने टोक दिया था हनी को।
उतारने दो इसे नकल अपने प्रधान अंकल की, चंद्रिका। बड़े लोगों की ही तो नकल उतारी जाती है। इसीलिये तो दुनिया कामयाब लोगों की ही नकल उतारती है, हर ऐरे गेरे की नहीं। राजकुमार ने चंद्रिका की ओर देखते हुये कहा।
आप और आपकी फिलासफी, दोनो मेरी समझ से बाहर हैं। बिगाड़ो अपने बेटे को, मुझे क्या। हंसती हुयी चंद्रिका फिर से आगे की ओर मुंह करके बैठ गयी।
हां तो बेटा, प्रधान जी जब तुझे देखेंगे, तो क्या कहेंगे। राजकुमार ने मज़ा लेते हुये हनी से पूछा।
ओ मेरा छोटा राजकुमार, ओ मेरा छोटा युवराज। हनी ने एक बार फिर से प्रधान जी की हुबहु नकल उतारी तो इस बार चंद्रिका और गाड़ी ड्राइव कर रहा रुबी भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सका।
देखा कितना प्यार करता है ये अपने प्रधान अंकल से, चंद्रिका। उनके एक एक अंदाज़ को हुबहु कापी करता है ये। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।
हां पापा, प्रधान अंकल तो मेरे फेवरेट हैं। हनी एकदम जोश में आकर बोला।
एक तो मुझे आप दोनों का रिशता नहीं समझ आया आज तक। प्रधान जी आपको पुत्तर कहते हैं, आप उन्हें बड़ा भाई मानते हैं, उनके बच्चे आपको भईया कहते हैं, उनकी पत्नी को आप भाभी कहते हैं और अब ये हनी उन्हें अंकल कहता है। मैं किसको क्या कहूं, इसी में उलझ कर रह जाती हूं।
ये प्यार के रिश्ते हैं चंद्रिका। कौन किसको क्या कहता है, ये मत देखो। इन सारे रिश्तों के पीछे छिपा प्यार देखो। प्यार से बड़ा कुछ नहीं है इस संसार में। राजकुमार ने चंद्रिका को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।
लो फिर शुरु हो गयी आपकी फिलासफी। मुस्कुराती हुई चंद्रिका ने एक बार फिर मुंह आगे की ओर कर लिया। गाड़ी जांलधर शहर के अंदर घुसती चली जा रही थी।
हिमांशु शंगारी