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दूसरे दिन सुबह ठीक दस बजे राजकुमार प्रधान जी के घर पहुंचा तो प्रधान जी नाश्ता कर रहे थे। बच्चे स्कूल जा चुके थे और उनकी पत्नी रानी भी उनके पास ही बैठी हुयी थी।
चरण स्पर्श करता हूं भाभी जी। राजकुमार ने रानी के पैरों को हाथ लगाते हुये कहा।
जीते रहो राजकुमार। नाश्ता लगाऊं। रानी के स्वर में ममता सपष्ट झलक रही थी।
जी आपको तो पता ही है, मैं नाश्ता करके ही आता हूं। राजकुमार ने कहा।
हमेशा नाश्ता करके ही आते हो। कभी यहां भी कर लिया करो। रानी ने प्यार भरे स्वर में शिकायत की।
ये क्या बात कह दी आपने। चलिये आज रात का खाना यहीं खा कर जाऊंगा।
फिर तो बहुत अच्छा है क्योंकि शाम को मीना भी आ रही है। रानी ने खुश होते हुये कहा। मीना प्रधान जी की सबसे बड़ी बेटी का नाम था जो राजकुमार से एक वर्ष छोटी थी और जिसकी शादी हो चुकी थी।
अब तो ये कंजर जरूर खाना खायेगा यहां। देखो तो मीना का नाम सुनकर ही इसके चेहरे पर कैसे रौनक आ गयी है। प्रधान जी ने नाश्ता करते करते चुटकी ली। वो जानते थे कि मीना और राजकुमार के बीच सगे भाई बहन की तरह अथाह प्रेम था और एक उम्र के होने के कारण दोनों में बनती भी खूब थी।
ये क्या आप मेरे बच्चे को कंजर कहते रहते हो, समय समय पर। कोई अच्छी बात नहीं आती आपको। आपकी जबान दिन प्रतिदिन गंदी ही होती जा रही है। रानी की तोप का मुंह अपनी तरफ घूमते देखकर प्रधान जी ने चुपचाप सिर नीचे करके एक बार फिर नाश्ता करना शुरु कर दिया।
कहने दीजिये, कहने दीजिये। इनके शब्दों की गंदगी को नहीं बल्कि उनके पीछे छिपे प्यार को देखिये। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।
आखिर मैं किसी की भी तरफदारी कर लूं, तुम दोनों भाई रहोगे एक दूसरे के सगे ही। हंसती हुई रानी रसोई की ओर चल दी।
तो आज का क्या प्रोग्राम है, पुत्तर जी। प्रधान जी ने नाश्ते का आनंद लेते हुये कहा।
आज नाश्ता जरा तगड़ा कर लीजिये प्रधान जी, और गला भी अच्छे से तर कर लीजिये। आज किसी से जम कर झगड़ा करना है आपको। चटखारा लेते हुये राजकुमार ने कहा।
ओये तू कहे तो सारे जमाने से झगड़ा कर लूं, पुत्तर। पर ये तो बता आज किससे झगड़ा होने वाला है हमारा। आलू के परांठे का आनंद लेते हुये कहा प्रधान जी ने।
वो सब गाड़ी में बताऊंगा। चमन शर्मा ठीक साढ़े दस बजे एस एस पी कार्यालय पहुंच जायेगा। दस बजकर दस मिनट हो चुके हैं। जल्दी कीजिये अब।
जैसी युवराज की आज्ञा। कहते हुये प्रधान जी बचे हुये आलू के परांठे को भी जल्दी से चट करने में लग गये।
दस बजकर पैंतीस मिनट पर जब उनकी गाड़ी एस एस पी कार्यालय पहुंची तो चमन शर्मा वहीं खड़ा उनकी वेट कर रहा था। आज उसके साथ सुशील कुमार नहीं था। शायद उसे ये पता लग चुका था कि प्रधान जी अब इस केस को छोड़ने वाले नहीं है। इसीलिये उसने सुशील कुमार को तंग नहीं किया होगा।
कैसे हो चमन जी, प्रधान जी ने पास आते हुये पूछा। उनके पीछे पीछे राजकुमार के साथ साथ जग्गू और राजू भी थे। इन दोनों को उन्होने रास्ते में न्याय सेना के कार्यालय से साथ ले लिया था।
आपका आशिर्वाद है, प्रधान जी। चमन शर्मा ने प्रधान जी के चरण स्पर्श करते हुये कहा।
जीते रहो। कहते हुये प्रधान जी तेजी से एस एस पी कार्यालय के दरवाजे की ओर बढ़ गये।
राजकुमार के कार्ड देते ही संतरी प्रधान जी को अभिवादन करके अंदर चला गया और जल्दी ही वापिस आकर बोला। प्रधान जी, साहिब ने आपको अंदर बुलाया है।
आओ पुत्तर जी, चलते हैं। प्रधान जी ने अर्थ भरी दृष्टि से राजकुमार की ओर देखते हुये कहा तो दोनों की आंखों मे एक विशेष प्रकार की चमक थी, जिसे चमन शर्मा भांप नही पाया था।
हमारे एस एस पी साहिब की जय हो। प्रधान जी ने सौरव कुमार के कार्यालय में घुसते ही नारा छोड़ दिया।
कार्यालय के दैनिक कार्यों में व्यस्त सौरव कुमार ने प्रधान जी की आवाज़ सुनकर उनके और राजकुमार के अभिवादन का उत्तर देते हुये उन्हें बैठने को कहा तो सब लोग उनके सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गये। अपनी शिकायतों की सुनवायी के लिये आए हुये कुछ लोग और उनके साथ शहर के कुछ नेता और समाज सेवक भी कार्यालय में बैठे थे, जिनके अभिवादन का जवाब प्रधान जी ने अपने ही अंदाज़ में दिया।
जी, प्रधान जी। सौरव कुमार ने अपने हाथ में पकड़ी एक शिकायत पर कार्यवाही करके उसे निपटाते हुये कहा।
आप तो जानी जान हैं सर, बंदे के दिल का हाल जानते हैं। प्रधान जी ने मज़ा लिया।
मैने थाना प्रभारी से सारी रिपोर्ट मंगवा ली है प्रधान जी। मुस्कुराते हुये सौरव कुमार ने कहा।
……………………बिना कुछ कहे प्रधान जी का और राजकुमार का पूरा ध्यान सौरव कुमार पर ही केंद्रित था।
किंतु इस मामले में एक नयी पेचीदगी आ गयी है। शब्दों को बहुत संभालकर इस्तेमाल किया सौरव कुमार ने।
अब क्या पेचीदगी आ गयी, सर। प्रधान जी के स्वर में कुछ तल्खी आ गयी थी।
हरपाल सिंह ने मेरे पास एक अर्ज़ी दी है कि इस मामले में वो निर्दोष है और थाने की जांच पर उसे विश्वास नहीं है। इसलिये इस मामले की जांच किसी उच्च अधिकारी से करवायी जाये। सौरव कुमार का एक एक शब्द सधा हुआ था और उनका पूरा ध्यान प्रधान जी के चेहरे पर ही केंद्रित था, जैसे उनके चेहरे का एक एक भाव पड़ रहे हों।
तो…………………………… बात को अधूरा ही छोड़ दिया प्रधान जी ने। उनकी मुद्रा कुछ और गंभीर हो गयी थी।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि इस तरह की जांच किसी उच्च अधिकारी से करवाये जाने की मांग करना हर नागरिक का अधिकार है, हम इससे इंकार नहीं कर सकते। सौरव कुमार के शब्द तर्क से भरपूर थे।
बिल्कुल ठीक कह रहें हैं आप। कानून सबके लिये बराबर है। हमें कोई एतराज़ नहीं है इस जांच में। आप अवश्य करवाईये ये जांच। प्रधान जी की मुद्रा में गंभीरता अभी भी बनी हुयी थी।
इसीलिये मैने ये जांच एस पी सिद्दिकी साहिब को देने का फैसला किया है। सौरव कुमार के चेहरे पर प्रधान जी का जवाब सुनने के बाद संतोष के भाव थे।
अरे वाह सर, एस पी सिद्दिकी तो पुलिस के बहुत अच्छे अफसरों में से एक हैं। वे तो अवश्य ही दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। प्रधान जी के चेहरे पर तनाव कम होता जा रहा था और उसके स्थान पर खुशी आती जा रही थी।
उनके साथ बैठा राजकुमार अभी भी सौरव कुमार के तरकश से निकलने वाले किसी ऐसे तीर की प्रतीक्षा कर रहा था, जो हरपाल सिंह के पक्ष में चलाया गया हो। इतने बड़े मामले में सब कुछ इतनी आसानी से उनके पक्ष में हो जाना उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
तो फिर तय रहा। सिद्दिकी साहिब इस केस की जांच करेंगे और उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर ही पुलिस इस मामले में बनती कार्यवाही करेगी। सौरव कुमार ने जैसे जल्दी से बात खत्म करने वाले अंदाज़ में कहा।
बिल्कुल ठीक है………………………… प्रधान जी के शब्द अधूरे ही रह गये।
और कितने दिनों में हो जायेगी पूरी ये जांच, सर। राजकुमार जैसे कुछ समझ गया था।
राजकुमार की इस आवाज़ ने सौरव कुमार के चेहरे पर चिंता की लकीरें पैदा कर दीं और प्रधान जी उसकी बात का अर्थ समझते ही एक बार फिर से सतर्क हो गये।
हां सर, कितने दिनों में पूरी हो जायेगी ये जांच। प्रधान जी की स्वर में उतावलापन था।
अब ये कैसे बताया जा सकता है प्रधान जी। ये तो केवल सिद्दिकी साहिब ही बता सकते हैं। सौरव कुमार के स्वर में बेचैनी का हल्का सा मिश्रण आ गया था, जैसी बनी बनाई बात बिगड़ने की दिशा की ओर जा रही हो।
ये तो कोई बात नहीं हुयी सर। आपको इस जांच के लिये समय तो निर्धारित करना ही होगा। अगर जांच करवाना हरपाल सिंह का अधिकार है तो इस जांच के लिये समय सीमा तय करने की मांग करना हमारा अधिकार है। अगर आप उसे उसका अधिकार देना चाहते हैं, तो हमें हमारा अधिकार भी दीजिये फिर। प्रधान जी की बात में ठोस तर्क था।
तो क्या चाहते हैं आप, प्रधान जी। सौरव कुमार के चेहरे की लकीरें और गहरी हो गयीं थी, जैसे प्रधान जी के इस तर्क का कोई तोड़ नहीं था उनके पास।
अधिक से अधिक तीन दिन दिये जायें इस जांच के लिये। केवल मौके की जांच करनी है और कुछ लोगों से पूछताछ। इसके लिये तीन दिन बहुत होंगे। पहले ही इस मामले में बहुत देर हो चुकी है, सर। प्रधान जी के स्वर में शिकायत थी।
तीन दिन तो बहुत कम हैं प्रधान जी। मैं ऐसा कोई वायदा तो नहीं कर सकता पर इस जांच को जल्द से जल्द पूरी करवाने की कोशिश करूंगा। सौरव कुमार ने एक बार फिर बड़े सधे हुये स्वर में कहा।
नहीं सर, बिल्कुल नहीं। तीन दिन से अधिक एक दिन भी मंजूर नहीं हमें इस जांच के लिये। इससे अधिक समय इस जांच को देने का तो कोई तुक ही नहीं बनता। प्रधान जी के स्वर में एक निर्णायक भाव था।
पुलिस आपके तुक से नहीं चलती प्रधान जी। और भी सैंकड़ों काम रहते हैं हमारे पास। केवल एक ये जांच ही नहीं है। इस लिये मैं इस जांच के लिये समय सीमा निर्धारित नहीं कर सकता। पहली बार सौरव कुमार के स्वर में तल्खी आयी थी।
जी हां सर, पुलिस मेरे तुक से नहीं चलती। पुलिस तो पीड़ितों की शिकायतों को रद्दी की टोकरी में डालकर प्रभावशाली लोगों की गुलामी करने से चलती है। तभी तो आपकी पुलिस ने आज इतने दिनों में चमन शर्मा के गोदाम का दौरा तक नहीं किया, इतनी शिकायतें देने के बाद भी। प्रधान जी ने सीधा हमला बोल दिया था तैश में आकर।
मेरी पुलिस से क्या मतलब है आपका, प्रधान जी। पुलिस कोई मेरे घर की नहीं है। इसमें कई तरह के अफसर काम करते हैं और वो सारे मेरे नौकर नहीं हैं। सरकार तन्खवाह देती है उन्हें। इसलिये आप अपने शब्दों का चुनाव ठीक से करें। मेरी पुलिस कहने का कोई हक नहीं है आपको। सौरव कुमार के शब्दों में भी अब कड़वाहट आ गयी थी।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक होने के नाते इस शहर की पुलिस के किसी भी कर्मचारी द्वारा किये गये किसी भी अच्छे या बुरे काम का नैतिक दायित्व तो आप पर ही आता है, सर। इसलिये मैं तो इसे आपकी पुलिस ही कहूंगा। प्रधान जी ने एक और हमला बोल दिया था।
तो आप कहना क्या चाहते हैं, प्रधान जी। क्या मैने करवाया है ये सब कुछ। क्या आप मेरे ऊपर भ्रष्ट होने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। सौरव कुमार अब तैश में आ चुके थे और माहौल में गर्मी बढ़ती ही जा रही थी।
चमन शर्मा के साथ साथ कार्यालय में बैठे बाकी लोग भी सांस रोककर इस वार्तालाप को सुन रहे थे जबकि राजकुमार के चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं था। जैसे उसके लिये इसमें कुछ भी नया न हो, और ऐसी नोंक झोंक देखने की आदत हो उसे।
आप पर इल्ज़ाम लगाने का कोई इरादा नहीं मेरा, एस एस पी साहिब। मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूं कि हम इस जांच को तीन दिन से अधिक समय देना गंवारा नहीं कर सकते। देर से मिला हुआ इंसाफ न मिलने के बराबर ही होता है। प्रधान जी ने एक और तर्क से हमला किया सौरव कुमार पर।
मैं ऐसा कोई वायदा नहीं कर सकता प्रधान जी। सौरव कुमार के सब्र का बांध अब टूट रहा था।
पर मैं कर सकता हूं, एस एस पी साहिब। तीन दिन के अंदर अगर ये जांच पूरी नहीं हुयी तो न्याय सेना आपके कार्यलय के बाहर इतना भीषण प्रदर्शन करेगी कि सारा शहर देखेगा। न कोई कार्यलय के अंदर आ पायेगा और न कोई बाहर जा पायेगा। अपना सारा धैर्य एक ओर फेंक कर प्रधान जी ने अपने सबसे बड़ा हथियार चला दिया था। उनके चेहरे पर एक बड़ी लड़ाई लड़ने के लक्ष्ण स्पष्ट झलक रहे थे।
कमरे में बैठे चमन शर्मा सहित दूसरे सामान्य लोग अपनी अपनी कुर्सियों से इस तरह चिपक गये थे जैसे उनसे उठते ही कोई भूचाल आ जायेगा। और भूचाल आ भी तो गया था कमरे में, प्रधान जी के इस बम विस्फोट से।
ऐसे कैसे रास्ता रोक देंगे आप हमारे कार्यालय का। शहर में कानून व्यवस्था नाम की भी कोई चीज़ है। अगर आप कानून व्यवस्था को भंग करेंगे, तो मजबूरन हमें आप पर लाठीचार्ज करना होगा। सौरव कुमार के शब्दों की कठोरता बता रही थी कि वो अपने हर एक शब्द को पूरा करेंगे।
हा…हा…हा…… प्रधान जी का एक ज़ोरदार ठहाका कमरे में गूंज गया। किसी कि समझ में कुछ आया हो न हो, पर राजकुमार समझ चुका था कि प्रधान जी के इस ठहाके का कारण क्या है।
लाठीचार्ज……………………लाठीचार्ज से कुछ नहीं होगा एस एस पी साहिब। कुछ बड़ा सोचिये। गोली चलाने का हुक्म दीजियेगा अपनी पुलिस को। हम क्रांतिकारी हैं, क्रांतिकारी। गोली से कम में काम नहीं चलेगा हमारा। प्रधान जी के स्वर का उन्माद बढ़ता ही जा रहा था।
इससे पहले सौरव कुमार कुछ बोलें, कमरे मे एक बार फिर मेघ गर्जा।
तो फिर तय रहा एस एस पी साहिब। तीन दिन के बाद हम बारात लेकर आयेंगे आपके दरवाजे पर। आपके पास जितने भी पटाखे हों, फोड़ लीजियेगा। वरुण शर्मा ने अगर अपना एक भी कदम पीछे हटाया तो मेरे मुंह पर थूक देना। कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार का हाथ पकड़ा और इससे पहले सौरव कुमार कोई भी प्रतिक्रिया दे पाते, प्रधान जी का उन्मादी स्वर एक बार फिर कमरे में गूंज उठा।
चलो पुत्तर जी, अब आर पार की लड़ाई करने का समय आ गया है………… सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु–ए–कातिल में है। उन्माद में भरे किसी दीवाने की तरह कहा प्रधान जी ने और राजकुमार का हाथ पकड़े तेजी से सौरव कुमार के कार्यलय से बाहर निकल गये। उनके पीछे पीछे चमन शर्मा भी लगभग भागता हुआ हो लिया, जैसे डरता हो कि कमरे में रहने से कहीं इसी समय उस पर लाठीचार्ज न हो जाये।
कमरे में श्मशान की तरह सन्नाटा छा चुका था। कार्यालय में बैठे किसी भी व्यक्ति को कोई बात नहीं सूझ रही थी और सौरव कुमार के चेहरे पर चिंता अब सावन के काले बादलों की तरह डेरा जमा चुकी थी।
दस सेंकेंड से भी कम समय कुछ सोचने के बाद उन्होंने कोई निर्णय लिया, सामने बैठे लोगों को पांच मिनट बाहर जाने के लिये कहा और उनके जाते ही फोन का रिसीवर उठा कर कोई नंबर डायल कर दिया।
एस एस पी सौरव कुमार के कार्यालय से निकलते ही प्रधान जी और राजकुमार तेजी से बाहर की ओर चल दिये। चमन शर्मा भी लगभग दौड़ता हुआ उनके पीछे चल रहा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे किसी ने उसका बहुत बड़ा नुकसान कर दिया हो।
कार्यालय के बाहर खड़ा दरबान और कुछ अन्य कर्मचारी जल्दी से एक ओर होकर रास्ता छोड़ रहे थे। शायद अंदर के हंगामे की कुछ आवाज़ें बाहर तक भी आ गयीं थीं।
उनमे से कुछ कर्मचारियों के अभिवादन का संक्षेप में जवाब देते हुये प्रधान जी और राजकुमार तेजी से उस जगह पहुंचे जहां राजू और जग्गू उनका इंतज़ार कर रहे थे।
जंग का नगाड़ा बज गया है मेरे शेरो, तैयारी कर लो पूरी। इस बार सारे शहर को ये दिखाना है कि न्याय सेना के पास कितना बल है। तुम्हारे प्रधान पर लाठीचार्ज करने की धमकी दी है, एस एस पी साहिब ने। प्रधान जी का स्वर जोश में भरा हुआ था।
आपके शरीर पर लगने वाली हर लाठी इस शहर की पुलिस के ताबूत में आखिरी कील होगी, प्रधान जी। राजकुमार ने भारतीय इतिहास की ये प्रसिद्ध पंक्तियां जब उंचे स्वर में और नाटकीय अंदाज़ में कहीं तो ऐसी विकट स्थिति में भी प्रधान जी मुस्कुराये बिना नहीं रह सके।
ओये कंजर, तुझे इस मौके पर भी मज़ाक सूझ रहा है। प्रधान जी ने राजकुमार को प्रेम भरा उलाहना देते हुये कहा।
ऐसा हमारे साथ कोई पहली बार तो नहीं हो रहा, प्रधान जी। इससे पहले भी समय समय पर पुलिस और प्रशासन हमें प्रदर्शन से रोकने के लिये ऐसी धमकियां देता रहा है। ये तो अपने काम का एक हिस्सा है, प्रधान जी। इसलिये शांत हो जाईये। राजकुमार ने प्रधान जी के कंधे पर अपने हाथ से दबाव बनाते हुये कहा।
हमने अंदर वही किया जो हमें करना चाहिये था और एस एस पी साहिब ने वही किया जो शहर का पुलिस चीफ होने के नाते उन्हें करना चाहिये था। इट्स आल बिज़नेस प्रधान जी, नथिंग पर्सनल। सो रिलैक्स। राजकुमार ने प्रधान जी के कंधे पर दबाव बनाये रखते हुये कहा।
ये लो अब इसकी अंग्रेजी शुरु हो गयी। अब ये अंग्रेजी में ये भी कहेगा कि ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब कठपुतलियां हैं। प्रधान जी का क्रोध पहले से कुछ कम हो गया था और उनके स्वर में अपना स्वभाविक मज़ाक झलक आया था।
ऐसे नहीं प्रधान जी। आल द वर्ल्ड इज़ अ स्टेज, ऐंड आल द मैन ऐंड विमेन मियरली प्लेयरस। ऐसा कहा है शेक्सपीयर ने। राजकुमार ने प्रधान जी को चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा। उसे पता था कि प्रधान जी को ज्यादा इंगलिश झाड़ने वाले लोग पसंद नहीं आते थे।
ओये चुप कर शेक्सपीयर दे पुत्तर। अब तू मेरे दिमाग की बैंड मत बजा अपनी अंग्रेजी से। पहले से ही बहुत खराब है, मेरा दिमाग। प्रधान जी का गुस्सा अब लगभग खत्म हो चुका था।
पर आपका नाम तो वरुण शर्मा है प्रधान जी, और मैं तो आप ही का पुत्तर हूं। ये आपने अपना नाम शेक्सपीयर कब से रख लिया। कहीं कोई गोरी भाभी भी तो नहीं रख ली। रानी भाभी को बताऊं अभी। शरारती अंदाज़ में कहते हुये राजकुमार ने अपना मोबाइल फोन निकाल लिया और कोई नंबर ढूंढने की एक्टिंग करने लगा।
ओये कंजर मरवायेगा क्या, इधर ला फोन। प्रधान जी ने कहते हुये तेजी से राजकुमार के हाथों से फोन छीन लिया। राजकुमार ने उनकी दुखती रग पर हाथ जो रख दिया था।
क्यों प्रधान जी, भाभी से बात करने से डर लगता है। राजकुमार ने फिर प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।
बातों में तुझसे कोई नहीं जीत सकता, शैतान। सबकी कमज़ोर नस पहचानता है तू और एकदम मौके पर दबाता है। ओये, पुलिस की लाठियां तो मैं झेल लूंगा, पर तेरी भाभी का गुस्सा…………हे हे हे। कहते हुये प्रधान जी हंसने लगे थे। उनका गुस्सा अब कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था।
जग्गू और राजू जहां प्रधान जी और राजकुमार की इस नोंक झोंक का आनंद ले रहे थे, वहीं चमन शर्मा उन्हें ऐसे देख रहा था जैसे किसी और दुनिया से आये हों।
पांच मिनट पहले जो आदमी मरने मारने पर तुला हुआ था, अब ऐसे मज़ा कर रहा था जैसे कोई बात ही न हो। चमन शर्मा समझ नहीं पा रहा था कि उसने अपना केस न्याय सेना को देकर सही फैसला किया है या गलत।
अब क्या होगा, प्रधान जी। डरते डरते चमन शर्मा ने पूछा।
वही होगा जो मंजूर-ए-ख़ुदा होगा। प्रधान जी अब फिर से अपने स्वभाविक रंग में आ चुके थे।
आप चिंता मत कीजिये चमन जी, न्याय सेना के लिये ये कोई नयी बात नहीं है। इस तरह की चीज़ें तो हमारे काम में चलती ही रहती हैं। आपका काम अवश्य होगा, आप निश्चिंत रहें। लुटे पिटे से खड़े चमन शर्मा के कानों में जब राजकुमार के ये आश्वासन से भरपूर शब्द पड़े तो उसने चैन की सांस ली।
पर कैसे होगा, राजकुमार जी। एस एस पी साहिब तो बहुत उखड़े हुये थे आज। चमन शर्मा ने फिर शंका भरे स्वर में कहा।
इस कैसे का जवाब हम आपको अभी नहीं दे सकते, पर जल्दी ही मिल जायेगा ये जवाब आपको। फिलहाल आप अपने काम पर जाइये और ठीक साढ़े तीन बजे हमारे कार्यालय पहुंचिये। बाकी बातें वहीं पर होंगीं। इतना कहकर राजकुमार ने चमन शर्मा को विदा दी।
आईये प्रधान जी, गाड़ी निकालते हैं। राजकुमार के इतना कहते ही वे चारों पार्किंग में खड़ी प्रधान जी की गाड़ी की ओर चल दिये।
ड्राइविंग सीट पर बैठ कर अभी राजू ने गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि प्रधान जी के मोबाइल की घंटी बजी। प्रधान जी ने फोन की स्क्रीन देखते ही राजकुमार को एक ओर आने का इशारा किया और बोले। दुग्गल साहिब का फोन है।
राजकुमार ने तेजी से प्रधान जी के कानों में कुछ कहा और फिर प्रधान जी के फोन रिसीव करते ही उसने अपना कान मोबाइल के साथ चिपका दिया।
ओये तूने मेरे साहिब को धमकी देने की हिम्मत कैसे की। दूसरी ओर से एकदम गुस्से से भरा स्वर आया।
अब कर दी तो कर दी, फांसी पर चढाओगे क्या। प्रधान जी ने चिढ़ाने वाले स्वर में कहा।
ज्यादा बातें मत कर और जल्दी से आजा मेरे ऑफिस, तुझसे कुछ जरूरी बात करनी है। दुग्गल साहिब के स्वर में प्यार से भरा आदेश था।
जाओ नहीं आता फिर, क्या कर लोगे। प्रधान जी ने नाटकीय अंदाज़ में कहा।
मज़ाक का समय नहीं ये वरुण, तू आजा मेरे पास जल्दी। तेरी पसंद के बिस्किट मंगवाये हैं मैने चाय के साथ। दूसरी ओर से मनाने वाले स्वर में कहा गया।
और मेरे पसंद की लाठियां भी मंगवायीं हैं क्या। प्रधान जी के स्वर में एकदम तीखा व्यंग्य था।
बेवकूफों जैसी बातें मत कर और सीधा हो के आजा मेरे पास अभी। दुग्गल साहिब के स्वर में एक बार फिर आदेश था। उनके अंदाज़ से स्पष्ट जाहिर था कि लाठी वाली बात पता चल गयी है उनको।
अभी तो मैं किसी बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं, दुग्गल साहिब। कल आकर आपसे मिलता हूं। प्रधान जी ने प्रेम भरे स्वर में कहा।
इतना बड़ा प्रधान कब से बन गया तू जो मेरे लिये दो मिनट भी नहीं निकाल सकता। दुग्गल साहिब के स्वर में डांट के साथ साथ शिकायत भी शामिल थी।
आपके एक इशारे पर तो मेरी जान भी हाज़िर है, मेरे दुग्गल साहिब। पर अभी मुझे कहीं जाना है जल्दी, मैं आपसे कल आकर मिलता हूं। अब आज्ञा दो मेरे प्रभु। कहते हुये प्रधान जी ने दुग्गल साहिब की किसी प्रतिक्रिया का जवाब देने से पहले ही फोन काट दिया और राजकुमार की ओर मुड़ कर कहा।
जल्दी यहां से निकलो, पुत्तर जी। इससे पहले कि दुग्गल साहिब का कोई अंगरक्षक हमें खुद लेने आ जाये। प्रधान जी के इतना कहते ही सब लोग फौरन गाड़ी में बैठे और चंद ही पलों में गाड़ी एस एस पी कार्यालय से निकल कर न्याय सेना के कार्यालय की ओर भागी जा रही थी। गाड़ी में बैठा राजकुमार दुग्गल साहिब के बारे में ही सोच रहा था।
रमन दुग्गल था पूरा नाम उनका, एस पी सिटी वन। शरीर से थोड़े भारी और शानदार व्यक्तित्व के स्वामी। गुरु नानक के भक्त थे और ओशो की फिलासफी सुनने का शौक रखते थे। सबको साथ लेकर चलने की सोच रखते थे जिसके कारण शहर के अधिकतर महत्वपूर्ण लोगों के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे थे।
राजनेताओं से लेकर गुंडे तक भी इनका सम्मान करते थे और इनकी किसी बात को टाल देना किसी के लिये भी आसान नहीं था। बातचीत के माध्यम से हर मसले को सुलझा लेने की इतनी जबरदस्त प्रतिभा थी इनके पास कि सारे शहर में ये समझौता एक्सप्रैस के नाम से जाने जाते थे।
जिस मामले को बड़े से बड़े राजनेता भी नहीं सुलझा पाते थे, उसे चुटकियों में हल कर देते थे रमन दुग्गल। इसी कारण सौरव कुमार की पुलिस टीम का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा थे वो, और सौरव कुमार के बहुत विश्वासपात्र भी।
डी एस पी के रुप में भी इन्होंने जालंधर में कई वर्षों तक कार्य किया था और उसी समय से प्रधान जी के साथ इनकी दोस्ती थी। शहर की पुलिस में रमन दुग्गल अकेले ऐसे अधिकारी थे जो प्रधान जी को सीधे उनका नाम लेकर बुलाते थे और उनके साथ किसी भी तरह का मज़ाक कर लेते थे।
हिमांशु शंगारी