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युसुफ आज़ाद जालंधर से प्रकाशित होने वाले एक राष्ट्रीय अखबार अमर प्रकाश के ब्यूरो चीफ थे। क्योंकि इस अखबार के मालिक किसी और प्रदेश में स्थित अखबार के मुख्यालय में बैठते थे, युसुफ आज़ाद के पास इस क्षेत्र में अखबार को लेकर निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।
मध्यम से थोड़े छोटे कद के युसुफ आज़ाद को सब आज़ाद के नाम से ही बुलाते थे। देखने में बिलकुल एक साधारण आदमी की तरह लो प्रोफाइल रहना पसंद करते थे, किंतु उनकी वास्तविकता कुछ और ही थी। तलवार की धार से भी तेज़ थी उनकी कलम की धार, फिर चाहे उसके नीचे कोई भ्रष्ट अफसर आ जाये या मंत्री, सबका अंजाम कटना और फिर अपने घाव सहलाना ही होता था।
कई प्रदेशों के बड़े बड़े अधिकारी, मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री भी इनकी कलम की धार से घायल हो चुके थे। जालंधर ट्रांसफर हुए उन्हें एक साल से कुछ अधिक समय ही हुआ था पर इतने कम समय में ही उन्होंने अपनी निर्भीक पत्रकारिता की धाक जमा ली थी। जितनी तेज़ एक कुशल गृहणी उबला हुआ आलू छीलती है, उससे कहीं तेज़ आज़ाद भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं को छील देते थे।
एकदम बेदाग छवि वाले आज़ाद ने अपने हैरत अंगेज़ कारनामों से पुलिस और प्रशासन को हिला कर रख दिया था। खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं था और उनके पत्रकार न जाने कहां कहां से ढूंढ कर अंदर की खबरें निकाल लाते थे।
आज़ाद उस समय अपने कार्यालय में ही बैठे हुये थे जब एक कर्मचारी भीतर आया और उसने प्रधान जी के आने की सूचना दी। आज़ाद ने उन्हें अंदर भेजने के साथ ही चाय का प्रबंध भी करने के लिये कहा।
ओ मेरे आज़ाद भाई। प्रधान जी की इस आवाज़ को सुनते ही पहचान गये थे आज़ाद। देखा तो सामने प्रधान जी कमरे में प्रवेश कर रहे थे और उनके पीछे पीछे राजकुमार भी भीतर आ रहा था।
प्रधान जी के नमस्कार का जवाब देकर जब आज़ाद ने राजकुमार से हाथ मिलाया तो दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी, जैसे हाथ मिलाने के बहाने कोई उर्जा एक दूसरे के शरीर में ट्रांसफर कर रहे हों।
ये देखकर प्रधान जी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी। वो जानते थे कि राजकुमार के साथ आज़ाद के बहुत घनिष्ठ संबंध थे और राजकुमार शहर के उन बहुत कम लोगों में से एक था जिन्हें आज़ाद अपने घर पर भी मिलते थे।
कहिये कैसे आना हुआ प्रधान जी। अपनी कुर्सी पर बैठते हुये आज़ाद ने पूछा।
बस आज आपसे एक काम पड़ गया है, आज़ाद भाई। प्रधान जी ने मीठे स्वर में कहा।
वो तो मैं जानता ही हूं प्रधान जी, वर्ना बिना काम के तो आप चाय पीने भाजी या बाऊजी के पास ही जाते हैं। इस गरीब भाई की याद कहां आती है। आज़ाद के शब्दों में छिपा व्यंग्य भी उनकी कलम की धार की तरह ही तेज़ था।
हे हे हे……ऐसी कोई बात नहीं आज़ाद भाई। झेंपने वाले अंदाज़ में प्रधान जी ने कहा।
तो फिर कैसी बात है प्रधान जी। आज़ाद की पैनी नज़र प्रधान जी के चेहर पर जम गयी थी।
अपने आप को बुरी तरह से फंसा हुआ देखकर प्रधान जी ने सहायता की दृष्टि से राजकुमार की ओर देखा जो उनकी ओर देख कर ही मुस्कुरा रहा था।
अरे कंजर, मैं यहां फंसा पड़ा हूं और तू मज़ा ले रहा है। आज़ाद की बात से बचने के लिये प्रधान जी ने निशाना राजकुमार की ओर लगा दिया।
ठीक ही तो कह रहे हैं आज़ाद भाई। पिछली बार कब आये थे हम इनके पास चाय पीने। अरे हां याद आया, जब न्याय सेना ने तीन महीने पहले पिछला बड़ा केस पकड़ा था। राजकुमार भी मज़ा ले रहा था।
पिछला बड़ा केस पकड़ा था, तो इसका मतलब न्याय सेना फिर कोई बड़ा केस पकड़ चुकी है। ये तो मज़ेदार लगता है। चलिये प्रधान जी, छोड़ दिया आज आपको, आइंदा ध्यान रखियेगा………………… आज़ाद के अंदर का पत्रकार जाग चुका था। उनकी नज़र राजकुमार पर जम चुकी थी और राजकुमार उनकी इस नज़र का अर्थ भली भांति समझता था।
जब तक प्रधान जी ने टेबल पर आई चाय पी, राजकुमार ने सारा किस्सा आज़ाद को संक्षेप में सुना दिया।
तो ये है सारी बात भाई साहिब। अब अपनी गणना कहती है कि ये मामला बड़ा बनने वाला है और इसमें हमें आपकी पूरी मदद चाहिये होगी। राजकुमार ने ठंडी हो चुकी चाय का कप उठाते हुये कहा।
आपकी गणना एकदम सही है राजकुमार। आज़ाद के चेहरे पर एक अनोखी चमक थी। कुछ दिनों से मेरे कुछ पत्रकार भी लगे हुए हैं इस मामले के पीछे, पर कोई खास सफलता नहीं मिल पा रही थी। आज़ाद ने अपनी बात पूरी की।
आपके पत्रकार…………………ये स्वर प्रधान जी के मुंह से निकला था।
जी हां प्रधान जी, पुलिस में हमारे किसी सूत्र ने कुछ दिन पहले बताया था कि ऐसा कोई मामला चल रहा है जिसे राजनैतिक दबाव के कारण दबाने की कोशिश की जा रही है। तब से हमारे पत्रकार इस मामले के पीछे लगे हुये हैं। आज़ाद बोलते जा रहे थे।
फिर पता चला कि आज सुबह आप लोग एस एस पी सौरव कुमार से मिलने गये थे चमन शर्मा के साथ, तो मैं समझ गया था कि अब इस खेल में मज़ा आने वाला है। मुस्कुराते हुये आज़ाद ने कहा।
तो इसका मतलब आपको हमारे आने का कारण पहले से ही पता था। हैरान होते हुये प्रधान जी ने पूछा।
अरे प्रधान जी, पत्रकारिता करते हैं, झख थोड़े ही न मारते हैं ऑफिस में बैठ कर। शहर की इतनी खबर तो रखनी ही पड़ती है। आज़ाद अब फिर प्रधान जी को छेड़ रहे थे।
तो आपको क्या लगता है भाई साहिब, कहां तक जा सकता है ये मामला। राजकुमार ने सीधा अपने मतलब की बात पर आते हुये पूछा।
बहुत ज़ोर लगेगा इसमे बॉस, हरपाल सिंह की पहुंच बहुत ऊपर तक है। अपने विशेष अंदाज़ में कहा आज़ाद ने। अपने संपर्क के लोगों को बातचीत के दौरान कई बार बॉस कहकर बुलाते थे आज़ाद।
कितनी ऊपर तक है भाई साहिब। राजकुमार की आवाज़ में गंभीरता भरी हुई थी।
मंत्री अवतार सिंह का हाथ है इसके सिर पर। और आप तो जानते ही हैं कि अवतार सिंह आज की डेट में सी एम के बहुत करीबी मंत्रियों में से एक है। इसीलिये तो इतना बड़ा मंत्रालय भी है उनके पास। पुलिस में मेरे विश्वस्त सूत्रों ने बताया है कि सीधा उसका दबाव है पुलिस पर, इस मामले में हरपाल सिंह की हर तरह से मदद करने के लिये। आज़ाद का स्वर भी अब गंभीर हो गया था।
तो आपके ख्याल से इस मामले को सुलझाने का क्या तरीका है, भाई साहिब। राजकुमार के स्वर के साथ साथ अब प्रधान जी के चेहरे पर भी गंभीरता आ चुकी थी, मामले की गहराई को समझते हुये।
जम कर शोर मचाना होगा आप लोगों को, इतना शोर जो सीधा सी एम के कानों में पहुंच जाये और वो खुद अवतार सिंह को इस मामले से दूर रहने के लिये बोल दें। तभी सुलझेगा ये मामला। आज़ाद ने अपनी बात पूरी की।
बड़ा तमाशा करना पड़ेगा फिर तो। कहता कहता राजकुमार कुछ सोचता जा रहा था।
बिल्कुल बड़ा तमाशा करना होगा। पर हां, एक बहुत अच्छी बात है आपके पक्ष में। आज़ाद की इस आवाज़ ने राजकुमार की विचार श्रृंख्ला तोड़ी।
वो क्या भाई साहिब। राजकुमार की नज़रें एक बार फिर आज़ाद के चेहरे पर जम चुकीं थीं।
मेरे सूत्रों के अनुसार शहर की पुलिस इस मामले में हरपाल सिंह का साथ बिल्कुल नहीं देना चाहती। बल्कि पुलिस के बहुत से अधिकारी हरपाल सिंह के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने को लेकर एकमत हैं। केवल राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस हरपाल सिह की मदद मजबूरी में कर रही है। आप समझ गये न मेरा इशारा। आज़ाद की नज़रें राजकुमार के चेहरे पर जमी हुईं थीं और प्रधान जी उन दोनों के बीच हो रही इस बातचीत का मज़ा ले रहे थे।
प्रधान जी जानते थे कि आज़ाद गजब के बुद्दिजीवी और इंटेलिजैंट थे, और अपने जैसे अन्य लोगों की कम्पनी में उन्हें बहुत मज़ा आता था। इसीलिये उनके और राजकुमार के बीच बहुत पटती थी।
ओह…………तो आपके कहने का अर्थ ये है कि इस केस को हल करने के लिये हमें पुलिस और राजनेताओं के बीच के इस मतभेद का फायदा उठाना है। राजकुमार ने जैसे आज़ाद की पहेली पूरी की।
बिल्कुल ठीक समझे आप। प्रधान जी, मैं कहता हूं न कि ये लड़का आपके पास एक हीरा है। मुस्कुराते हुये आज़ाद ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।
ये तो मेरी न्याय सेना का सबसे बेशकीमती नगीना है, आज़ाद भाई। प्रधान जी ने गर्व भरी नज़रों से राजकुमार को देखा जो किसी गंभीर सोच में डूबा हुआ था।
तो फिर ठीक है भाई साहिब, आप अपना मोर्चा संभाल लीजिये और हम अपना मोर्चा संभाल लेते हैं। कल इस मामले में कुछ बहुत बड़ा होने वाला है। अखबार में जगह बचा कर रखियेगा। राजकुमार ने आज़ाद की ओर देख कर मुस्कुराते हुये कहा।
ऐसी कवरेज के लिये तो हम लोग सदा ही तैयार रहते हैं। आप लोग निश्चिंत होकर अपना मोर्चा जमाईये। अमर प्रकाश पूरी तरह से आपके साथ है। आज़ाद के शब्दों में पूर्ण आश्वासन था।
तो ठीक है फिर भाई साहिब, अब चलते हैं, बहुत तैयारी करनी है अभी। कहते कहते राजकुमार और उसके साथ साथ प्रधान जी भी कुर्सी से उठे और आज़ाद से विदा ली।
अगर इस मामले में पुलिस या राजनैतिक दायरे के भीतर की कोई ऐसी खबर मिले भाई साहिब, जिससे हमें इस मामले को सुलझाने में मदद मिले, तो जरूर बता दीजियेगा। दरवाजे से मुड़ते हुये राजकुमार ने आज़ाद से कहा और फिर उनके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही प्रधान जी के पीछे हो लिया जो पहले ही केबिन से बाहर निकल चुके थे।
ये मामला तो लगता है ज़ोर पकड़ेगा पुत्तर जी। गाड़ी की ओर जाते प्रधान जी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।
ज़ोर पकड़ेगा तभी तो मज़ा आयेगा प्रधान जी। आसान काम में क्या मज़ा है। कहते कहते राजकुमार प्रधान जी का जवाब सोच कर पहले से ही हंस दिया।
अरे चोर, ये मेरा डॉयलाग है। प्रधान जी भी साथ ही हंस दिये।
और आप किसके हैं प्रधान जी। राजकुमार ने प्रधान जी को शब्दजाल में फंसाते हुये कहा।
ओ मेरी जिंद भी तेरी और जान भी तेरी मेरे युवराज। कहते कहते प्रधान जी ने गाड़ी का दरवाजा खोला और अंदर बैठ गये।
तो अब क्या प्रोग्राम है प्रधान जी, राजकुमार ने भी गाड़ी में बैठते हुये कहा।
आकाश जी तो शायद अभी भी नहीं आये होंगे। क्यों न शशी नागर जी से मिल लिया जाये तब तक। प्रधान जी ने अपनी राय पेश की।
ए क्लास विचार है प्रधान जी। तो लगाईये फोन और कीजिये मीटिंग फिक्स। राजकुमार के कहते कहते ही प्रधान जी शशी नागर का नंबर मिला चुके थे।
ओ मेरे ब्राहमण देवता, ओ मेरे पंडित जी……………………ओ क्या हाल है जी। दूसरी तरफ से हैलो कहते ही प्रधान जी ने एक दम से हमला बोल दिया था।
बस आपके दर्शन करने का मन किया तो फोन कर लिया मेरे ब्राहमण देवता, आ जायें अभी। ओ ठीक है जी, पांच मिनट में पहुंच गये आपके पास जी, चाय शाय तैयार करवाईये जी। प्रधान जी के बात समाप्त करने तक राजकुमार ने गाड़ी स्टार्ट करके अगली मंजिल को ओर बढ़ा दी थी।
गाड़ी चलाता हुआ राजकुमार सोच रहा था कि उसे कितना कुछ सीखने को मिला था प्रधान जी के साथ रहकर। हर एक व्यक्ति के लिये एक अलग प्रेम से भरा संबोधन रखा था उन्होंने, जो एक अलग ही पहचान देता था उन्हें।
कई बार दिन में बहुत बार चाय पीने के कारण रात तक जलन के मारे बहुत बुरा हाल हो जाता था उनका, पर जहां भी जाते थे, चाय जरूर पीते थे। इसका कारण भी बताया था उन्होनें राजकुमार को।
देखो पुत्तर जी, ये बड़े बड़े अफसर, नेता, संपादक, पत्रकार हर ऐरे गैरे को चाय नहीं पूछते। सिर्फ खास लोगों को ही पूछते हैं। इसलिये कभी मना नहीं करना चाहिये। ये उनका तरीका होता है दूसरे लोगों को बताने का कि हम उनके लिये खास हैं।
मेरी बात को याद रखना पुत्तर जी, समाज में जितने बड़े लोग आपकी विशेष इज्जत करेंगे, उतना ही आपका रुतबा दूसरे लोगों की नज़र में बड़ा होता जायेगा। ऐसा होते ही आपके कई सारे काम आसानी से ही हो जायेंगे।
उदाहरण के लिये, जब हम एस पी साहिब के पास बैठ कर चाय पीते हैं तो उस दौरान उनसे मिलने जो भी थाना प्रभारी या दूसरे पुलिस अधिकारी आते हैं, वो बड़े ध्यान से नोट करते हैं इन चीज़ों को।
अगली बार जब हम उनके पास किसी काम के लिये जाते हैं तो उन्हें पता होता है कि अगर हमारा काम ठीक से नहीं किया तो एस पी साहिब से शिकायत हो जायेगी। इसलिये वो हमारा काम भाग भाग कर करते हैं।
कितनी साधारण लेकिन कितनी व्यवहारिक समझ थी प्रधान जी को। शिक्षा के नाम पर कुछ विशेष नहीं था उनके पास, किंतु व्यवहारिक ज्ञान बहुत था उन्हें। जीवन के आड़े टेड़े रास्तों से बार बार गुज़र कर, ठोकरें खा कर और फिर संभल कर उठते हुये हासिल किया था प्रधान जी ने ये ज्ञान।
लो पुत्तर जी, आ गया नागर जी का कार्यालय। प्रधान जी के इन शब्दों ने राजकुमार की तन्द्रा भंग की तो उसने देखा कि उनकी मंजिल आ चुकी थी। गाड़ी पार्किंग में लगा कर वे दोनों तेजी से एक ओर चल दिये।
हिमांशु शंगारी