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संकटमोचक अध्याय 03

Sankat Mochak
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हे बजरंग बली, अब तो आपका ही सहारा है। उस शैतान हरपाल सिंह का नाम सुनते ही शहर के सभी पुलिस अफसर तथा राजनेता मेरी सहायता करने से मना कर देते हैं। चमन शर्मा करुण स्वर में शहर के एक प्रसिद्ध मंदिर में भगवान हनुमान के स्वरूप के सामने बैठ कर याचना कर रहा था।

हे संकटमोचक, आपका ये भक्त सारी दुनिया से निराश होकर आपकी शरण में आया है प्रभु। अपने इस भक्त की रक्षा कीजिये प्रभु, रक्षा कीजिये हे संकटमोचक, रक्षा कीजिये। विनती करते हुये चमन शर्मा का गला अधिक से अधिक भारी होता जा रहा था।

चिंता न करो भक्त, संकटमोचक की शरण में सच्चे मन से आने वाले हर भक्त की रक्षा होती है। मन में विश्वास बनाये रहो। संकटमोचक अवश्य ही आपके संकट का निवारण करेंगे। चमन शर्मा ने सिर उठाया तो देखा कि मंदिर के मुख्य पुजारी उससे संबोधित थे।

अब तो केवल इनका ही सहारा है पंडित जी, दुनिया के बाकी सब सहारे तो इस संकट की घड़ी में मेरा साथ छोड़ चुके हैं। अब तो भगवान संकटमोचक ही अपने किसी दूत को भेजें तो मेरा कार्य सिद्ध हो। ये कहते हुये चमन शर्मा ने पुजारी जी के चरण स्पर्श किये और प्रसाद लेकर बाहर की ओर चल दिया।

अपने जूते पहन लेने के बाद चिंता में डूबा हुआ चमन शर्मा भारी कदमों से अभी मंदिर के निकास द्वार की ओर चला ही था कि उसके कानों में एक आवाज़ गूंजी।

अरे चमन भाई, बड़े दिनों के बाद आपके दर्शन हुये हैं आज तो, कहां रहते हो आजकल। चमन शर्मा ने आवाज़ की दिशा में देखा तो पाया कि उनके एक पुराने परिचित सुशील कुमार उनसे संबोधित थे।

क्या बताऊं सुशील भाई, बहुत भारी मुसीबत में फंस गया हूं। रोजी रोटी संकट में है और कहीं से आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती। भारी स्वर में चमन शर्मा ने कहा।

ऐसी कौन सी मुसीबत आ गई चमन भाई, जिसका हल संकटमोचक के इस दरबार में न हो सके। आप मुझे शीघ्र ही अपनी समस्या बतायें, शायद मैं कोई सहायता कर सकूं आपकी। आश्वासन भरे स्वर में सुशील कुमार ने कहा।

चमन शर्मा को हालांकि पता था कि सुशील कुमार एक बहुत ही सामान्य प्रोफाइल का व्यक्ति था और उसकी समस्या का हल उसकी सोच से भी बहुत आगे था, किंतु फिर भी न जाने किस शक्ति के प्रभाव में उसने सुशील कुमार को अपनी सारी व्यथा बता दी।

उस दिन के बाद आज सातवां दिन है, सुशील भाई। शहर के सारे बड़े अधिकारियों और राजनेताओं के पास जाकर अपना दुखड़ा रो चुका हूं, पर हरपाल सिंह का नाम सुनते ही सब कोई न कोई बहाना बना कर भाग जाते हैं। ऐसा लगता है इस शहर में उस शैतान के खिलाफ खड़ा होने वाला भगवान का कोई एक भी फरिशता नहीं है, जो मेरी सहायता कर सके। भरे गले से चमन शर्मा ने कहा।

इसीलिये आज सुबह सुबह ही संकटमोचक के दरबार में याचना करने चला आया, कि शायद भगवान संकटमोचक ही मेरी कुछ सहायता कर दें। इतना कहते हुये सुशील कुमार को हाथ जोड़ते हुये चमन शर्मा मंदिर के निकास द्वार की ओर चल दिया।

बस इतनी सी बात चमन भाई, तो समझो आपका काम हो गया। सुशील कुमार के ये शब्द जैसे चमन शर्मा के कानों में अमृत की तरह पड़े और उसने तेजी के साथ मुड़कर सुशील कुमार की ओर देखा जो उसके बिलकुल पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।

भगवान संकटमोचक ने आपकी विनती स्वीकार कर ली है चमन भाई, और मुझे आपका कार्य करवाने के लिये साधन बना कर भेज दिया है। लगातार मुस्कुराता हुआ सुशील कुमार बोलता जा रहा था।

चलिये आज मैं आपको भगवान संकटमोचक के एक ऐसे दूत से मिलवाता हूं, जिन पर संकटमोचक की साक्षात कृपा है और जिनके सामने आने से बड़े से बड़े रावण भी डरते हैं। फिर ये हरपाल सिंह क्या चीज़ है। सुशील कुमार के स्वर में पूर्ण आत्मविश्वास था और चमन शर्मा को न जाने क्यों उसकी हर एक बात पर विश्वास होता जा रहा था।

परन्तु सुशील भाई, संकटमोचक भगवान का ऐसा कौन सा दूत है इस शहर में, जिसे मैं अभी तक नहीं जान पाया। चमन शर्मा की उत्सुकुता उसके प्राण लेने पर आयी हुई थी।

अवश्य है चमन भाई, अवश्य है। संकटमोचक के बहुत बड़े भक्त, पीड़ितों के मसीहा, बेसहारों के सहारे और ज़ालिमों के लिये काल हैं वो। सुशील कुमार की आवाज़ उसके हर एक शब्द के साथ तीखी होती जा रही थी और उसके चेहरे पर जीवन के भाव और भी प्रबल होते जा रहे थे, मानो इस व्यक्ति को याद करते ही उसके मन में अमृत वर्षा होने लग गयी थी।

इतना सस्पैस मत बनाइये सुशील भाई और जल्दी से मुझे बताइये, पीड़ितों के इस मसीहा का नाम। ये भी बताइये कि मैं उनसे कैसे और कहां मिल सकता हूं।

तो ठीक है चमन भाई, ये लीजिये मैं सारा सस्पैंस खत्म कर देता हूं और आपका बताता हूं उनके बारे में। सुशील कुमार जैसे सस्पैंस खत्म करने की बजाये बढ़ाता ही जा रहा था।

न्याय सेना पंजाब के नाम से एक संस्था चलाते हैं वो, और नाम है वरुण शर्मा। लेकिन कोई उनका नाम नहीं लेता और सारे क्षेत्र में वे प्रधान जी के नाम से विख्यात हैं। लोग उन्हें प्यार और आदर से प्रधान जी ही कहकर बुलाते हैं। अपनी ही धुन में खोया सुशील कुमार बोलता ही जा रहा था।

यूं तो इस शहर में सामाजिक सस्थाओं से लेकर राजनैतिक पार्टियों तक के सैंकड़ों प्रधान हैं, किंतु जब आपको बिना किसी संस्था या व्यक्ति के नाम के केवल प्रधान जी सुनने को मिले तो समझ जाईये कि वरुण शर्मा जी की ही बात हो रही है, ऐसा है उनका रुतबा। सुशील कुमार इस प्रकार खुश होकर ये सारी बातें बता रहा था जैसे प्रधान जी का कोई बहुत बड़ा भक्त हो।

बड़े से बड़ा अधिकारी, बड़े से बड़ा राजनेता और अखबारों को चलाने वाले भी उनका आदर करते हैं और उनके रास्ते में आने की इस शहर में जिसने भी हिम्मत की, वो इतिहास बन कर रह गया। लेकिन बस एक बात का ही ध्यान रखना पड़ता है उनके पास अपना काम लेकर जाने से पहले………………… बोलते बोलते सुशील कुमार एक दम से जैसे किसी सोच में पड़ गया और उसकी वाणी को भी इसके साथ ही विराम मिल गया।

वो क्या सुशील भाई, आशंकित मन के साथ चमन शर्मा ने पूछा। क्या बहुत पैसे देने पड़ेंगे उनसे काम करवाने के लिये?

पैसों का नाम भी मत लेना उनके सामने, एकदम फक्कड़ आदमी हैं इस मामले में प्रधान जी। पैसे को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि पैसे के बल पर मनमानी करने वालों से उनका 36 का आंकड़ा रहता है। सुशील कुमार एक बार फिर शुरु हो गया।

मैं तो ये कहना चाह रहा था कि प्रधान जी किसी भी काम को पकड़ने से पहले उसे भली प्रकार से परखते हैं। अगर वो काम ग़लत निकले तो फिर वो किसी भी कीमत पर सहायता नहीं करते। सुशील कुमार ने जल्दी से कहा।

पर मेरा काम तो बिल्कुल ठीक है सुशील भाई, और मैं तो बुरी तरह से सताया हुआ हूं। चैन की सांस लेते हुये चमन शर्मा ने कहा।

बस तो फिर कोई चिंता नहीं, प्रधान जी आपका काम अवश्य करेंगे। निर्णय देने वाले भाव में सुशील कुमार ने कहा।

पर मैं उनसे कहां और कैसे मिलूं, जल्दी बताईये सुशील भाई। चमन शर्मा की उत्कंठा एक बार फिर बढ़ने लगी थी।

इसका प्रबंध भी संकटमोचक के इस दरबार में ही हो जायेगा। कहते हुये सुशील कुमार ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और ढूंढने के बाद एक नंबर मिला दिया।

किससे बात कर रहे हो सुशील………………, चमन शर्मा की बात को बीच में ही काट कर सुशील कुमार नें उसे चुप रहने का इशारा किया। ऐसा लग रहा था जैसे कॉल दूसरी तरफ जुड़ गयी थी।

चरण स्पर्श प्रधान जी, शास्त्री मार्किट वाला सुशील कुमार बोल रहा हूं। सुशील कुमार के ये शब्द सुनते ही चमन शर्मा के शरीर में रोमांच की एक लहर दौड़ गयी और वो एकदम सतर्क होकर सुशील कुमार के पास जाकर खड़ा हो गया ताकि बातचीत का कुछ हिस्सा सुन सके। उसे पता चल चुका था कि सुशील कुमार सीधा प्रधान जी से ही बात कर रहा था।

ओ जीते रहो पुत्तर जी। वर्षा ॠतु के मतवाले मेघ की गर्जना के समान एक आवाज़ सुशील कुमार के मोबाइल से निकल कर पास खड़े चमन शर्मा के कानों में पड़ी तो उसके सारे शरीर में कंपकंपी छूट गयी।

सामने से बोलने वाले की आवाज़ में इतनी अधिक उर्जा थी कि उसका प्रवाह चमन शर्मा को अपने शरीर की एक एक नस में होता प्रतीत हुआ।

प्रधान जी, मेरे एक मित्र हैं चमन शर्मा। इनके साथ बहुत ज़ुल्म हुआ है और कोई इनकी सहायता करने को तैयार नहीं। भगवान संकटमोचक के दरबार में अभी अभी मुझे मिले हैं और मैं इन्हें आपकी शरण में लाना चाहता हूं। चमन शर्मा का पूरा ध्यान इस वार्तालाप पर ही केंद्रित था जैसे उसका जीवन और मरण इसी वार्तालाप पर निर्भर करता हो।

क्या कहा, आप संकटमोचक के दरबार से बोल रहे हैं। तब तो ये संकटमोचक का ही आदेश होगा। इन्हें शीघ्र हमारे पास ले आयें, हम इनकी सहायता अवश्य करेंगे। सामने वाली आवाज़ में उतनी ही उर्जा थी, किंतु संकटमोचक का नाम सुनते ही उस आवाज़ में अपार श्रद्धा भी आ गयी थी।

मैं दस बजे न्याय सेना के कार्यालय पहुंच जाऊंगा, आप इन्हें लेकर दस बजे ही आ जायें। संकटमोचक के दरबार में सिर झुकाने वाले हर भक्त के लिये मेरा सर्वस्व हाज़िर है………… संकटमोचक के अन्य भक्त मंदिर में उनकी जय जयकार कर रहे थे और चमन शर्मा के शरीर में चेतना का प्रवाह बढ़ता ही जा रहा था।

ठीक है प्रधान जी, हम ठीक दस बजे न्याय सेना के कार्यालय पहुंच जायेंगे। आदर से भरपूर आवाज़ में सुशील कुमार ने कहा।

तो ठीक है फिर, दस बजे मिलते हैं। और हां, मेरी ओर से संकटमोचक के चरणों में प्रणाम अवश्य कर देना। इतना कहकर दूसरी ओर से कॉल काट दी गई, पर चमन शर्मा के शरीर में अभी भी जीवन उर्जा का संचार उतना ही प्रबल था।

लीजिये चमन भाई, आपका काम हो गया। मिलाप चौक में न्याय सेना का कार्यालय स्थित है और हमें ठीक दस बजे वहां पहुंचना है। आप अपने घर से इस मामले से संबंधित सारे कागज़ात लेकर ठीक दस बजे वहां पहुंचे और मैं आपको वहीं मिलता हूं। चमन शर्मा की ओर देखते हुये सुशील कुमार ने कहा।

और हां, अगर मिलाप चौक पहुंच कर उनका कार्यालय खोजने में कोई मुश्किल हो तो आस पास किसी से भी पूछ लेना। उन्हें सब जानते हैं। आईये अब संकटमोचक के दरबार में माथा टेकते हैं और घर चलते हैं। कहते हुये सुशील कुमार ने चमन शर्मा को पकड़ कर एक बार फिर संकटमोचक के स्वरूप की ओर खींच लिया।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 02

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जालंधर, इस शहर को पंजाब प्रदेश के बहुत ही महत्वपूर्ण शहरों में से एक माना जाता था और इसके कई कारण भी थे।

एक ओर जहां इस शहर में भांति भांति का सामान बनाने वाली फैक्टरियों की भरमार थी तो दूसरी ओर इस शहर से विदेशों में जाकर अपार धन कमाने वाले लोगों ने बहुत सा धन वापिस भेज कर इस शहर की उन्नति में अपना योगदान दिया था।

यह शहर जहां एक तरफ खेलों का सामान बनाने के लिये प्रसिद्ध था, वहां दूसरी ओर कई और प्रकार के व्यवसायों का भी इसे गढ़ माना जाता था। इसी कारण इस शहर का पंजाब के राजनैतिक तथा सामाजिक दायरों में अपना एक विशेष महत्व था।

किंतु इन सब विशेषताओं के अलावा इस शहर में एक और खासियत भी थी। यह शहर पंजाब में मीडिया के गढ़ के नाम से विख्यात था। पंजाब तथा हरियाणा के क्षेत्र में चलने वाले अधिकतर अखबार इस शहर में छपते थे, जिसके कारण यह शहर पंजाब की सक्रिय राजनीति का एक बहुत खास हिस्सा था।

प्रदेश के सभी छोटे बड़े राजनेता इस शहर में किसी न किसी बहाने आते ही रहते थे ताकि विभिन्न अखबारों के मालिकों तथा संपादकों के साथ उनके मधुर संबंध बने रहें, जिससे उन्हे समय समय पर राजनैतिक लाभ मिलते रहें।

यहां से छपने वाले अखबारों में दो बहुत बड़े अखबारों के मुख्य संपादक अपने जालंधर कार्यालयों में ही बैठते थे, जिसके कारण प्रदेश के राजनेताओं का उनके पास आना जाना लगा ही रहता था। इन दोनों ही अखबारों के मुख्य संपादकों को प्रदेश के राजनैतिक और सामाजिक दायरों में विशेष स्थान प्राप्त था, तथा जनता इन्हें बहुत आदर की दृष्टि से देखती थी।

इन दो अखबारों के अतिरिक्त यहां अन्य बहुत से अखबार भी थे जिनमें से अधिकतर बड़े अखबारों के मुख्य संपादक अन्य प्रदेशों में स्थित इन अखबारों के मुख्य कार्यालयों में बैठते थे।

विदेशों और व्यवसायों से बहुत पैसा आने के कारण इस शहर के कई लोग बहुत से राजनेताओं तथा अधिकारियों के साथ मेल जोल रखते थे, और समय आने पर इन संबंधों का लाभ भी उठाते थे।

हरपाल सिंह भी ऐसे ही लोगों में से एक था। अपने व्यवसाय से बहुत धन कमाने के कारण तथा अपनी राजनैतिक रुचियों के कारण उसने प्रदेश की स्थानीय सरकार में बहुत उच्च स्तर के मंत्रियों के साथ सांठ गांठ की हुई थी, तथा समय आने पर इन संबंधों के बल पर कई तरह के नाजायज काम भी करता था।

चर्चा के गलियारों में ऐसा भी सुनने को आता था कि उसने पंजाब सरकार के एक बहुत बड़े मंत्री के साथ कई तरह के नाजायज कामों में पार्टनरशिप कर रखी थी। यह मंत्री प्रदेश के मुख्यमंत्री के बहुत करीबी मंत्रियों में से एक था और पूरे प्रदेश में इसका रास्ता रोकने का साहस कोई नहीं करता था।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक

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संकटमोचक

                                 एक शेरदिल मसीहा


ॐ नम: शिवाय

इस उपन्यास में लिखा हुआ प्रत्येक शब्द केवल भगवान शिव की कृपा से ही संभव हुआ है, और ये उपन्यास केवल उनकी कृपा का ही परिणाम है।

ॐ नम: शिवाय

                                    ध्यानार्थ

इस उपन्यास के सभी पात्र पूरी तरह से काल्पनिक हैं और इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। इस उपन्यास के किसी भी पात्र या घटना का किसी के साथ संबंध होना मात्र एक संयोग से अधिक कुछ नहीं है।

अनुक्रम

संकटमोचक-अध्याय-01

संकटमोचक-अध्याय-02

संकटमोचक-अध्याय-03

संकटमोचक-अध्याय-04

संकटमोचक-अध्याय-05

संकटमोचक-अध्याय-06

संकटमोचक-अध्याय-07

संकटमोचक-अध्याय-08

संकटमोचक-अध्याय-09

संकटमोचक-अध्याय-10

संकटमोचक-अध्याय-11

संकटमोचक-अध्याय-12

संकटमोचक-अध्याय-13

संकटमोचक-अध्याय-14

संकटमोचक-अध्याय-15

संकटमोचक-अध्याय-16

संकटमोचक-अध्याय-17

संकटमोचक-अध्याय-18

संकटमोचक-अध्याय-19

संकटमोचक-अध्याय-20

संकटमोचक-अध्याय-21

संकटमोचक-अध्याय-22

संकटमोचक-अध्याय-23

संकटमोचक-अध्याय-24

संकटमोचक-अध्याय-25

संकटमोचक-अध्याय-26

संकटमोचक-अध्याय-27

संकटमोचक-अध्याय-28

संकटमोचक-अध्याय-29

संकटमोचक-अध्याय-30

संकटमोचक-अध्याय-31

संकटमोचक-अध्याय-32

संकटमोचक-अध्याय-33

संकटमोचक-अध्याय-34


श्रद्दांजलि

यह उपन्यास मेरे परम मित्र स्वर्गीय श्री अरूण शर्मा जी को श्रद्दांजलि है, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समाज सेवा के कार्य में लगा दिया। अरुण जी के मन में दीन दुखियों को देखते ही सहायता करने का प्रबल भाव उमड़ आता था और अपने व्यवसाय या परिवार की चिंता किये बिना उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक दुखियों की सहायता की।

अपने इस जीवनकाल में मैने बहुत समय उनके सानिध्य में व्यतीत किया है और इस समय के दौरान मैने उनसे जीव और जीवन के ऐसे सच्चे मूल्यों को सीखा है, जिन्होंने मेरे जीवन को प्रकाशमय कर दिया है। भगवान शिव की अवश्य ही बहुत विशेष कृपा है मेरे ऊपर, जो ऐसे पुण्यात्मा के साथ मेरा इतना आत्मीय संबंध संभव हो पाया है।

अरुण जी को अपनी आत्मा की सदगति के लिये हालांकि किसी की प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके द्वारा किये गये करोड़ों पुण्य और संकटमोचक भगवान बजरंग बली की उनपर स्पष्टतया विदित कृपा ही उन्हें दैवीय लोकों में ले जाने के लिये पूरी तरह से समर्थ है। फिर भी उनका ये मित्र अपने इष्ट भगवान शिव से प्रार्थना करता है कि वे इस पुण्यात्मा को सदा अपनी विशेष कृपा की छाया में रखें।

ॐ नम: शिवाय

हिमांशु शंगारी

 

 

संकटमोचक अध्याय 01

Sankat Mochak
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धड़ाम……धड़ाम……धड़ाम । अपनी ही किसी सोच में डूबे हुए चमन शर्मा की तन्द्रा एक दम से इन आवाजों के कारण टूटी और वो इन आवाजों की दिशा में बढ़ने के लिए उठा ही था कि इतने में उसका एक कर्मचारी रामलाल बदहवास भागता हुआ उसकी तरफ आया।

बाबू जी, बाबू जी…… वो साथ वाले ठेकेदार साहिब अपने बीच की दीवार तोड़ रहे हैं, आप जल्दी से बाहर आइये ।

रामलाल की ये बात सुनते ही चमन शर्मा के होश उड़ गये और वो बाहर की तरफ़ भागा ।

चमन शर्मा जालंधर शहर के माडल टाउन क्षेत्र में फास्ट फूड की दुकान चलाता था और यहां पास ही में उसका गोदाम था जहां पर सारा सामान रखा जाता था, और फिर बनाया हुआ सामान दुकान पर भेजा जाता था। चमन शर्मा के गोदाम के साथ वाली इमारत में ठेकेदार हरपाल सिंह का ऑफिस था। दोनों इमारतों की बीच लगभग आठ फीट उंची एक दीवार थी जो इन इमारतों को विभाजित करती थी।

हरपाल सिंह एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उसकी पुलिस एवम राजनेताओं के साथ सांठ गांठ थी। पिछले कुछ समय से वो चमन शर्मा पर दबाव डाल रहा था कि वो अपनी इमारत को आधे दाम में उसे बेच दे ताकि वो अपना ऑफिस बड़ा कर सके। ऐसा न करने पर उसने बिना कोई रकम दिये ही चमन शर्मा की इमारत पर कब्ज़ा करने की धमकी दी थी।

हरपाल सिंह का प्रस्ताव मानने लायक नहीं था इसलिए उसने इस इस प्रस्ताव को नहीं माना जिसके चलते हरपाल सिंह पिछले कुछ दिनों से उसे धमकी दे रहा था कि अगर उसने जल्द ही उसकी बात नहीं मानी तो नतीजा भयंकर होगा।

चमन शर्मा मन ही मन उसकी धमकी से भयभीत था जिसके चलते उसने अपने एक मित्र  राजेश के माध्यम से अपने इलाके के डी एस पी तेजपाल सिंह से बात की थी जिन्होने उसे आश्वासन दिया था कि उनके रहते हरपाल सिंह उसके साथ कोई बदमाशी नहीं कर पायेगा।

इन्हीं विचारों के दिमाग में चलते हुए चमन शर्मा भागता हुआ जब अपने कार्यालय के कमरे के साथ लगते खुले प्रांगन में आया तो सामने का दृश्य देखकर उसके होश उड़ गये।

हरपाल सिंह दोनों इमारतों के बीच की वो दीवार तोड़ रहा था जिसके एक ओर चमन शर्मा के कार्यालय के सामने का खुला प्रांगन था तथा जिसके दूसरी ओर हरपाल सिंह के कार्यालय के सामने का खुला प्रांगन था।

हरपाल सिंह अपने हिस्से वाले प्रांगन की ओर से दीवार तोड़ रहा था और उसने एक हिस्से से दीवार का उपरी भाग तोड़ भी दिया था जिसका मलबा चमन शर्मा के प्रांगन मे पड़ा था। ऊपर की दीवार एक हिस्से से काफी हद तक टूट गयी थी और उसकी उंचाई उस हिस्से से अब केवल चार फीट के बराबर रह गयी थी जिसके दूसरी ओर बड़े बड़े औजार पकड़े हरपाल सिंह और कई अन्य व्यक्ति दीवार पर लगाता प्रहार कर रहे थे।

चमन शर्मा पहली ही नज़र में भांप गया कि हरपाल सिंह के साथ दीवार को तोड़ रहे वो 7-8 हट्टे कट्टे किस्म के लोग प्रोफेशनल गुंडे थे तथा हरपाल सिंह ने उन्हे इसी वारदात को अंजाम देने के लिए बुलाया होगा।

डर की एक जबरदस्त लहर चमन शर्मा के शरीर में सिर से पैर तक दौड़ गयी पर फिर भी उसने अपना सारा साहस बटोरा और ज़ोर की गर्जना की।

हरपाल सिंह तुम ये क्या अनर्थ कर रहे हो, क्या तुम्हे पता नहीं इसका अंजाम क्या हो सकता है। मैं अभी पुलिस को बुलाउंगा और तुम्हारी बाकी कि ज़िंदगी जेल की सलाखों के पीछे निकल जाएगी। भलाई इसी में है कि तुम चुपचाप ये गंदा काम यहीं बंद कर दो और मुझसे माफी मांग लो।

हरपाल सिंह उसकी इस धमकी को सुनकर एक दम से रुक गया और उसे देखकर उसके साथ दीवार तोड़ रहे गुंडे भी रुक गये। इससे पहले कि चमन शर्मा उसके रुकने का सही कारण समझ पाता, माहौल में हरपाल सिंह का एक ज़ोरदार ठहाका गूंज उठा। 

हाहाहा । तू हरपाल सिंह को पुलिस से डराने की कोशिश कर रहा है, इतना साहस कहां से आ गया तुझमें, चमन शर्मा। क्या तू जानता नहीं इस शहर की सारी पुलिस हरपाल सिंह की जेब में रहती है और किसी पुलिस वाले की मजाल नहीं जो आज तेरी सहायता कर सके। ये कहकर हरपाल सिंह ने ज़ोर का एक और अट्टाहस किया और इस बार उसके साथ खड़े गुंडे भी ज़ोर ज़ोर से हंस कर चमन शर्मा की खिल्ली उड़ाने लगे।

भय के मारे अब चमन शर्मा का बुरा हाल हो चुका था तथा उसे अपने आस पास सब कुछ घूमता हुआ दिखाई दे रहा था। फिर भी उसने अपना सारा साहस इक्ट्ठा किया और हरपाल सिंह को एक बार फिर से ललकारा ।

हरपाल सिंह, अगर तुझे अपनी ताकत पर इतना ही घमंड है तो मुझे सिर्फ 30 मिनट दे दे। फिर मैं तुझे दिखाता हूं कि शहर की सारी पुलिस तेरी जेब में है या नहीं।

चमन शर्मा की इस ललकार को सुनकर हरपाल सिंह के चेहरे पर बहुत खूंखार भाव आ गये और वो भीषण गर्जना करते हुये बोला।

दो कौड़ी के आदमी, तेरी इतनी मजाल कि तू हरपाल सिंह की ताकत को चुनौती दे। कहते हुए हरपाल सिंह और उसके गुंडों ने देखते ही देखते दीवार के टूटे हुये हिस्से को नीचे तक तोड़ दिया और उस हिस्से से सब उसकी इमारत में घुस आये।

जा दिया तुझे समय । 30 मिनट नहीं पूरे 60 मिनट दिये तुझे। अपनी घड़ी को ध्यान से देख चमन शर्मा, इस समय दोपहर के तीन बजकर दस मिनट हुये हैं। तेरे पास चार बजकर दस मिनट तक का समय है। जिस पुलिस वाले को या जिस गुंडे को बुलाना चाहे बुला ले । मैं भी देखता हूं आज तुझे हरपाल सिंह के कहर से कौन बचाता है।

इतना कहकर हरपाल सिंह ने फिर से एक ज़ोरदार अट्टाहस किया और अपने साथ खड़े गुंडों को रुक जाने का आदेश दिया जो अब चमन शर्मा की इमारत के कुछ और हिस्सों को तोड़ने में लगे हुये थे।

डर के मारे चमन शर्मा की जान निकल रही थी पर फिर भी उसने अपने मित्र राजेश को फोन लगाया और जल्दी जल्दी से उसे सारी बात बताकर मदद करने के लिये कहा । राजेश ने उसे पांच मिनट प्रतीक्षा करने को कहा और साथ ही ये सलाह भी दी कि इतने समय में वो अपने इलाके के थाने में फोन करके हरपाल सिंह की बदमाशी की रिपोर्ट लिखवाकर पुलिस से सहायता मांगे।

चमन शर्मा की जैसे जान मे जान आयी और उसने तुरंत फोन काट कर थाना माडल टाउन का नंबर मिला दिया। हरपाल सिंह ये सारी कार्यवाही देख रहा था और लगातार मुस्कुरा रहा था।

4-5 बार घंटी बजने के बाद दूसरी ओर से किसी ने फोन उठाया और चमन शर्मा के कानों में आवाज़ सुनाई दी।

थाना माडल टाउन से मुंशी सतवीर सिंह बात कर रहा हूं, कहिये मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूं।

ये सुनते ही चमन शर्मा को मानो नया जीवन मिल गया हो । उसने अपना टूट चुका साहस दोबारा इक्ट्ठा किया और बोला।

सर मैं थाने से पांच मिनट की दूरी से ही चमन शर्मा बोल रहा हूं, कुछ गुंडों ने मेरे गोदाम पर कब्ज़ा करने की नीयत से हमला कर दिया है और मेरे गोदाम की एक दीवार का कुछ हिस्सा भी तोड़ दिया है। आप जल्दी से पुलिस भेजिये और इन गुंडों को रोकिये।

आप बिल्कुल चिंता न करें श्रीमान, और हमें अपना पता नोट करवायें। पुलिस तुरंत आपकी सहायता के लिए कार्य करेगी। दूसरी ओर से सतवीर सिंह की आश्वस्त करने वाली आवाज़ आयी।

चमन शर्मा का सारा साहस वापिस आ गया। उसने अपना पता नोट करवाया और बोला।

मेरे साथ वाली इमारत में ठेकेदार हरपाल सिंह का ऑफिस है और उसने ही अपने गुंडों के साथ अपनी तरफ से दीवार तोड़ कर हमला किया है। आप कृप्या जल्दी पुलिस भेज दीजिये। कहते कहते चमन शर्मा ने हरपाल सिंह की ओर विजयी मुस्कान के साथ देखा।

क्या नाम बताया आपने श्रीमान। दूसरी ओर से सतवीर सिंह की आवाज़ मे चिंता झलक रही थी।

जी, ठेकेदार हरपाल सिंह, चमन शर्मा ने दोहराया।

कृप्या कुछ देर के लिये लाइन पर बने रहें। ये कहकर सतबीर सिंह ने उसकी कॉल होल्ड पर डाल दी।

चमन शर्मा के मन में एक बार फिर शंका ने जन्म ले लिया और हरपाल सिंह के मुस्कुराते चेहरे को देखकर वो शंका और भी गहरी हो गयी।

श्रीमान जी, हमें अभी अभी सूचना मिली है कि थाने की सारी पुलिस फोर्स को तुरंत वी आई पी डयूटी पर जाना पडेगा जिसके कारण हम अगले कुछ समय के लिए आपकी सहायता के लिए थाने से पुलिस नहीं भेज सकते। सतवीर सिंह की इस आवाज़ के साथ ही दूसरी तरफ से कॉल काट दी गई।

चमन शर्मा के शरीर से मानो किसी ने जान ही निकाल ली हो। अभी वो सतवीर सिंह के इस एकदम से बदले इस व्यवहार का कारण समझने की कोशिश कर ही रहा था कि उसके कानों मे हरपाल सिंह का ज़ोरदार अट्टाहस पड़ा।

हाहाहा। क्या कहा थाने वालों ने? यही न कि सारी पुलिस वी आई पी डयूटी पर है और तेरी सहायता के लिये कोई नहीं आ सकता।

हां मगर तुम्हें ये सब कैसे पता? घबराये हुये चमन शर्मा ने पूछा।

आज तू शहर के किसी भी थाने में फोन करले, हरपाल सिंह का नाम सुनते ही सब तेरी सहायता करने से मना कर देंगे। आज तो तेरी सहायता तेरा भगवान भी नहीं कर सकता। एक और अट्टाहस के बीच में हरपाल सिंह बोला। उसके साथ खड़े गुंडे भी ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे।

इतना शोरगुल सुनकर आसपास के कुछ लोग आये पर हरपाल सिंह और गुंडों को देखकर चुपचाप खिसक गये।

असमंजस में पड़ा हुआ चमन शर्मा अभी सोच ही रहा था कि वो अब क्या करे, कि इतनें मे उसके मोबाइल की घंटी बजने लगी। स्क्रीन पर राजेश का नाम चमकता देखकर उसके शरीर में जैसे फिर से जान आयी और उसने कॉल रिसीव करने के लिये बटन दबा दिया।

थाने की पुलिस के साथ कुछ समस्या लगती है जिसके चलते उन्होने डी एस पी तेजपाल के कहने पर भी बहाना बना दिया है। पर तुम चिंता मत करो, डी एस पी तेजपाल दस मिनट के अंदर खुद मौके पर पहुंच रहे हैं। दूसरी ओर से राजेश ने एक ही सांस में बोल दिया।

सुनते ही चमन शर्मा की जान मे जान आयी और उसने राजेश को अनेक धन्यवाद देकर कॉल बंद कर दी।

दस मिनट के अंदर इस इलाके के डी एस पी तेजपाल सिंह यहां पहुंच रहे हैं। अब तू अपनी खैर मना हरपाल सिंह………… जोशीले अंदाज़ में चमन शर्मा ने कहा।

चलो ये तमाशा भी देख लेते हैं। हंसते हुये हरपाल सिंह की आवाज़ आयी, जिसके माथे पर अभी भी कोई शिकन नहीं थी। उसने अब अपने लिये चाय का एक कप मंगवा लिया था और आराम से खड़ा होकर चाय की चुस्कियां ले रहा था।

किसी आशंका के चलते चमन शर्मा का दिल बहुत घबरा रहा था और वो हरपाल सिंह की इस लगातार बनी हुई मुस्कान का कारण समझ नहीं पा रहा था।

इस स्थिति को मुश्किल से 5-6 मिनट हुये होंगे कि वातावरण में पुलिस सायरन की ज़ोरदार आवाज़ गूंज उठी और जब तक कोई कुछ समझ सके, पुलिस की एक जिप्सी चमन शर्मा के कार्यालय के मुख्य दरवाजे के एक दम आगे ज़ोर की ब्रेक्स लगाती हुई रुक गयी।

देखते ही देखते पुलिस के 4-5 सशस्त्र जवान जिप्सी में से उतरे और उनके साथ ही चमन शर्मा को डी एस पी तेजपाल सिंह का चेहरा भी देखाई दे गया, जो जिप्सी में से तेजी के साथ उतर कर उसके गोदाम की ओर ही आ रहे थे।

डी एस पी सर, डी एस पी सर, देखिये आप के होते हुये ये शैतान किस तरह दिन दिहाड़े कहर मचा रहा है। चमन शर्मा की आवाज़ में ऐसी याचना थी जैसे साक्षात भगवान उसके सामने आ गये हों।

आप बिल्कुल चिंता मत कीजिये चमन शर्मा जी, डी एस पी तेजपाल सिंह के रहते हुये उसके इलाके में कोई शैतान अपनी मनमानी नहीं कर सकता। पुलिस के आगमन को देखकर आस पास के लोगों की भीड़ इक्ट्ठी होनी शुरू हो गयी थी।

डी एस पी तेजपाल सिंह लगभग 45 साल की उम्र के जट सिख पुलिस अफसर थे। उनका कद काठ किसी भी सामान्य व्यक्ति को भयभीत कर देने के लिये काफी था और इलाके में उनकी छवि एक इमानदार और न्याय प्रिय पुलिस अफसर की थी।

ये क्या बदमाशी हो रही है मेरे इलाके में हरपाल सिंह। वातावरण में शेर की दहाड़ की तरह डी एस पी तेजपाल सिंह की आवाज़ गूंज उठी, जिसे सुनकर चमन शर्मा का साहस एक बार फिर वापिस आ गया।

तेरी बदमाशियों के कई किस्से सुने हैं मैने, और आज अपनी आंखों से देख भी लिया। चुपचाप अपने गुंडों को लेकर बाहर निकल आ और हमारे साथ चल, वर्ना अंजाम बहुत बुरा होगा। कहते कहते तेजपाल सिंह ने अपना रिवाल्वर बाहर निकाल लिया था जिसे देखकर साथ आये हुये जवानों ने भी अपनी राइफल्स हमले की मुद्रा में तान लीं थीं।

डी एस पी साहिब, आप मेरे मामले में दख्ल अंदाज़ी न ही करें तो अच्छा होगा। आप मेरे साथ दो मिनट मेरे ऑफिस में आइये तो मैं आपको सब समझा सकता हूं। हरपाल सिंह के चेहरे पर चिंता के अभी भी कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।

मुझे बिकाऊ समझा है क्या, जो ऑफिस मे बुला कर मेरे इमान की बोली लगाना चाहता है हरपाल सिंह। मैं गुरु का सिंह हूं, एक बार जिसके साथ खड़ा हो गया, फिर पीठ नहीं दिखाता। तेरी भलाई इसी में है कि ये तमाशा बंद करके मेरे साथ चल, वर्ना मैं तुझे घसीट कर ले जाउंगा। तेजपाल सिंह की इस दहाड़ को सुनकर आस पास इक्ट्ठी हुई भीड़ सहम गई और चमन शर्मा का साहस और बढ़ गया।

ऐसी भी क्या जल्दी है डी एस पी साहिब। हरपाल सिंह की आवाज़ में मक्कारी साफ साफ झलक रही थी।

मैने तो आपसे प्यार बढ़ाना चाहा था पर अगर आप ताकत का खेल ही खेलना चाहते हैं तो फिर अब देखिये मैं क्या करता हूं। कहते कहते हरपाल सिंह ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल कर दिया था।

सबके देखते ही देखते हरपाल सिंह ने मोबाइल फोन पर किसी से धीरे से कुछ बात की और फिर फोन डी एस पी तेजपाल सिंह की ओर बढ़ा दिया।

ये लीजिये डी एस पी साहिब, अपने आका से बात कीजिये। हरपाल सिंह की आवाज़ में इतना आत्मविश्वास झलक रहा था कि न चाहते हुये भी तेजपाल सिंह ने फोन ले लिया।

डी एस पी तेजपाल सिंह स्पीकिंग, किससे बात हो रही है मेरी। रोबिली आवाज़ में तेजपाल सिंह ने कहा, जिनका अपना मन भी इस उत्सुकुता से भर चुका था कि दूसरी ओर ऐसा कौन आदमी है जिसे हरपाल सिंह ने उसका आका कहकर बुलाया है।

जाने दूसरी ओर से क्या आवाज़ आयी, पर उसे सुनते ही तेजपाल सिंह एक दम से सावधान मुद्रा में आ गये और उनके मुंह से निकला, यस सर।

पर सर, ये शैतान दिन दिहाड़े ज़ुल्म कर रहा है, ऐसे कैसे बिना कुछ किये यहां से वापिस चला जाऊं। मैं इस दुष्ट को गिरफ्तार किये बिना यहां से नहीं जाउंगा। दूसरी तरफ से फिर कुछ कहा गया जिसके जवाब में तेजपाल सिंह ने बड़े आदर के साथ कहा। 

चमन शर्मा के साथ साथ ही आस पास खड़ी भीड़ भी हैरान होकर ये सारा कांड देख रही थी, जबकि हरपाल सिंह के चेहरे की शैतानी बढ़ती जा रही थी।

आपका हर हुक्म मेरे सर माथे पर सर, पर अब बात सारी पुलिस फोर्स की आन की है। इतनी भीड़ खड़ी होकर इस ज़ालिम के जुल्म का तमाशा देख रही है। लोग पुलिस पर हंसेगे, सर। तेजपाल सिंह ने फिर बहुत आदर के साथ दूसरी तरफ से बोलने वाले को जवाब दिया।

पर सर, मेरी बात तो सुनिये सर। तेजपाल सिंह की आवाज़ बता रही थी कि दूसरी ओर से बोलने वाले के सामने वो विवश थे।

जी सर, ठीक है सर, मैं वापिस चला जाता हूं, पर ये बहुत बुरा हो रहा है सर। तेजपाल सिंह ने ये कहते कहते जब फोन डिस्कनेक्ट किया तो चमन शर्मा के चेहरे की चिंता और हरपाल सिंह के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गयी थी।

ठीक है हरपाल सिंह, आज तो मैं तेरे खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही किये बिना जा रहा हूं, पर तू जल्द से जल्द अपने इन गुंडों को दफा कर दे यहां से। अगर मेरे अंदर का सिंह जाग गया तो तेरा कोई फोन सुने बगैर ही गोली चला दूंगा। रिवाल्वर हवा में लहराते हुये डी एस पी तेजपाल सिंह ने हरपाल सिंह को खा जाने वाली नज़रों से देखते हुये कहा।

जैसा आपका हुक्म डी एस पी साहिब। वैसे भी आज की इस कार्यवाही का मतलब तो चमन शर्मा को अपनी ताकत दिखाना ही था, जो इसने अब ठीक तरह से देख ली है। मक्कारी भरी आवाज़ में हरपाल सिंह बोला।

15 दिन का समय देता हूं तुझे, चमन शर्मा। ये इमारत अपनी मर्जी से मेरे हवाले कर दे, नहीं तो अगली बार ये दीवार नहीं, पूरी इमारत ही तोड़ दूंगा और कोई मुझे रोक नहीं पायेगा। चमन शर्मा को धमकी देते हुये हरपाल सिंह ने एक बार फिर मक्कारी भरी नज़रों से डी एस पी तेजपाल सिंह की ओर देखा और ज़ोर से बोला, गाड़ियां निकालो सुखजीत।

अगले दो मिनट के अंदर हरपाल सिंह और उसके गुंडे गाड़ियों में बैठ कर वहां से चले गये और धीरे धीरे अब भीड़ भी छंटनी शुरु हो गयी थी।

आज तो मैने इस शैतान को किसी तरह से रोक लिया चमन जी, पर अगली बार शायद नहीं रोक पाऊंगा। इसकी पहुंच मेरे अनुमान से कहीं ज्यादा निकली। कहते हुये तेजपाल सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें साफ साफ झलक रहीं थीं।

तो अब मैं क्या करुं सर, मुर्दे की सी आवाज़ में चमन शर्मा ने कहा।

या तो इसका भी कोई बाप ढूंढिये, या फिर ये इमारत छोड़ दिजिये। कहते हुये तेजपाल सिंह अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ने लगे।

पर इस शैतान का बाप कहां से ढूंढ कर लाऊं सर, मरी हुई आवाज़ में चमन शर्मा ने कहा।

वाहेगुरु का नाम लेकर सच्चे मन से कोशिश कीजिये चमन जी। दुनिया में ऐसा कोई शैतान नहीं, जिसका अंत करने के लिये भगवान ने कोई फरिश्ता न बनाया हो। डी एस पी तेजपाल सिंह अपनी जिप्सी में बैठे और चमन शर्मा का कंधा थपथपा कर बोले। उनका इशारा पाकर ड्राईवर ने गाड़ी गियर में डाली और देखते ही देखते उनकी जिप्सी चमन शर्मा की आंखों से ओझल हो गयी।

अब कहां मिलेगा ऐसा फरिश्ता। चिंता में डूबे हुये चमन शर्मा के दिमाग में यही सवाल बार बार दौड़ रहा था।

हिमांशु शंगारी

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