Category Archives: zNovels and Books

संकटमोचक अध्याय 13

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

शशी नागर दैनिक प्रसारण के ब्यूरो चीफ थे। दैनिक प्रसारण जालंधर से प्रसारित होने वाला हिंदी का एक और बड़ा दैनिक समाचार पत्र था जिसका मुख्यालय किसी और प्रदेश में था। ब्यूरो चीफ होने के कारण शशी नागर का खबरों पर पूरा नियंत्रण रहता था।

एक बहुत ही भले इंसान थे शशी नागर। पत्रकार होते हुये भी उनमें पत्रकारों जैसा स्वभाविक तीखापन न होते हुये अधिकतर लोगों का भला करने की भावना रहती थी। समाचार पत्र के स्टाफ में उनका बहुत आदर था और सबके साथ बहुत प्रेम से बोलते थे वे।

अपने कार्यालय में बैठे कुछ समाचारों को देख रहे थे शशी नागर कि इतने में प्रधान जी का विशेष अंदाज़ वाला स्वर उनके कानों में गूंजा।

ओ मेरे ब्राहमण देवता की जय हो। अंदर आते हुये प्रधान जी ने नारा लगाया। नागर ने प्रधान जी के फोन के बाद ही दरबान को बोल दिया था की प्रधान जी आयें तो उन्हें सीधा अंदर भेज दिया जाये।

आईये प्रधान जी, बड़े दिनों बाद मुलाकात हो रही है आज। कैसे हैं आप। नागर ने प्रधान जी और राजकुमार के अभिवादन का हाथ जोड़कर उत्तर देते हुये कहा।

सब कुशल मंगल है आपके राज में ब्राहमण देवता। बस एक छोटा सा काम है आपसे। प्रधान जी ने सीधे काम की बात पर आते हुये कहा।

आपका कोई काम रुका है आज तक दैनिक प्रसारण में, जो आज रुक जायेगा। हंसते हुये नागर ने कहा।

ओ मैं ताबेदार मेरे नागर साहिब। प्रधान जी ने एक और नारा लगाया।

काम तो होते रहेंगे, सबसे पहले आप इतमिनान से बैठ कर चाय पीजिये। देखिये आपकी पसंद के बिस्किट मंगवाये हैं मैने। नागर के इतना कहते कहते एक कर्मचारी चाय और बिस्किट रख चुका था। नागर ने शायद पहले से ही बोल कर रखा था इस बारे में।

ओ देखा पुत्तर जी, इसको कहते हैं भाई। मेरी पसंद के बिस्किट तक याद हैं नागर साहिब को। एकदम बच्चों जैसे खुश होते हुये कहा प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये, जो पहले से ही मुस्कुरा रहा था।

अब बताईये प्रधान जी, क्या सेवा है मेरे लिये। प्रधान जी ने जब चाय की कुछ चुस्किया और दो बिस्किट अंदर कर लिये तो नागर ने अपने शहर विख्यात विनम्र स्वभाव में पूछा।

काम आपको राजकुमार बतायेंगे, मैं तो चाय और बिस्किट का मज़ा लूंगा ब्राहमण देवता, चाय तो बहुत आला बनी है। प्रधान जी की इस सरलता पर नागर और राजकुमार दोनो ही मुस्कुरा दिये।

राजकुमार के मुंह से सारी बात सुनने के बाद नागर ने प्रधान जी की ओर देखा जो अपनी चाय समाप्त करके उन दोनों की ओर ही देख रहे थे।

आप कोई चिंता मत कीजिये प्रधान जी, दैनिक प्रसारण पूरी तरह से आपका साथ देगा। आप सत्य के साथ हैं और हम आपके साथ हैं। निश्चिंत होकर लगाइये अपना मोर्चा। हम हर मोर्चे पर आपके साथ खड़े रहेंगे। नागर के स्वर में पूर्ण आश्वासन और अपनत्व था।

ओ बस तो फिर मेरी चिंता खत्म मेरे ब्राहमण देवता। बोलो नागर साहिब की………………जय । अपने ही अंदाज़ में जब प्रधान जी ने नारा लगाया तो राजकुमार और नागर, दोनों में से कोई भी ठहाका लगाये बिना न रह सका।

अजब था ये आदमी। प्यार से हर आदमी के सामने झुक जाता था, फिर चाहे इसकी जान ही ले लो। और एक बार किसी बात को लेकर अड़ गया तो फिर चाहे जान चली जाये, पर शान न जाये। इस समय प्रधान जी को एक बच्चे की तरह शशी नागर की जय जयकार करते देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये वही वरुण शर्मा है जिसका नाम सुनते ही भ्रष्ट अधिकारियों और जालिमों के पैरों के नीचे से ज़मीन और सिर के ऊपर से आसमान गायब हो जाता है। सरलता और साहस का अदभुत मिश्रण था इस आदमी में। राजकुमार के दिमाग में एक बार फिर प्रधान जी हावी हो चुके थे।

लो पुत्तर जी, ये तीसरा मोर्चा भी फतह हो गया। प्रधान जी के इन शब्दों ने राजकुमार को चौंकाया तो उसने देखा कि सोचते सोचते ही वो प्रधान जी के साथ नागर साहब के कार्यलय से निकल कर कार पार्किंग तक आ गया था।

अब बचा केवल एक मोर्चा। कहते कहते ही प्रधान जी ने अपना मोबाइल निकाल कर कोई नंबर डायल किया तो राजकुमार समझ गया कि प्रधान जी ने पंजाब ग्लोरी का नंबर मिलाया है।

हैलो………मैं प्रधान बोल रहा हूं………………आकाश जी आ गये क्या……………ओके जी थैंक्यू। कहते हुये फोन बंद कर दिया प्रधान जी ने।

चलो पुत्तर जी, जल्दी से गाड़ी निकालो, आकाश जी आ गये हैं। प्रधान जी कहते हुये तेजी से गाड़ी में बैठ गये।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 12

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

युसुफ आज़ाद जालंधर से प्रकाशित होने वाले एक राष्ट्रीय अखबार अमर प्रकाश के ब्यूरो चीफ थे। क्योंकि इस अखबार के मालिक किसी और प्रदेश में स्थित अखबार के मुख्यालय में बैठते थे, युसुफ आज़ाद के पास इस क्षेत्र में अखबार को लेकर निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।

मध्यम से थोड़े छोटे कद के युसुफ आज़ाद को सब आज़ाद के नाम से ही बुलाते थे। देखने में बिलकुल एक साधारण आदमी की तरह लो प्रोफाइल रहना पसंद करते थे, किंतु उनकी वास्तविकता कुछ और ही थी। तलवार की धार से भी तेज़ थी उनकी कलम की धार, फिर चाहे उसके नीचे कोई भ्रष्ट अफसर आ जाये या मंत्री, सबका अंजाम कटना और फिर अपने घाव सहलाना ही होता था।

कई प्रदेशों के बड़े बड़े अधिकारी, मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री भी इनकी कलम की धार से घायल हो चुके थे। जालंधर ट्रांसफर हुए उन्हें एक साल से कुछ अधिक समय ही हुआ था पर इतने कम समय में ही उन्होंने अपनी निर्भीक पत्रकारिता की धाक जमा ली थी। जितनी तेज़ एक कुशल गृहणी उबला हुआ आलू छीलती है, उससे कहीं तेज़ आज़ाद भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं को छील देते थे।

एकदम बेदाग छवि वाले आज़ाद ने अपने हैरत अंगेज़ कारनामों से पुलिस और प्रशासन को हिला कर रख दिया था। खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं था और उनके पत्रकार न जाने कहां कहां से ढूंढ कर अंदर की खबरें निकाल लाते थे।

आज़ाद उस समय अपने कार्यालय में ही बैठे हुये थे जब एक कर्मचारी भीतर आया और उसने प्रधान जी के आने की सूचना दी। आज़ाद ने उन्हें अंदर भेजने के साथ ही चाय का प्रबंध भी करने के लिये कहा।

ओ मेरे आज़ाद भाई। प्रधान जी की इस आवाज़ को सुनते ही पहचान गये थे आज़ाद। देखा तो सामने प्रधान जी कमरे में प्रवेश कर रहे थे और उनके पीछे पीछे राजकुमार भी भीतर आ रहा था।

प्रधान जी के नमस्कार का जवाब देकर जब आज़ाद ने राजकुमार से हाथ मिलाया तो दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी, जैसे हाथ मिलाने के बहाने कोई उर्जा एक दूसरे के शरीर में ट्रांसफर कर रहे हों।

ये देखकर प्रधान जी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी। वो जानते थे कि राजकुमार के साथ आज़ाद के बहुत घनिष्ठ संबंध थे और राजकुमार शहर के उन बहुत कम लोगों में से एक था जिन्हें आज़ाद अपने घर पर भी मिलते थे।

कहिये कैसे आना हुआ प्रधान जी। अपनी कुर्सी पर बैठते हुये आज़ाद ने पूछा।

बस आज आपसे एक काम पड़ गया है, आज़ाद भाई। प्रधान जी ने मीठे स्वर में कहा।

वो तो मैं जानता ही हूं प्रधान जी, वर्ना बिना काम के तो आप चाय पीने भाजी या बाऊजी के पास ही जाते हैं। इस गरीब भाई की याद कहां आती है। आज़ाद के शब्दों में छिपा व्यंग्य भी उनकी कलम की धार की तरह ही तेज़ था।

हे हे हे……ऐसी कोई बात नहीं आज़ाद भाई। झेंपने वाले अंदाज़ में प्रधान जी ने कहा।

तो फिर कैसी बात है प्रधान जी। आज़ाद की पैनी नज़र प्रधान जी के चेहर पर जम गयी थी।

अपने आप को बुरी तरह से फंसा हुआ देखकर प्रधान जी ने सहायता की दृष्टि से राजकुमार की ओर देखा जो उनकी ओर देख कर ही मुस्कुरा रहा था।

अरे कंजर, मैं यहां फंसा पड़ा हूं और तू मज़ा ले रहा है। आज़ाद की बात से बचने के लिये प्रधान जी ने निशाना राजकुमार की ओर लगा दिया।

ठीक ही तो कह रहे हैं आज़ाद भाई। पिछली बार कब आये थे हम इनके पास चाय पीने। अरे हां याद आया, जब न्याय सेना ने तीन महीने पहले पिछला बड़ा केस पकड़ा था। राजकुमार भी मज़ा ले रहा था।

पिछला बड़ा केस पकड़ा था, तो इसका मतलब न्याय सेना फिर कोई बड़ा केस पकड़ चुकी है। ये तो मज़ेदार लगता है। चलिये प्रधान जी, छोड़ दिया आज आपको, आइंदा ध्यान रखियेगा………………… आज़ाद के अंदर का पत्रकार जाग चुका था। उनकी नज़र राजकुमार पर जम चुकी थी और राजकुमार उनकी इस नज़र का अर्थ भली भांति समझता था।

जब तक प्रधान जी ने टेबल पर आई चाय पी, राजकुमार ने सारा किस्सा आज़ाद को संक्षेप में सुना दिया।

तो ये है सारी बात भाई साहिब। अब अपनी गणना कहती है कि ये मामला बड़ा बनने वाला है और इसमें हमें आपकी पूरी मदद चाहिये होगी। राजकुमार ने ठंडी हो चुकी चाय का कप उठाते हुये कहा।

आपकी गणना एकदम सही है राजकुमार। आज़ाद के चेहरे पर एक अनोखी चमक थी। कुछ दिनों से मेरे कुछ पत्रकार भी लगे हुए हैं इस मामले के पीछे, पर कोई खास सफलता नहीं मिल पा रही थी। आज़ाद ने अपनी बात पूरी की।

आपके पत्रकार…………………ये स्वर प्रधान जी के मुंह से निकला था।

जी हां प्रधान जी, पुलिस में हमारे किसी सूत्र ने कुछ दिन पहले बताया था कि ऐसा कोई मामला चल रहा है जिसे राजनैतिक दबाव के कारण दबाने की कोशिश की जा रही है। तब से हमारे पत्रकार इस मामले के पीछे लगे हुये हैं। आज़ाद बोलते जा रहे थे।

फिर पता चला कि आज सुबह आप लोग एस एस पी सौरव कुमार से मिलने गये थे चमन शर्मा के साथ, तो मैं समझ गया था कि अब इस खेल में मज़ा आने वाला है। मुस्कुराते हुये आज़ाद ने कहा।

तो इसका मतलब आपको हमारे आने का कारण पहले से ही पता था। हैरान होते हुये प्रधान जी ने पूछा।

अरे प्रधान जी, पत्रकारिता करते हैं, झख थोड़े ही न मारते हैं ऑफिस में बैठ कर। शहर की इतनी खबर तो रखनी ही पड़ती है। आज़ाद अब फिर प्रधान जी को छेड़ रहे थे।

तो आपको क्या लगता है भाई साहिब, कहां तक जा सकता है ये मामला। राजकुमार ने सीधा अपने मतलब की बात पर आते हुये पूछा।

बहुत ज़ोर लगेगा इसमे बॉस, हरपाल सिंह की पहुंच बहुत ऊपर तक है। अपने विशेष अंदाज़ में कहा आज़ाद ने। अपने संपर्क के लोगों को बातचीत के दौरान कई बार बॉस कहकर बुलाते थे आज़ाद।

कितनी ऊपर तक है भाई साहिब। राजकुमार की आवाज़ में गंभीरता भरी हुई थी।

मंत्री अवतार सिंह का हाथ है इसके सिर पर। और आप तो जानते ही हैं कि अवतार सिंह आज की डेट में सी एम के बहुत करीबी मंत्रियों में से एक है। इसीलिये तो इतना बड़ा मंत्रालय भी है उनके पास। पुलिस में मेरे विश्वस्त सूत्रों ने बताया है कि सीधा उसका दबाव है पुलिस पर, इस मामले में हरपाल सिंह की हर तरह से मदद करने के लिये। आज़ाद का स्वर भी अब गंभीर हो गया था।

तो आपके ख्याल से इस मामले को सुलझाने का क्या तरीका है, भाई साहिब। राजकुमार के स्वर के साथ साथ अब प्रधान जी के चेहरे पर भी गंभीरता आ चुकी थी, मामले की गहराई को समझते हुये।

जम कर शोर मचाना होगा आप लोगों को, इतना शोर जो सीधा सी एम के कानों में पहुंच जाये और वो खुद अवतार सिंह को इस मामले से दूर रहने के लिये बोल दें। तभी सुलझेगा ये मामला। आज़ाद ने अपनी बात पूरी की।

बड़ा तमाशा करना पड़ेगा फिर तो। कहता कहता राजकुमार कुछ सोचता जा रहा था।

बिल्कुल बड़ा तमाशा करना होगा। पर हां, एक बहुत अच्छी बात है आपके पक्ष में। आज़ाद की इस आवाज़ ने राजकुमार की विचार श्रृंख्ला तोड़ी।

वो क्या भाई साहिब। राजकुमार की नज़रें एक बार फिर आज़ाद के चेहरे पर जम चुकीं थीं।

मेरे सूत्रों के अनुसार शहर की पुलिस इस मामले में हरपाल सिंह का साथ बिल्कुल नहीं देना चाहती। बल्कि पुलिस के बहुत से अधिकारी हरपाल सिंह के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने को लेकर एकमत हैं। केवल राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस हरपाल सिह की मदद मजबूरी में कर रही है। आप समझ गये न मेरा इशारा। आज़ाद की नज़रें राजकुमार के चेहरे पर जमी हुईं थीं और प्रधान जी उन दोनों के बीच हो रही इस बातचीत का मज़ा ले रहे थे।

प्रधान जी जानते थे कि आज़ाद गजब के बुद्दिजीवी और इंटेलिजैंट थे, और अपने जैसे अन्य लोगों की कम्पनी में उन्हें बहुत मज़ा आता था। इसीलिये उनके और राजकुमार के बीच बहुत पटती थी।

ओह…………तो आपके कहने का अर्थ ये है कि इस केस को हल करने के लिये हमें पुलिस और राजनेताओं के बीच के इस मतभेद का फायदा उठाना है। राजकुमार ने जैसे आज़ाद की पहेली पूरी की।

बिल्कुल ठीक समझे आप। प्रधान जी, मैं कहता हूं न कि ये लड़का आपके पास एक हीरा है। मुस्कुराते हुये आज़ाद ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

ये तो मेरी न्याय सेना का सबसे बेशकीमती नगीना है, आज़ाद भाई। प्रधान जी ने गर्व भरी नज़रों से राजकुमार को देखा जो किसी गंभीर सोच में डूबा हुआ था।

तो फिर ठीक है भाई साहिब, आप अपना मोर्चा संभाल लीजिये और हम अपना मोर्चा संभाल लेते हैं। कल इस मामले में कुछ बहुत बड़ा होने वाला है। अखबार में जगह बचा कर रखियेगा। राजकुमार ने आज़ाद की ओर देख कर मुस्कुराते हुये कहा।

ऐसी कवरेज के लिये तो हम लोग सदा ही तैयार रहते हैं। आप लोग निश्चिंत होकर अपना मोर्चा जमाईये। अमर प्रकाश पूरी तरह से आपके साथ है। आज़ाद के शब्दों में पूर्ण आश्वासन था।

तो ठीक है फिर भाई साहिब, अब चलते हैं, बहुत तैयारी करनी है अभी। कहते कहते राजकुमार और उसके साथ साथ प्रधान जी भी कुर्सी से उठे और आज़ाद से विदा ली।

अगर इस मामले में पुलिस या राजनैतिक दायरे के भीतर की कोई ऐसी खबर मिले भाई साहिब, जिससे हमें इस मामले को सुलझाने में मदद मिले, तो जरूर बता दीजियेगा। दरवाजे से मुड़ते हुये राजकुमार ने आज़ाद से कहा और फिर उनके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही प्रधान जी के पीछे हो लिया जो पहले ही केबिन से बाहर निकल चुके थे।

ये मामला तो लगता है ज़ोर पकड़ेगा पुत्तर जी। गाड़ी की ओर जाते प्रधान जी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

ज़ोर पकड़ेगा तभी तो मज़ा आयेगा प्रधान जी। आसान काम में क्या मज़ा है। कहते कहते राजकुमार प्रधान जी का जवाब सोच कर पहले से ही हंस दिया।

अरे चोर, ये मेरा डॉयलाग है। प्रधान जी भी साथ ही हंस दिये।

और आप किसके हैं प्रधान जी। राजकुमार ने प्रधान जी को शब्दजाल में फंसाते हुये कहा।

ओ मेरी जिंद भी तेरी और जान भी तेरी मेरे युवराज। कहते कहते प्रधान जी ने गाड़ी का दरवाजा खोला और अंदर बैठ गये।

तो अब क्या प्रोग्राम है प्रधान जी, राजकुमार ने भी गाड़ी में बैठते हुये कहा।

आकाश जी तो शायद अभी भी नहीं आये होंगे। क्यों न शशी नागर जी से मिल लिया जाये तब तक। प्रधान जी ने अपनी राय पेश की।

ए क्लास विचार है प्रधान जी। तो लगाईये फोन और कीजिये मीटिंग फिक्स। राजकुमार के कहते कहते ही प्रधान जी शशी नागर का नंबर मिला चुके थे।

ओ मेरे ब्राहमण देवता, ओ मेरे पंडित जी……………………ओ क्या हाल है जी। दूसरी तरफ से हैलो कहते ही प्रधान जी ने एक दम से हमला बोल दिया था।

बस आपके दर्शन करने का मन किया तो फोन कर लिया मेरे ब्राहमण देवता, आ जायें अभी। ओ ठीक है जी, पांच मिनट में पहुंच गये आपके पास जी, चाय शाय तैयार करवाईये जी। प्रधान जी के बात समाप्त करने तक राजकुमार ने गाड़ी स्टार्ट करके अगली मंजिल को ओर बढ़ा दी थी।

गाड़ी चलाता हुआ राजकुमार सोच रहा था कि उसे कितना कुछ सीखने को मिला था प्रधान जी के साथ रहकर। हर एक व्यक्ति के लिये एक अलग प्रेम से भरा संबोधन रखा था उन्होंने, जो एक अलग ही पहचान देता था उन्हें।

कई बार दिन में बहुत बार चाय पीने के कारण रात तक जलन के मारे बहुत बुरा हाल हो जाता था उनका, पर जहां भी जाते थे, चाय जरूर पीते थे। इसका कारण भी बताया था उन्होनें राजकुमार को।

देखो पुत्तर जी, ये बड़े बड़े अफसर, नेता, संपादक, पत्रकार हर ऐरे गैरे को चाय नहीं पूछते। सिर्फ खास लोगों को ही पूछते हैं। इसलिये कभी मना नहीं करना चाहिये। ये उनका तरीका होता है दूसरे लोगों को बताने का कि हम उनके लिये खास हैं।

मेरी बात को याद रखना पुत्तर जी, समाज में जितने बड़े लोग आपकी विशेष इज्जत करेंगे, उतना ही आपका रुतबा दूसरे लोगों की नज़र में बड़ा होता जायेगा। ऐसा होते ही आपके कई सारे काम आसानी से ही हो जायेंगे।

उदाहरण के लिये, जब हम एस पी साहिब के पास बैठ कर चाय पीते हैं तो उस दौरान उनसे मिलने जो भी थाना प्रभारी या दूसरे पुलिस अधिकारी आते हैं, वो बड़े ध्यान से नोट करते हैं इन चीज़ों को।

अगली बार जब हम उनके पास किसी काम के लिये जाते हैं तो उन्हें पता होता है कि अगर हमारा काम ठीक से नहीं किया तो एस पी साहिब से शिकायत हो जायेगी। इसलिये वो हमारा काम भाग भाग कर करते हैं।

कितनी साधारण लेकिन कितनी व्यवहारिक समझ थी प्रधान जी को। शिक्षा के नाम पर कुछ विशेष नहीं था उनके पास, किंतु व्यवहारिक ज्ञान बहुत था उन्हें। जीवन के आड़े टेड़े रास्तों से बार बार गुज़र कर, ठोकरें खा कर और फिर संभल कर उठते हुये हासिल किया था प्रधान जी ने ये ज्ञान।

लो पुत्तर जी, आ गया नागर जी का कार्यालय। प्रधान जी के इन शब्दों ने राजकुमार की तन्द्रा भंग की तो उसने देखा कि उनकी मंजिल आ चुकी थी। गाड़ी पार्किंग में लगा कर वे दोनों तेजी से एक ओर चल दिये।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 11

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

सरदार हरजिंदर सिंह, मुख्य संपादक सत्यजीत समाचार। एक गजब का शानदार व्यक्तित्व। जितना वो अपनी चाण्क्य जैसी कूटनीति के लिये प्रसिद्ध थे, उतना ही अपने खुले दिल से लगाये गये ठहाकों के लिये। उनके दरबार में सदा रौनक लगी ही रहती थी और उनके ठहाके अकसर माहौल में गूंजा करते थे।

ऊपर से बहुत शांत दिखने वाले हरजिंदर सिंह सागर की गहराई के स्वामी थे। किसी भी बात की जड़ तक एक सैकेंड में पहुंच जाना और विकट से विकट परिस्थिति में भी सटीक फैसला ले लेना, उनकी बहुत सारी खूबियों मे से थे। प्रदेश के राजनैतिक और सामाजिक समीकरण में इनका एक बहुत ही अहम हिस्सा था और प्रदेश के मंत्रियों से लेकर देश कि प्रधानमंत्रियों तक से इनके मधुर संबध बने रहते थे।

अधिकतर मामलों को शांत ढंग से सुलझा लेने में विश्वास रखते थे पर ये शांति केवल उनकी पसंद थी, कमज़ोरी नहीं। एक बार किसी फैसले को लेकर अड़ गये तो फिर सामने चाहे जो भी आ जाये, परवाह नहीं। सारा पंजाब इन्हें भाजी के नाम से जानता था और छोटे बड़े सब लोग इन्हें इसी नाम से बुलाते थे।

भाजी का पंजाबी में अर्थ बड़ा भाई होता है। क्योंकि वे सब पर बड़े भाई जैसा स्नेह रखते थे और बड़े भाई की तरह ही उचित समय पर लोगों को मार्गदर्शन भी देते थे, भाजी नाम उनके व्यक्तित्व पर पूरी तरह से सूट करता था।

भाजी का दरबार लगा हुआ था और वहां बैठे किसी सज्जन की बात पर भाजी ज़ोर ज़ोर से अपने प्रसिद्ध ठहाके लगा रहे थे कि इतने में संतरी ने आकर कहा। भाजी, प्रधान जी मिलने के लिये आये हैं।

उन्हें फौरन अंदर भेजो। हंसते हुये भाजी ने कहा।

संतरी के जाने के चंद सैकेंड बाद ही प्रधान जी और राजकुमार भाजी के कार्यालय में दाखिल हुये और भाजी को देखते ही प्रधान जी ने अपने ही स्टाइल में नारा छोड़ दिया।

ओ मेरे भाजी ज़िन्दाबाद, ओ मेरे भाजी ज़िन्दाबाद। वहां बैठे अधिकतर लोग जो प्रधान जी को और उनके इस अंदाज़ को जानते थे, उनके इस नारे पर मुस्कुराने लगे।

आओ आओ वरुण, सब ठीक है। भाजी उन चंद लोगों में से थे जो प्रधान जी को उनका नाम लेकर बुलाते थे।

आगे बढकर प्रधान जी और राजकुमार ने भाजी के चरण स्पर्श किये और आशिर्वाद लेने के बाद सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठ गये।

चरणजीत, प्रधान जी और राजकुमार के लिये पैप्सी कोला लेकर आओ। भाजी का पैप्सी कोला सारे प्रदेश में प्रसिद्ध था।

भाजी आज तो चाय के साथ बिस्किट खाने का मन है। प्रधान जी ने भाजी की ओर देखते हुये कहा।

प्रधान जी की चाय की इच्छा को सुनते ही भाजी एक सैकेंड से पहले समझ गये कि वरुण आज किसी गंभीर मुद्दे पर बात करने आया है। उन्होने फौरन चरणजीत को चाय और बिस्किटों का प्रबंध करने को कहा।

और सब कुछ ठीक चल रहा है वरुण, न्याय सेना का कोई नया कारनामा नहीं सुनने को मिला बड़ी देर से। भाजी ने जैसे अपने मन में आये विचार की पुष्टि करने के लिये पूछा।

बस भाजी, जल्द ही आपको एक नया कारनामा सुनने को मिल जायेगा। प्रधान जी के इन शब्दों से भाजी को यकीन हो गया कि वो लोग आज किसी नये मुद्दे पर ही बात करने आये हैं।

इधर उधर की बातों में अभी कुछ ही समय बीता था कि चरणजीत ने आकर कहा। भाजी चाय तैयार है। लगा दूं।

मेरे पर्सनल केबिन में लगा दो। आओ वरुण, अंदर बैठकर बात करते हैं। कहते कहते भाजी अपनी कुर्सी से उठकर बाकी लोगों से कुछ देर वेट करने के लिये कहकर अपने निजी केबिन की ओर चल दिये और उनके पीछे पीछे प्रधान जी और राजकुमार भी भीतर प्रवेश कर गये।

अब आराम से बैठ कर बताओ क्या बात है। सोफे पर बैठते हुये भाजी ने कहा।

भाजी, सारी बात आपको राजकुमार बतायेगा। कहते हुये प्रधान जी ने बिस्किट उठाया और अपने ही अंदाज़ में उसे चाय में डुबो कर खाने लगे। भाजी भी प्रधान जी की इस सरलता पर मुस्कुराये बिना नहीं रह सके।

राजकुमार ने संक्षेप में भाजी को सारी बात बतायी और जोरावर के फोन वाली बात वो गोल कर गया। वो जानता था कि भाजी का समय बहुत कीमती है और फालतू की बातों में उसे खराब करना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं।

ये तो सरेआम बदमाशी की है हरपाल सिंह ने। भाजी ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा।

बस भाजी, अब हमने चमन शर्मा को इंसाफ दिलवाना है और हरपाल सिंह की राजनैतिक पहुंच को देखते हुये हमें लगता है कि ये लड़ाई जम कर लड़नी पड़ेगी। इसलिये आपका आशिर्वाद लेने चले आये क्योंकि उसके बिना तो हम ये लड़ाई नहीं जीत सकते। कहते हुये प्रधान जी ने एक बार फिर भाजी के चरण स्पर्श कर लिये।

अरे ये भी कोई कहने की बात है वरुण। सत्यजीत समाचार ने सदा आपका साथ दिया है और इस मामले में भी हम पूरी तरह से आपके साथ हैं। आपके हर कदम को हम पूरी कवरेज देंगें। ये हरजिंदर सिंह का वायदा है तुमसे। प्रधान जी के कंधे पर हाथ रखते हुये भाजी ने कहा।

बस तो मेरी आधी चिंता दूर हो गयी। प्रधान जी के कहते ही राजकुमार समझ चुका था कि अब भाजी की ओर से कोई चुटकी लेने वाली बात आयेगी।

इसका मतलब अभी बाकी की आधी चिंता से बात नहीं हुई तुम्हारी। कहते कहते एक ज़ोरदार ठहाका लगाया भाजी ने तो प्रधान जी को समझ आया कि जल्दी में क्या बोल दिया था उन्होंने।

भाजी और बाऊ जी के आपसी संबंधों में अकसर कुछ तनाव रहता था जिसके कारण इनके पास आने वाले लोग दूसरी पार्टी का कोई ज़िक्र नहीं करते थे ताकि माहौल में तनाव न आये।

प्रधान जी की बात से भाजी ने एक पल में ये अंदाज़ा लगा लिया था कि वो अभी पंजाब ग्लोरी के कार्यालय में नहीं गये है क्योंकि उस स्थिति में प्रधान जी आधी नहीं, पूरी चिंता दूर होने की बात करते। इतना दबदबा और प्रभाव था इन दोनों अखबारों का इस क्षेत्र में। यही बात राजकुमार भी प्रधान जी के कहते ही समझ गया था।

वो भाजी, हे हे हे………… प्रधान जी ने कुछ न सूझने वाले अंदाज़ में धीमे से हंसना शुरू कर दिया।

वरुण, तुम्हारी इसी सरलता के कारण मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं। तुम चाह कर भी किसी के साथ चालाकी नहीं कर सकते। एक दम भोले हो तुम। स्नेह भरे स्वर में भाजी ने कहा।

इसीलिये तुमने अपने साथ इस शैतान लड़के को रख लिया है। तुम जितने ही भोले हो, ये उतना ही तेज़ है। किसी के कुछ कहने से पहले ही भाजी ने कहा और माहौल में उनका ज़ोरदार ठहाका एक बार फिर गूंज उठा।

सब आपका ही प्रताप है भाजी, राजकुमार ने भाजी के चरण स्पर्श करते हुये कहा।

डट कर करो लड़ाई, हरजिंदर सिंह तुम्हारे साथ है। कहते हुये भाजी ने अपना चाय का कप उठाया और चुस्की लेनी शुरु कर दी।

भाजी के साथ मुलाकात तो बहुत अच्छी गयी पुत्तर जी। सत्यजीत समचार के कार्यालय से निकल कर गाड़ी में बैठने के बाद प्रधान जी ने कहा।

इस मुलाकात से हमें बहुत लाभ होगा प्रधान जी। चाहे अनचाहे हमें इस मामले में सौरव कुमार के साथ भी सीधे रूप से उलझना पड़ सकता है, और आप तो जानते ही हैं कि भाजी सौरव कुमार को पसंद करते हैं। राजकुमार ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया।

वैसे सौरव कुमार हैं भी तो पसंद किये जाने लायक, पुत्तर जी। शहर के अधिकतर कामों को बड़ी कुशलता से पूरा करते हैं वो। प्रधान जी ने सौरव कुमार की तारीफ करते हुये कहा।

इसमें तो कोई शक ही नहीं है प्रधान जी, कि सौरव कुमार एक बहुत काबिल पुलिस अधिकारी हैं। पर इस बार मामले में उच्च स्तर का राजनैतिक दबाव होने के कारण उन्हें हमसे उलझना भी पड़ सकता है। राजकुमार ने अपनी बात फिर वहीं से जारी की।

कल उनसे मुलाकात के बाद स्थिति कोई भी मोड़ ले सकती है और अगर मामला अखबारबाज़ी पर आ गया तो निश्चय ही सौरव कुमार का प्रयास होगा कि भाजी और बाऊजी से इस केस में कवरेज दबाने के लिये सहायता मांगी जाये। राजकुमार बोलता जा रहा था।

और जैसा कि आप जानते ही हैं, भाजी एक बार अगर वायदा कर दें तो फिर चाहे कुछ हो जाये, उसे पूरा जरूर करते हैं। इसलिये इस मुलाकात का समय पर होना बहुत जरूरी था। अब आकाश जी से भी बात हो जाये तो अपना पक्ष और भी मजबूत हो जायेगा। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की।

पर आकाश जी को तो शायद अभी कुछ और समय लग सकता है ऑफिस आने में। तब तक क्या करें पुत्तर जी। प्रधान जी ने प्रश्नसूचक शब्दों में राजकुमार की ओर देखा।

तो चलिये इतनी देर में आज़ाद भाई से मिल लेते हैं। कहते कहते राजकुमार ने अपने मोबाइल से कोई नंबर डायल कर दिया था।

ये अच्छा आईडिया है…………………प्रधान जी के और कुछ कहने से पहले ही राजकुमार ने उन्हें रुकने का संकेत किया, जिसका अर्थ था कि दूसरी ओर से आज़ाद फोन पर आ चुके थे।

गुड ईवनिंग भाई साहिब। आप ऑफिस में हैं क्या………………………आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी………………………जी ठीक है, हम पांच मिनट में पहुंच रहे हैं। कहने के साथ ही राजकुमार ने गाड़ी स्टार्ट की और तेजी से एक दिशा में बढ़ा दी।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 10

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

दोपहर का खाना खाने के पश्चात प्रधान जी और राजकुमार एक बार फिर अपने कार्यालय में बैठे थे।

हां तो पुत्तर जी, शुरू करें आगे का कार्यक्रम। प्रधान जी ने माहौल की चुप्पी को तोड़ा।

बिल्कुल प्रधान जी। सबसे पहले भाजी और बाऊ जी से मिल लेते हैं। राजकुमार ने कहा।

उत्तम विचार है, युवराज। चलो पहले बाऊ जी को फोन कर लेते हैं। कहते हुये प्रधान जी ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया तो दूसरी तरफ से ऑपरेटर की आवाज़ आयी।

पंजाब ग्लोरी के ऑफिस से बोल रहा हूं, कहिये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं।

जांलधर में छपने वाले उस समय के सबसे बड़े दो अखबारों में से एक था पंजाब ग्लोरी। हालांकि अब जालंधर में दैनिक प्रसारण और अमर प्रकाश जैसे राष्ट्रीय अखबारों का प्रकाशन भी होना शुरू हो गया था, परन्तु आज भी पंजाब ग्लोरी और सत्यजीत समाचार की पकड़ पंजाब के लोगों के दिल और दिमाग में किसी भी अन्य अखबार की तुलना में बहुत अधिक थी।

अजय कुमार था पंजाब ग्लोरी के मुख्य संपादक का नाम, पर कोई उनका नाम नहीं लेता था। सब आदर से उन्हें बाऊ जी कहते थे। पंजाब के क्षेत्र में बहुत आदर प्राप्त था उन्हें, और प्रदेश के ही नहीं बल्कि देश के बड़े से बड़े नेता, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी इनके पास समय समय पर आते रहते थे।

पंजाब ग्लोरी का अपना एक विशेष अंदाज़ था और पंजाब में एक समय पर माहौल खराब हो जाने पर इस समाचार पत्र ने बहुत विशेष भूमिका निभाई थी, इस माहौल को नियंत्रित करने में। इसी कारण पुलिस, प्रशासन और जनता के एक बहुत बड़े वर्ग में इस समाचार पत्र को बहुत सम्मान प्राप्त था और इस अखबार के मुख्य संपादक के रूप मे कार्यरत अजय कुमार पंजाब के क्षेत्र में एक अति विशेष दर्जा रखते थे।

इनके दो बेटे थे, आकाश और सुमित। हालांकि दोनों ही अखबार के काम में इनका हाथ बंटाते थे, परंतु आकाश कुमार की भूमिका अजय कुमार के बाद अखबार में सबसे महत्वपूर्ण थी।

आकाश कुमार को हालांकि अखबार के संपादक के रूप में कार्य संभाले हुये कुछ वर्ष ही हुये थे पर इस थोड़े से समय में ही उन्होने अपनी योग्यता को सिद्ध कर दिया था। अखबार की बहुत अच्छी समझ के साथ साथ वे पंजाब के सामाजिक, राजनैतिक और प्रशासनिक समीकरणों को भी बहुत अच्छे से समझते थे जिसके कारण उनके पास आने वालों का तांता लगा ही रहता था।

श्रीमान जी मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं। एक बार फिर दूसरी तरफ से आवाज़ आयी।

बाऊ जी बैठे हैं, मैं प्रधान बोल रहा हूं।

नमस्कार प्रधान जी, बाऊ जी किसी कार्य से शहर से बाहर हैं। दो तीन दिन तक आ जायेंगे। उधर से जवाब आया।

और आकाश जी ?…… प्रधान जी के स्वर में प्रश्न चिन्ह था।

जी वो शहर में हीं किसी कार्यक्रम पर गये हैं। दो तीन घंटे में आ जायेंगे। ऑपरेटर ने कहा।

ठीक है, फिर शाम को दर्शन करते हैं आकाश जी के, धन्यवाद। अपने विशेष अंदाज़ में ऑपरेटर को धन्यवाद कहने के बाद प्रधान जी ने कॉल काट दी।

बाऊ जी शहर से बाहर हैं और आकाश जी शाम तक आयेंगे। चलो अब देखते हैं भाजी बैठे हैं क्या। प्रधान जी ने राजकुमार से बिना किसी उत्तर की अपेक्षा के कहा।

आधे मिनट के बाद प्रधान जी की आवाज़ कमरे में फिर गूंज़ी।

भाजी बैठे हैं क्या, मैं प्रधान बोल रहा हूं।

नमस्कार प्रधान जी, भाजी कार्यालय आ चुके हैं और शाम तक यहीं रहेंगे। दूसरी तरफ से आवाज़ आयी।

तो ठीक है फिर, थोड़ी देर में उनके दर्शन करने के लिये आ रहे हैं हम, धन्यवाद। कहने के साथ ही प्रधान जी ने कॉल काट दी।

भाजी बैठे हैं पुत्तर जी, चलो उनके पास चलते हैं। प्रधान जी की आवाज़ सुनकर राजकुमार ने अभी गाड़ी की चाबी उठाई ही थी कि प्रधान जी का मोबाइल बजने लगा।

हैलो………प्रधान जी ने कॉल रिसीव करके अपने जाने पहचाने अंदाज़ में कहा।

दूसरी ओर से कुछ कहा गया जिसके बदले में राजकुमार को प्रधान जी की आवाज़ फिर सुनने को मिली।

ओ जीते रहो मेरे जोरावर, आज कैसे फोन किया, सब ठीक ठाक है न। प्रधान जी के इन शब्दों को सुनते ही राजकुमार को समझते देर नहीं लगी कि दूसरी ओर से भार्गव कैंप वाला जोरावर बोल रहा है।

जोरावर का ज़िक्र फोन पर आते ही राजकुमार का दिमाग सक्रिय हो गया था और वो प्रधान जी के बिलकुल पास जाकर खड़ा हो गया जिससे उसे दूसरी ओर की बात भी सुन सके।

प्रधान जी और जोरावर की सारी बातचीत को राजकुमार बड़े ध्यान से सुन रहा था और साथ ही साथ उसका दिमाग कुछ हिसाब भी लगाता जा रहा था।

जब तक प्रधान जी ने जोरावर की जान फोन पर ही निकाल देने के बाद कॉल डिस्कनेकट की, राजकुमार दोबारा कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोचने में लगा हुआ था।

सुन लिया पुत्तर जी, अब ये कल के जन्मे गुंडे भी हमें धमकी देने लग पड़े हैं। प्रधान जी के स्वर में छिपी शरारत साफ झलक रही थी।

क्या सोच रहे हो पुत्तर जी, राजकुमार को किसी उधेड़बुन में उलझा देखकर प्रधान जी ने पूछा। वे जानते थे कि राजकुमार जब भी ऐसी गहरी मुद्रा में होता है, किसी बात का विशलेषण कर रहा होता है।

जोरावर की इस कॉल का क्या मतलब निकाला आपने प्रधान जी। राजकुमार के स्वर में जैसे एक पहेली थी।

मतलब क्या निकालना पुत्तर जी, गुंडा है और उसका काम ही है लोगों को धमकी देना। हरपाल सिंह ने पैसे दिये होंगे जो मुझे फोन किया उसने। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाने वाले शब्दों में कहा।

नहीं प्रधान जी, इस फोन के इसके अलावा भी कई और महत्वपूर्ण मतलब निकलते हैं। जरा ध्यान से गौर कीजिए और बताईये। राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।

ओये कंजर, तेरे दिमाग में फिर से कोई शैतानी आ गयी लगती है। तुझे पता है कि तेरा ये प्रधान एक बार शेर के साथ भी दो दो हाथ तो कर सकता है, पर दिमाग की ये पहेलियां सुलझाना मेरे बस की बात नहीं। ये काम तो तेरे ही हिस्से का है। अब देर मत कर और जल्दी से शुरू हो जा। मेरे मन सुनने को बेताब हो रहा है। प्रधान जी ने उतावले स्वर में कहा।

तो सुनिये प्रधान जी, जोरावर ने आपसे बात करते हुये जब भी हरपाल सिंह का नाम लिया तो उसके साथ आदरसूचक शब्द लगे थे। राजकुमार ने शुरू किया।

हां लगे तो थे। प्रधान जी ने कुछ न समझने वाले अंदाज़ में कहा।

जोरावर जैसे बदमाश किसी के लिये आदरसूचक शब्द तभी इस्तेमाल करते हैं जब या तो उस व्यक्ति से बात कर रहे हों, या फिर वो व्यक्ति उनके पास खड़ा हो। राजकुमार ने मुस्कुराहट के साथ कहा।

इसका मतलब हरपाल सिंह जोरावर के पास ही खड़ा था। प्रधान जी जैसे एक दम से समझ गये।

मोबाइल फोन पर जोरावर की आवाज़ कहीं दूर से आ रही लगती थी, जिसका अर्थ है कि फोन स्पीकर पर था और हरपाल सिंह आप दोनों की एक एक बात सुन रहा था। राजकुमार का कथन जारी था।

ओ ये बात तो तूने बिल्कुल ठीक कही है पुत्तर। मैने भी नोट किया था कि जोरावर की आवाज़ फोन को स्पीकर पर डाल देने वाले अंदाज़ में आ रही थी। प्रधान जी ने जोड़ा।

अब एक और पहलू पर गौर कीजिये। आज सुबह साढ़े दस बजे हम एस एस पी सौरव कुमार से मिले थे और उसके लगभग 6 घंटे बाद ही आपको जोरावर का फोन आ गया। राजकुमार कहता जा रहा था।

सुबह से पहले किसी को नहीं पता था कि हम इस केस में चमन शर्मा की मदद कर रहे हैं और 6 घंटे के अंदर ही जोरावर का फोन आ जाना, इसका अर्थ है…………………… राजकुमार बोलते बोलते रुक गया और प्रधान जी की ओर देखकर मुस्कुराने लगा।

ओये क्या अर्थ है इसका कंजरा, जल्दी से बोल। प्रधान जी ने राजकुमार को प्यार से डांटते हुये कहा।

इसके कई अर्थ हैं प्रधान जी, पहला अर्थ ये है कि ये सूचना एस एस पी कार्यालय से हरपाल सिंह को दी गयी है। राजकुमार ने बात को जारी करते हुये कहा।

पर ये भी तो हो सकता है कि थाना प्रभारी राजेंद्र सिंह ने ये बात हरपाल सिंह को बतायी हो। प्रधान जी ने राजकुमार को टोका।

नहीं प्रधान जी, ये नहीं हो सकता, क्योंकि राजेंद्र सिंह को सौरव कुमार ने फोन पर ये बात नहीं बताई थी कि चमन शर्मा के साथ हम उनके ऑफिस आये हैं। राजकुमार ने जैसे प्रधान जी की शंका का निवारण किया हो।

हां ये बात भी ठीक है, तो फिर क्या स्वयम सौरव कुमार ने ये बात हरपाल सिंह को बतायी होगी। प्रधान जी की आवाज़ में फिर उतावलापन था।

ये बात तो सोची भी नहीं जा सकती प्रधान जी। सौरव कुमार एक नेक व्यक्ति हैं और हरपाल सिंह जैसे व्यक्ति को वे कभी भी पसंद नहीं कर सकते, उसके साथ काम करने की बात तो दूर रही। राजकुमार ने खुलासा किया।

तो फिर बचा कौन, सिर खुजाते हुये प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखा।

अवश्य ही एस एस पी कार्यालय का कोई कर्मचारी हरपाल सिंह से मिला हुआ है जिसने हमें चमन शर्मा के साथ उनके कार्यालय जाते हुये देखकर हरपाल सिंह को सूचना दे दी होगी। राजकुमार एक बार फिर शुरू हो गया।

अरे हां, ये भी तो संभव है। प्रधान जी ने कहते हुये एक बार फिर राजकुमार की ओर देखा।

क्योंकि सौरव कुमार ने थानी प्रभारी से शाम तक रिपोर्ट करने को कहा है, जाहिर सी बात है कि थाने में हड़कंप मच गया होगा। वहां से भी एक सूचना हरपाल सिंह को मिल गयी होगी कि कार्यवाही करने के सख्त निर्देश आये हैं। और इतना समझदार तो हरपाल सिंह जरुर होगा जो ये अंदाज़ा लगे सके कि ये सारा दबाव हमारे कारण ही बना है। राजकुमार कहता गया।

ओ कमाल कर दिया तूने………………प्रधान जी को अपनी बात बीच में ही रोक देनी पड़ी।

मेरी बात अभी पूरी नहीं हुयी है प्रधान जी। राजकुमार ने प्रधान जी की बात काटते हुये कहा।

हरपाल सिंह जैसा प्रभावशाली व्यक्ति जोरावर के पास भार्गव कैंप जैसे इलाके में तो जाने से रहा, जिसका अर्थ ये है कि उसने जोरावर को अपने पास बुलाया होगा, क्योंकि फोन पर दोनों एक साथ थे। इससे ये साबित होता है कि ये सूचना हरपाल सिंह को हमारे एस एस पी से मिलने के बाद बहुत जल्दी ही मिल गयी थी, क्योंकि ये सारी कार्यवाही बहुत कम समय में हुई है। राजकुमार ने बात को विराम दिया।

ह्म्म्म्म्म्म्म्म्………… प्रधान जी ने एक लंबी हुंकार भरी।

अभी इस प्रकरण के और भी अर्थ बचे हैं, प्रधान जी। राजकुमार ने एक बार फिर से पहेली डाल दी।

अब क्या बच गया है शैतान। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

नंबर एक, हरपाल सिंह हमारा नाम इस केस से जुड़ने के बारे में जानकर हड़बड़ा गया है। ये हमारे लिये बहुत अच्छा है क्योंकि इससे ये साबित होता है कि उसे आपका भय है, और उसका ये भय ही उसे ले डूबेगा। राजकुमार फिर से शुरू हो गया था।

नंबर दो, इस पर भी हरपाल सिंह इस मामले में हार मानने को तैयार नहीं है जिसके चलते उसने आपको इस केस से हटाने के लिये अपना पहला हथियार जोरावर सिंह के रूप में चलाया है।

ये बात अलग है कि उसका ये हथियार फेल हो गया। मुस्कुराते हुये प्रधान जी ने कहा।

फेल नहीं हुआ प्रधान जी, उल्टा पड़ गया। हरपाल सिंह ने भी फोन पर आपका सिंह नाद सुना होगा और जोरावर को मिमयाते हुये भी देखा होगा। इसका मतलब ये निकला कि उसे ये समझ आ गया होगा कि गुंडों के दम पर वो हमसे जीत नहीं सकता। एक ही सांस में बोल गया राजकुमार।

ऐसे लोगों के पास मनमानी करने के लिये तीन हथियार ही होते हैं, गुंडे, पैसा और राजनैतिक प्रभाव। इसमें से उसका एक हथियार तो हमारे मामले में ठुस्स हो गया। बच गये दो हथियार, पैसा और राजनैतिक प्रभाव। राजकुमार ने बात को रोकते हुये प्रधान जी की ओर फिर पहेली वाली मुद्रा में देखा।

ओहोतो इसका अर्थ है कि अब वो इन दोनों हथियारों का इस्तेमाल करेगा। प्रधान जी ने एकदम से सब समझ आ जाने वाले लहजे में कहा।

ओ जीते रहो मेरे प्रधान जी। राजकुमार ने भी इस बार प्रधान जी के अंदाज़ की नकल की, और फिर से शुरु हो गया।

पैसे से इस मामले में उसका काम बनने वाला नहीं है, तो बच गया केवल राजनैतिक दबाव। इसका अर्थ ये है कि उसका अगला हथियार अब राजनैतिक दबाव होगा जो अब सीधे तौर से एस एस पी सौरव कुमार को झेलना पड़ेगा। उसका फिर ये मतलब निकला कि कल जब हम सौरव कुमार के पास जायेंगे तो वे हमें टालने की कोशिश कर सकते हैं। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की।

तो इसका अर्थ सौरव कुमार कल इस काम को करने से पीछे हटने के संकेत दे सकते हैं। प्रधान जी ने एक और संभावना व्यक्त की।

बिल्कुल नहीं प्रधान जी, सौरव कुमार एक कुशल अधिकारी हैं। वो जानते हैं कि आपको सीधे रूप से मना कर देने का अर्थ सारे शहर की पुलिस के गले मुसीबत डालना होगा, और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक होने के नाते उस सारी मुसीबत का नैतिक दायित्व उन्हे ही झेलना पड़ेगा। राजकुमार एक बार फिर रुक कर कुछ सोचने लगा।

अरे हां, ये बात भी ठीक है। तो फिर तुम्हारे ख्याल से कल सौरव कुमार की प्रतिक्रिया क्या रहेगी। प्रधान जी ने पूछा।

मुझे लगता है कि कल वो किसी प्रकार और समय मांगेंगे। इससे उन्हें दो लाभ होंगे। कुछ सोचते हुये राजकुमार ने कहा।

और क्या होंगे वो दो लाभ। प्रधान जी को अब मज़ा आने लगा था।

एक तो उन्हें अगली रणनीति बनाने के लिये समय मिल जायेगा, दूसरा वही पुराना राजनैतिक पैंतरा। जिस काम को मना न कर सको, उसे ठंडे बस्ते में डाल दो, जो सदा से इस देश के कई राजनेता करते आये हैं। राजकुमार ने बात पूरी की।

ओ तेरे बच्चे जीयें, एक दम ठीक बात पकड़ ली है तूने। मुझे लगता है कल सौरव कुमार यही करेंगे।

और यहीं से हमारा असली काम शुरू होगा। राजकुमार का स्वर एक बार फिर प्रधान जी के कानों में पड़ा।

और क्या होगा वो असली काम। प्रधान जी ने चुटकी लेते हुये पूछा।

हमें समय की एक सीमा निर्धारित करनी होगी और उससे अधिक समय मांगने पर सौरव कुमार को मना करना होगा। इससे हमें दो लाभ होंगे। एक तो उनपर दबाब बना रहेगा और दूसरा वो समझ जायेंगे कि हमने उनकी चाल को समझ कर बदले में अपनी चाल चल दी है। राजकुमार फिर मुस्कुरा रहा था।

तो कितना समय देना चाहिये हमें, पुत्तर जी। प्रधान जी भी अब मुस्कुरा रहे थे क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि राजकुमार के मन में सारी रणनीति बन चुकी है।

मेरे ख्याल से तीन दिन। ये समय बहुत अधिक भी नहीं है, और अगर हमें मोर्चा लगाना पड़ता है तो कम से कम इतना समय हमें तैयारी करने में भी लग जायेगा। राजकुमार का जवाब था।

और सात दिन क्यों नहीं, पुत्तर जी। प्रधान जी ने इस बार सबकुछ समझते हुये भी राजकुमार को छेड़ने वाले अंदाज़ में पूछा।

आपसे ही सीखा है प्रधान जी, हर लड़ाई सबसे अधिक मनोवैज्ञानिक स्तर पर लड़ी जाती है। केवल तीन दिन देने का अर्थ होगा कि हम इस मामले में किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं, और किसी भी समय आक्रमण करने की मुद्रा में हैं। यानि की इस मामले में हम आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। इससे विरोधी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है। राजकुमार ने परिक्षा के किसी प्रश्न का उत्तर देने वाले स्वर में कहा।

तेरी इसी बात ने मुझे तेरा कायल कर दिया है, मेरे बेटे। इतने कम समय में ही मेरा सिखाया हुआ एक एक पैंतरा तूने इस तरह से घोंट लिया है, जो सालों से मेरे साथ काम कर रहे मेरे कई साथी भी नहीं कर सके। गर्व से कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार को गले लगा लिया।

सब आपकी ही छत्रछाया का परिणाम है प्रधान जी। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

तो फिर तय रहा, कल इस मामले में किसी भी हाल में हम सौरव कुमार को तीन दिन से अधिक समय नहीं देंगे। प्रधान जी ने जैसे फैसला सुनाया हो।

और मेरे ख्याल से अब हमें भाजी की ओर चलना चाहिये। राजकुमार ने फिर शरारत के साथ कहा।

अरे, वो तो मैं इस सारे चक्कर में भूल ही गया था। चलो चलो जल्दी से। कहते कहते प्रधान जी कार्यालय के दरवाजे की ओर कदम बढ़ा चुके थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 09

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

दोपहर के लगभग साढे चार बजे थे और हरपाल सिंह अपने कार्यालय में बैठा हुआ किसी चिंता में डूबा दिखाई दे रहा था। उसके सामने ही चार पांच गुंडे लगने वाले आदमी बैठे थे।

क्या बात है सर, आप किस चिंता में डूबे हुये हैं। उनमें से एक आदमी ने पूछा।

ये चमन शर्मा वाला मामला तो टेड़ा हो गया है, जोरावर। हरपाल सिंह ने उस आदमी से कहा, जो शायद उन सब गुंडों का मुखिया था।

ऐसा क्या हो गया सर, जो आपने हमें एक दम से ही आने को बोल दिया। उत्सुकुता के साथ जोरावर ने पूछा।

बात ही कुछ ऐसी है, जोरावर। कुछ देर पहले पुलिस के एक अधिकारी का फोन आया था। हरपाल सिंह के चेहरे पर चिंता की लकीरें अब साफ दिखने लगीं थीं।

क्या कहा उस अधिकारी ने सर। जोरावर के स्वर की उत्सुकुता और भी बढ़ गयी थी।

चमन शर्मा की ओर से प्रधान मैदान में आ गया है। हरपाल सिंह ने जैसे कमरे में बम फोड़ दिया हो।

प्रधान………………कहीं आप वरुण शर्मा प्रधान की बात तो नहीं कर रहे। जोरावर के स्वर में आशंका स्पष्ट झलक रही थी।

और इस शहर में बिना नाम के प्रधान किसे कहते हैं, जोरावर। झल्लाते हुये हरपाल सिंह ने कहा।

ये तो बहुत बुरा हुआ सर। जोरावर के साथ साथ बाकी सारे आदमियों के चेहरे भी प्रधान जी का नाम सुनते ही रंग बदल चुके थे।

चमन शर्मा के साथ आज एस एस पी के कार्यालय में गया था वो, और मेरे खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की मांग की है। चिंताजनक स्वर में हरपाल सिंह ने कहा।

पर आपकी पहुंच तो एस एस पी से बहुत ऊपर तक है सर। जोरावर ने जैसे हरपाल सिंह को आश्वासन दिया।

वहीं ऊपर से ही तो फोन आया है, जोरावर। एस एस पी ने प्रधान से कल सुबह तक का समय मांगा है और साथ ही अपने ऊपर के अधिकारियों की जानकारी में सारा मामला देते हुये बोल दिया है कि इस मामले को जल्द से जल्द सुलझा लिया जाये नहीं तो पुलिस कार्यवाही करने पर मजबूर हो जायेगी। झल्लाहट भरे स्वर में हरपाल सिंह ने कहा।

ठीक ही कहा है एस एस पी ने सर। प्रधान अगर अपने असली रंग में आ गया तो पुलिस वालों का पूरा जुलूस निकाल देगा। जोरावर ने बात की गंभीरता को समझते हुये कहा।

इसीलिये तो अब इस मामले को अपने हक में करने का बस एक ही रास्ता है। जैसे किसी नतीजे पर पहुंचते हुये हरपाल सिंह ने कहा।

क्या है वो रास्ता, सर। आशा भरी आवाज़ में जोरावर ने पूछा।

किसी भी तरह से प्रधान को इस केस से हटाना होगा। हरपाल सिंह के स्वर में दृढ़ता थी।

ये आप क्या कह रहें हैं, सर। जोरावर ने हरपाल सिंह की ओर ऐसे देखा जैसे वो पागल हो गया हो।

सारा शहर जानता है कि प्रधान जब एक बार किसी काम को पकड़ लेता है, तो उसे कोई भी उस काम से अलग नहीं कर सकता। हरपाल सिंह को समझाने वाले अंदाज़ में जोरावर ने कहा।

वो तो मैं भी जानता हूं जोरावर, पर हम ऐसे हाथ पर हाथ रखकर भी तो नहीं बैठ सकते। हरपाल सिंह ने जैसे कोई फैसला कर लिया था।

तो क्या करेंगे हम, सर। जोरावर ने कुछ समझ न आने वाले स्वर में पूछा

हम उसे जान से मारने की धमकी देकर इस केस से हटने को कहेंगे। बस यही एक रास्ता है। हरपाल सिंह ने जैसे एक और बम फोड़ा।

ये क्या बोल दिया आपने, सर। जोरावर सिंह की आंखें हैरानी के मारे फटने को आ गयीं थीं।

आप जानते नहीं प्रधान को, सौ गुंडों का एक गुंडा है वो, और डर तो उसके आस पास जाने से भी डरता है। हैरानी से भरा जोरावर कहता गया।

तो क्या करुं फिर, क्या अपने इस सपने के साथ साथ इतने सालों से इस शहर में बनाये हुये अपने इस रुतबे को भी धूल में मिल जाने दूं। किसी पागल की तरह चिल्ला पड़ा हरपाल सिंह।

पर ये काम करेगा कौन सर, इस शहर में कौन सा ऐसा गुंडा है जो प्रधान को धमकी देने की हिम्मत कर सकता है। हरपाल सिंह को इस तरह चिल्लाते देख कर जोरावर ने पूछा।

ये काम तुम्हें करना होगा जोरावर, प्रधान को जान से मारने की धमकी तुम दोगे। इस बार तो हरपाल सिंह ने जैसे कमरे में एटम बम ही फोड़ दिया हो।

ये क्या कह रहे हो आप सर, क्यों मुझे मरवाना चाहते हैं आप। आश्चर्य से भरे स्वर में जोरावर ने कहा।

क्यों, क्या समस्या है। इस शहर के तीन सबसे बड़े गैंग्स में से एक गैंग है तुम्हारा। लोग तुम्हारे नाम से थर थर कांपते हैं और तुम ऐसी बुजदिली की बातें कर रहे हो। जोरावर को डांटने वाले स्वर में हरपाल सिंह ने कहा।

डरते तो शरीफ और बदमाश हैं मेरे नाम से सर, प्रधान तो महाबदमाश है, उसे भला कौन डरा सकता है। जितने गुंडे मेरे गैंग में हैं, उससे बीस गुणा अधिक हथियारबंद लड़के प्रधान के लिये मरने मारने को तैयार रहते हैं। समझाने वाले अंदाज़ में जोरावर ने कहा।

तो फिर ठीक है, आज से तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं जोरावर। अब फिर मत आना मेरे पास अपने नाजायज कामों को जायज बनवाने के लिये। ये मत भूलो जोरावर, मेरा हाथ तुम्हारे सिर से हटते ही पुलिस तुम्हारे सारे काले काम बंद करवा देगी, और तुम जेल में चक्की पीसोगे। हरपाल सिंह ने जैसे जोरावर को अल्टीमेटम दिया।

ये क्या बात कर दी आपने सर, मैंने तो सदा ही आपका हर काम किया है। एकदम से घबरा गये जोरावर ने कहा।

तो फिर तुम्हें मेरा ये काम भी करना ही होगा, जोरावर। तुम्हें अभी इसी समय प्रधान को धमकी देकर उसे इस केस से पीछे हटने के लिये बोलना होगा। निर्णायक स्वर में हरपाल सिंह ने कहा।

ठीक है सर, आपका नमक खाते हैं, आपके लिये ये भी कर देते हैं, फिर अंजाम चाहे जितना भी बुरा हो। और कोई चारा न देखकर जोरावर सिंह ने हथियार डालते हुये कहा।

ये हुई न बात। तो उठाओ मोबाइल और लगाओ प्रधान को फोन। और हां, कॉल स्पीकर पर ही रखना ताकि मैं भी सुन सकूं। नंबर है तुम्हारे पास प्रधान का या मैं दूं। एक ही सांस में बोल गया हरपाल सिंह।

नंबर है मेरे पास, सर। कहता हुआ जोरावर अपना मोबाइल उठा कर उसमें से प्रधान जी का नंबर खोजने लगा।

मिल गया, कहने के साथ ही जोरावर ने कोई नंबर मिला दिया और मोबाइल फोन को स्पीकर पर डाल दिया।

हैलो……… तीन चार बार घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से प्रधान जी की जानी पहचानी आवाज़ सुनायी दी।

चरण स्पर्श प्रधान जी, मैं भार्गव कैंप वाला जोरावर बोल रहा हूं। न चाहते हुये भी जोरावर के शब्दों में प्रधान जी के लिये आदर आ गया था जिसके कारण हरपाल सिंह उसे कच्चा चबा जाने वाली नज़रों से देख रहा था।

ओ जीते रहो मेरे जोरावर, आज कैसे फोन किया, सब ठीक ठाक है न। प्रधान जी का प्रफुल्ल स्वर सुनायी दिया कमरे में, मोबाइल के स्पीकर के माध्यम से। प्रधान जी के प्रेम भरे संबोंधन से हरपाल सिंह को ऐसा लगा जैसे जोरावर और प्रधान के आपस में बहुत घनिष्ट संबंध हैं।

सब ठीक है प्रधान जी, बस आपसे एक छोटा सा काम था। जोरावर ने हरपाल सिंह की क्रूर दृष्टि को देखकर भी अपने स्वर की मर्यादा बनायी हुयी थी, क्योंकि उसे पता था कि प्रधान का निरादर करने का परिणाम क्या हो सकता है।                  

ओ बोल मेरे शेर, मेरी डार्लिंग। क्या पुलिस से कोई पंगा हो गया। प्रधान जी के स्वर में फिर वही प्यार था। हरपाल सिंह प्रधान के एक गुंडे के साथ भी इस कदर प्यार से बोलने पर विचित्र दुविधा का शिकार हो गया था कि आखिर क्या है ये आदमी, जो सब लोगों के साथ एक समान प्यार से बात करता है।

नहीं नहीं प्रधान जी, ऐसी कोई बात नहीं। जोरावर ने जल्दी से कहा।

तो क्या बात है मेरे जोरे…………। प्रधान जी की आवाज़ का प्रेम और हरपाल सिंह के मन की दुविधा निरंतर बने हुये थे।

वो बात ये है प्रधान जी, आजकल आप ठेकेदार हरपाल सिंह के खिलाफ एक मामले में चमन शर्मा का साथ दे रहे हैं। आवाज़ को आदर से भरपूर रखते हुये जोरावर सिंह ने कहा।

हां कर रहा हूं, तो? इस बार प्रधान जी के स्वर में से प्रेम गायब हो गया था और उसकी जगह कठोरता ने ले ली थी, जैसे उन्होने भांप लिया हो कि जोरावर क्या मांगने वाला है।

हरपाल सिंह जी बहुत अच्छे आदमी हैं प्रधान जी, और हमारा बहुत ख्याल भी रखते हैं। इसलिये मेरी आपसे गुज़ारिश है कि आप इस केस में चमन शर्मा की सहायता न करें। ये आपका मेरे ऊपर निजी अहसान होगा। आप जहां कहो जोरावर की जान हाज़िर रहेगी। हरपाल सिंह अभी भी जोरावर के धमकी देने के अंदाज़ को समझ नहीं पा रहा था, पर जोरावर जानता था उसका काम कैसे हो सकता है।

ओ मेरे जोरे पुत्तर, ये क्या बात कर दी तूने। तेरे लिये तो मेरी जान भी हाज़िर है। पर तुझे पता ही है कि तेरे प्रधान ने एक बार किसी की मदद करने का वचन दे दिया, तो फिर चाहे जान जाये या जहान, मैं पीछे नहीं हटता। तू इस काम को छोड़ कर कोई और काम बोल जोरे पुत्तर। प्रधान जी की आवाज़ में प्यार एक बार फिर वापिस आ गया था।

इस समय तो बस यही एक काम था प्रधान जी, अगर आप एक बार फिर सोच लेते तो। जोरावर ने चापलूसी भरे स्वर में कहा।

नहीं जोरे पुत्तर, ये काम तो नहीं हो सकता। तू अपने प्रधान की जान मांग ले भले ही, पर उसे अपना वचन तोड़ने को मत बोल। प्रधान जी का प्रेम से भरा पर दृढ स्वर स्पीकर के माध्यम से कमरे में गूंज़ उठा।

गुस्ताखी की माफी हो प्रधान जी, पर इसमें आपका भी भला ही है, मैने तो इसीलिये फोन किया था आपको। जोरावर के स्वर में अब आदर के साथ साथ समझाने वाला भाव भी आ गया था।

तेरे इस प्रधान ने अपना भला सोचा ही कब है जोरावर, मेरा जीवन तो पीड़ितों की मदद के लिये ही बना है। पर तू फिर भी अपनी बात बोल। जोरावर की अगली बात को भांप कर प्रधान जी के लहजे का प्रेम अब एक बार फिर कठोरता में बदलने लगा था।

हरपाल सिंह जी की राजनैतिक पहुंच बहुत ऊपर तक है और उनके संपर्क में इस प्रदेश के नामी अपराधी गैंग भी हैं। जोरावर ने हरपाल सिंह की शान बखारते हुये कहा।

तो……………………… प्रधान जी का स्वर और कठोर हो गया था, और अब उसमे से प्रेम बिल्कुल गायब हो चुका था।

तो मैं नहीं चाहता प्रधान जी, कि इस मामले में आपके दखल के चलते आपका कोई निजी नुकसान हो जाये। आप समझ रहें हैं न मेरी बात को। इस शहर का माहौल वैसे भी इतना अच्छा नहीं है। आये दिन किसी न किसी पर हमला होता रहता है। जोरावर ने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर कहा।

जोरा……वर…………। सिंह की भीषण दहाड़ से मानो पूरा कमरा हिल गया हो।

तेरी इतनी हिम्मत कि तू वरूण शर्मा को धमकी देने की जुर्रत कर सके। मिट्टी में मिला कर रख दूंगा तुझे और तेरे गैंग को। बता कहां बैठा है तू, दस मिनट में प्रधान तेरे पास होगा। फिर देख लेते हैं कितना बड़ा बदमाश है तू। मां का दूध पिया है तो बोल जोरावर, कहां है तू।

जोरावर का पूरा शरीर और उसके हाथों में पकड़ा हुआ मोबाइल फोन भी कांप रहा था। यही हाल उसके साथ खड़े उसके आदमियों का भी था और हरपाल सिंह भी प्रधान की मोबाइल का स्पीकर तोड़ देने वाली इस दहाड़ को सुनकर अंदर तक हिल गया था।

बोलता क्यों नहीं जोरावर, कहां है तू। मैं भी तो देखूं कितने बदमाश हैं तेरे पास, जिनके दम पर तूने भगवान संकटमोचक के इस भक्त को धमकी देने की गुस्ताखी की है। शेर की दहाड़ और भी ज़ोरदार हो गयी थी। जोरावर के शरीर में न ही मानो प्राण हों और न ही उसके मुंह में ज़बान।

चुप मत रह जोरावर, बोल। बोल वर्ना अगले 24 घंटे में प्रधान तुझ पर कहर बनकर बरसेगा और इस शहर में तेरा नाम केवल इतिहास बनकर रह जायेगा। शेर की इस दहाड़ में हमला करने की चेतावनी एकदम स्पष्ट झलक रही थी।

बच्चे पर मेहर करें प्रधान जी, आपने मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया। मैं तो आपका बच्चा हूं, आप पर हमला करने की गुस्ताखी कैसे कर सकता हूं। आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया प्रधान जी। जोरावर ने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर बकरी के उस बच्चे की तरह मिमयाते हुये कहा जिसने शेर को ललकारने की भूल कर ली हो।

तो क्या मतलब है तेरा, जोरावर। शेर अभी भी दहाड़ रहा था पर उसकी दहाड़ में अब हमले की चेतावनी नहीं, बल्कि डराने वाला भाव था।

वो बात ये है प्रधान जी, मैने अपराध के क्षेत्र में उड़ती हुई खबर सुनी है कि कोई बहुत बड़ा गैंग आप पर हमला करने वाला है। बस इसे सुनते ही मैने आपको सावधान कर देना अपनी जिम्मेदारी समझी। जोरावर का स्वर पूरी तरह चाश्नी में लिपटा हुआ था, मानों बकरी का बच्चा शेर से अपनी जान की भीख मांग रहा हो।

अरे तो करने दे न हमला, प्रधान कब डरा है ऐसे हमलों से। जब तक संकटमोचक का हाथ है मेरे सर पर, बड़े से बड़ा बदमाश मेरे शरीर का एक बाल भी नहीं उखाड़ सकता। तू मेरी चिंता छोड़ दे और मौज कर। शेर की दहाड़ बंद हो गयी थी, जैसे उसने बकरी के बच्चे की जान बख्श दी हो।

फिर भी आप सावधान रहना प्रधान जी, अच्छा अब मैं फोन रखता हूं, चरण स्पर्श। जोरावर ने जल्दी से अपनी जान छुड़ाने वाले अंदाज़ में कहा।

ओ जीते रह मेरे जोरे पुत्तर। प्रधान जी की आवाज़ में प्रेम एक बार फिर उमड़ आया था। शेर ने बकरी के बच्चे को पुचकार कर छोड़ दिया हो जैसे।

फोन के कटते ही जोरावर धड़ाम से कुर्सी पर गिरा और ज़ोर ज़ोर की सांस लेने लगा मानों साक्षात यमराज से सामना करके भी जिंदा बच गया हो।

कितना निडर है ये प्रधान, मौत का जरा भी डर नहीं इसे। न चाहते हुये भी हरपाल सिंह के मुंह से प्रधान जी की तारीफ निकल ही गई थी।

इसीलिये मैने आपसे कहा था सर, कि प्रधान को धमकी देने के बारे में मत सोचें। उसके सामने जाने से बड़े से बड़ा बदमाश भी डरता है। जान हथेली पर रखकर घूमता है हर समय। सामने पड़े पानी के गिलास से गले को तर करता हुआ जोरावर बोला।

तू ठीक ही कहता था जोरावर, इस आदमी को डराया नहीं जा सकता। मुझे कोई और ही रास्ता सोचना होगा। कहते कहते हरपाल सिंह के चेहरे पर चिंता के गहरे भाव एक बार फिर उभर कर आ गये थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 08

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

उसी दिन दोपहर के लगभग दो बजे प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय में प्रधान जी के निजी केबिन में बैठे विचार विमर्श कर रहे थे। संगठन के कुछ पदाधिकारी बाहर के केबिन में बैठे थे।

क्या लगता है पुत्तर जी, सौरव कुमार कल तक कुछ करेंगे। प्रधान जी के स्वर ने कमरे की चुप्पी को तोड़ा।

मुश्किल लगता है प्रधान जी, बहुत मुश्किल लगता है। आज सुबह जब मैने हरपाल सिंह का नाम उनके सामने लिया था तो एक पल के लिये उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गयीं थीं, जो उन्होने तुरंत छिपा ली थीं, पर तब तक मैं नोट कर चुका था। राजकुमार ने कहा।

और मैं समझा कि सिर्फ मैने ही नोट किया था। प्रधान जी ने चुटकी लेते हुये कहा।

इसका अर्थ ये बनता है कि सारा मामला पहले से ही सौरव कुमार के नोटिस में है और वे केवल कुछ समय निकालना चाहते थे ताकि आगे की रणनीति बना सकें। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

ओ जीते रह मेरे युवराज, बिलकुल ठीक जगह पर पहुंचा है तू। जरूर यही बात होगी। एकदम से खुश होते हुये प्रधान जी ने कहा।

सौरव कुमार के साथ हम पिछले कितने समय से डील कर रहे हैं। जब तक कोई भारी दबाव न हो, वो गलत काम करने वाले का साथ नहीं देते। राजकुमार ने अपनी बात को विराम देते हुये प्रधान जी के चेहरे की ओर देखा।

इसका मतलब इस केस में सौरव कुमार पर दबाव है। प्रधान जी ने राजकुमार की अधूरी बात पूरी की।

और फिर तेजपाल सिंह ने भी तो यही कहा था कि पुलिस पर इस मामले में बहुत दबाव है। एक बार फिर राजकुमार का स्वर सुनायी दिया।

ह्म्म्म्म्म्म्म्म्……… तो फिर आगे की रणनीति क्या होनी चाहिये, पुत्तर जी। प्रधान जी ने राजकुमार को एक बार फिर परखने वाले अंदाज़ में पूछा।

मेरे विचार से हमें मोर्चा लगाने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिये, प्रधान जी। राजकुमार ने अपना विचार पेश किया।

बिल्कुल मेरे मुंह की बात छीन ली, ओये तेरा दिमाग बहुत तेज है कंजरा। प्यार भरे स्वर में प्रधान जी ने कहा।

आखिर ऐसे ही तो आपने मेरे लिये विशेष रूप से सैक्र्टरी जनरल का पद नहीं बनाया प्रधान जी। राजकुमार ने भी मौका देखकर चौका मार दिया।

हा…हा…हा…………ये बात भी खूब कही। तो फिर कहां से शुरू करें पुत्तर जी। प्रधान जी ने एक बार फिर सीरियस होते हुये कहा।

मेरे ख्याल से सबसे पहले हमें मीडिया वाले अपने शुभचिंतकों से बात करके उन्हें इस सारे मामले की जानकारी देकर उनका समर्थन हासिल कर लेना चाहिए, इससे पहले कि दूसरी ओर से कोई उन्हें अप्रोच करे। राजकुमार ने अपनी बात रखी।

बिल्कुल ठीक बात कही है युवराज। सबसे पहले मीडिया को ही विश्वास में लेना होगा, क्योंकि अगर ये मामला लंबा चला तो मीडिया की मदद के बिना इसे जीत पाना बहुत मुश्किल हो जायेगा। प्रधान जी ने राजकुमार की बात का समर्थन किया।

तो फिर दोपहर के खाने के बाद लग जाते हैं इस काम पर। राजकुमार ने उत्साह भरे स्वर में कहा।

अरे खाने से याद आया, खाने का समय हो गया है। बड़ी ज़ोर की भूख लगी है पुत्तर जी, चलो कुछ खा लेते हैं। प्रधान जी ने बड़े ललचाये हुये स्वर में कहा।

जैसी प्रधान जी की आज्ञा। मुस्कुराते हुये राजकुमार ने कहा। प्रधान जी के करीबी सब लोग जानते थे कि प्रधान जी खाने के बहुत शौकीन थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 07

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

एस एस पी सौरव कुमार, आई पी एस। उम्र 35 के करीब, चुस्त शरीर और एक विशेष अंदाज़ के मालिक। उनकी आंखे विशेष रूप से चुम्बकीय आकर्षण रखती थीं और अपनी वाणी पर गजब की पकड़ हासिल थी उन्हें। पुलिस अधिकारी होने के पश्चात भी उनका व्यवहार किसी कूटनीतिज्ञ की तरह होता था।

थोड़े से समय में ही सौरव कुमार ने जालंधर शहर के हर छोटे बड़े व्यक्ति का महत्व समझ लिया था और उसी के अनुसार वे उससे व्यवहार करते थे।

सुबह दस बजे कार्यालय में आने का और फिर दो बजे तक बैठ कर जनता की शिकायतें सुनने का उनका नियम शायद ही कभी टूटता हो, जिसके कारण जन सामान्य के बीच में उन्हें अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल थी।

कार्यालय आये हुये उन्हें लगभग आधा घंटा हो चुका था और शिकायतें लेकर आने वालों का तांता लगा हुआ था।

सौरव कुमार बड़े ध्यान से हर एक शिकायत को सुनकर उचित निर्णय ले रहे थे और जनता की शिकायतों पर तेजी से कार्यवायी कर रहे थे।

इतने में संतरी ने आकर एक कार्ड दिया और सौरव कुमार के कार्ड पर दृष्टि डालने से पहले ही संतरी ने बताया। जनाब, प्रधान जी मिलना चाहते हैं।

प्रधान जी का नाम सुनते ही सौरव कुमार के चेहरे पर एक धीमी मुस्कान आ गयी और इसी मुस्कान के साथ उन्होने संतरी से कहा, उन्हें अंदर भेज दो।

सौरव कुमार भली भांति जानते थे कि प्रधान जी इस शहर के सामाजिक और राजनैतिक ढांचे का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा थे, और उनके साथ सौरव कुमार की मुलाकात होती ही रहती थी।

प्रधान जी के साथ उनके संबंध अकसर नरम गरम ही रहते थे। इसका कारण प्रधान जी का जनता के मामलों को लेकर कई बार ज़िद पर अड़ जाना होता था, जिसके चलते एस एस पी होने के नाते उन्हें मुश्किल का सामना करना पड़ता था।

किन्तु इन कभी कभी होने वाले सामयिक विवादों से हटकर सौरव कुमार प्रधान जी को दिल से पसंद करते थे। इसका कारण बेशक ही प्रधान जी का पीड़ितों के हक में बड़ी से बड़ी मुसीबत से भिड़ जाना था, जो सौरव कुमार को निजी रूप से पसंद था।

गुड मार्निग एस एस पी साहिब। प्रधान जी की इस आवाज़ के साथ ही सौरव कुमार की दृष्टि दरवाजे पर पड़ी तो उन्होंने देखा कि प्रधान जी अपने चिर परिचित अंदाज़ में भीतर प्रवेश कर चुके थे। उनके पीछे पीछे ही राजकुमार भी भीतर दाखिल हुआ, जो लगभग हमेशा ही उनके साथ आता था।

आईये आईये प्रधान जी, आज कैसे आना हुआ, शहर में सब कुशल मंगल तो है। प्रधान जी को छेड़ने वाले अंदाज़ में सौरव कुमार ने कहा।

गुड मार्निंग सर, राजकुमार का स्वर सौरव कुमार के कानों में पड़ा तो उन्होनें भी अभिवादन का जवाब दिया।

शहर में कुछ कुशल मंगल नहीं है सर, देखिये आप जैसे इंसाफ पसंद अफसर के राज में गरीबों पर क्या क्या ज़ुल्म हो रहे हैं। प्रधान जी ने सौरव कुमार को उकसाने वाले स्वर में कहा।

ऐसा क्या ज़ुल्म हो गया प्रधान जी, अभी सब ठीक कर देते हैं। आप बताईये तो सही। प्रधान जी के स्वर में छिपी उकसाहट को भली भांति समझते हुये सौरव कुमार ने भी मज़ा लिया।

ये आपको राजकुमार बतायेंगे। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर इशारा किया और सब लोग कुर्सियों पर बैठ गये।

सर ये चमन शर्मा हैं और माडल टाऊन में फास्ट फूड की एक दुकान चलाते हैं। राजकुमार ने प्रधान जी का संकेत समझ कर बोलना शुरू किया।

पास ही में इनका एक गोडाउन है जहां दुकान पर बिकने वाला सामान तैयार किया जाता है। राजकुमार जितनी गंभीरता से कहता जा रहा था, सौरव कुमार उतनी ही गंभीरता से उसकी बात को सुन और समझ रहे थे।

आज से आठ दिन पहले इनके पड़ोसी ठेकेदार हरपाल सिंह ने कब्ज़ा करने की नीयत से इनके गोदाम पर हमला कर दिया और एक दीवार को आंशिक रूप से गिरा भी दिया। राजकुमार सधे हुये स्वर में कहता जा रहा था।

हरपाल सिंह का नाम आते ही सौरव कुमार के चेहरे पर एक क्षण के लिये चिंता के लक्षण उभरे, जिन्हें उन्होने तुरंत ही सम्भाल लिया और अगले ही पल उनके चेहरे पर वही स्थायी मुस्कान थी।

कब्ज़ा आपके डी एस पी तेजपाल सिंह जी के दखल के कारण पूरा तो नहीं हो सका पर हरपाल सिंह ने उस दिन अपनी शैतानियत का नंगा नाच जी भर कर किया। राजकुमार के स्वर में तीखापन आता जा रहा था।

तब से लेकर आज तक चमन शर्मा हरपाल सिंह के खिलाफ बनती कानूनी कार्यवाही करने के लिये थाना माडल टाऊन से लेकर आपके दरबार तक लिखित शिकायतें दे चुके हैं, पर पुलिस ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है। कहते कहते राजकुमार ने फाईल में से पेपर्स का एक सैट निकाल कर सौरव कुमार की ओर बढ़ा दिया।

ये है वो शिकायत जो चमन शर्मा ने लिखित रूप में आपके पास पांच दिन पहले दर्ज करवायी थी और आपने इसे थाना माडल टाऊन को भेजते हुये इस पर उचित कार्यवाही करने के लिये कहा था। परंतु आज तक न तो कोई कार्यवाही हुयी और न ही किसी पुलिस अधिकारी ने चमन शर्मा का पक्ष जानने के लिये इनसे संपर्क किया। 

सौरव कुमार ने राजकुमार के स्वर की दृढता से फौरन भांप लिया कि ये मामला सीरियस होने वाला है। पेपर्स पर नज़र मारने के साथ साथ ही उन्होने बिना एक पल भी गंवाये फोन का रिसीवर उठाया और ऑपरेटर को आदेश दिया।

थाना माडल टाऊन के प्रभारी से तुरंत मेरी बात करवायी जाये। बड़े सटीक शब्दों में कहते हुये सौरव कुमार ने रिसीवर फोन पर रख दिया।

चिंता की कोई बात नहीं है प्रधान जी, सब ठीक हो जायेगा। आप पानी पीजिये। सौरव कुमार के कहते कहते ही एक कर्मचारी उन तीनों के सामने पानी रख चुका था।

आपके रहते हमें चिंता करने की क्या ज़रुरत है सर। प्रधान जी के स्वर में आत्मीयता थी।

पानी का गिलास अभी होंठों से लगने ही वाला था कि फोन की घंटी सुनकर प्रधान जी का हाथ वहीं रुक गया।

सौरव कुमार के रिसीवर उठाते ही दूसरी ओर से ऑपरेटर ने कुछ कहने के बाद फोन किसी और व्यक्ति के साथ कनेक्ट किया।

राजेंदर सिंह जी, पांच दिन पहले आपके थाने में चमन शर्मा द्वारा दी गयी एक शिकायत मेरे कार्यालय से भेजी गई थी। उस पर क्या कार्यवाही की है आपने। सौरव कुमार के स्वर में डांट सपष्ट झलक रही थी।

मुझे इस मामले की सारी रिपोर्ट आज शाम तक पूरी कर के दीजिये। दूसरी तरफ से कुछ कहा गया जिसे सुनने के बाद सौरव कुमार ने कहा और रिसीवर फोन पर रख दिया।

आप मुझे कल सुबह तक का समय दीजिये प्रधान जी, मैं इस मामले को निजी स्तर पर फॉलो करता हूं। सौरव कुमार के स्वर में पूर्ण आश्वासन था।

हमारे इंसाफ पसंद एस एस पी साहिब की जय हो। पानी का खाली गिलास नीचे रखते हुये प्रधान जी ने नारा लगाया और फिर चमन शर्मा की ओर देख कर बोले।

चलिये चमन जी, हमारे सर ने वायदा कर दिया है। अब आपका काम जरूर हो जायेगा। सौरव कुमार की ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखते हुये प्रधान जी ने कहा और जाने के लिये उठ पड़े।

सौरव कुमार ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में दोनो हाथ जोड़ कर प्रधान जी को नमस्कार किया और सब लोग उनके कार्यालय से बाहर आ गये।

प्रसन्नता के मारे चमन शर्मा का बुरा हाल था। उसे लग रहा था जैसे पुलिस अभी के अभी उसकी शिकायत पर कार्यवाही करते हुये हरपाल सिंह के खिलाफ केस दर्ज कर लेगी।

एस एस पी साहिब तो आपकी बात बहुत ध्यान से सुनते हैं प्रधान जी। लगता है अब अपना काम शीघ्र ही हो जायेगा। चमन शर्मा के मुंह से आखिर निकल ही पड़ा।

इतनी जल्दी किसी नतीजे पर मत पहुंचिये चमन जी, सामने भी हरपाल सिंह है। उसकी पहुंच बहुत ऊपर तक है। पुलिस पर बहुत दबाव आयेगा इस मामले में। बाहर खड़े सब लोगों के पास पहुंचते हुये प्रधान जी बोले।

पुत्तर जी, क्यों न एक बार डी एस पी तेजपाल सिंह से मिल लिया जाये। चमन शर्मा के कुछ कहने से पहले ही प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

बहुत अच्छा विचार है प्रधान जी। राजकुमार ने प्रधान जी की बात का समर्थन करते हुये कहा।

चमन जी आप आईये हमारे साथ, डी एस पी तेजपाल सिंह पहले फ्लोर पर बैठते हैं। कहते कहते प्रधान जी और राजकुमार ने सीढियां चढ़नी शुरू कर दीं तो बाकी सब लोग भी एकदम से उनके पीछे हो लिये।

तेजपाल सिंह के कार्यालय के बाहर पहुंचते ही उनके संतरी ने प्रधान जी को देखकर अभिवादन किया और कहा। साहिब अंदर ही हैं प्रधान जी, आप चले जाईये। कहते हुये उसने कार्यालय का दरवाजा खोला तो प्रधान जी और राजकुमार ने भीतर जाते हुये चमन शर्मा को आने के लिये और बाकी सब लोगों को रुकने के लिये संकेत दिया।

हमारे डी एस पी साहिब की जय हो। नारा लगाते हुये प्रधान जी ने कार्यालय में प्रवेश किया तो तेजपाल सिंह ने किसी महत्वपूर्ण फाईल से नज़र हटा कर उनकी ओर देखा।

अरे प्रधान जी, आज बड़े दिनों बाद इस भाई की याद आयी। हां हां, आपके सारे काम तो एस एस पी साहिब और एस पी सिटी साहिब ही कर देते हैं, फिर इस डी एस पी भाई की क्या जरूरत है आपको। तेजपाल सिंह के स्वर में शिकायत थी।

ऐसी कोई बात नहीं है तेजपाल भाई, मेरे इस भाई जैसे शेर तो सारी पुलिस फोर्स में गिनती के ही हैं, मुझे सब पता है। प्रधान जी ने पहेली डालने वाले अंदाज़ में कहा।

क्या पता है प्रधान जी, मैं कुछ समझा…………… तेजपाल सिंह के बाकी शब्द अभी मुंह में ही थे कि उन्होंने राजकुमार के साथ साथ चमन शर्मा को भी अंदर आते देखा।

अच्छा तो ये बात है। एक पल में ही सारी बात समझ कर तेजपाल सिंह ने ज़ोर का ठहाका लगाया।

एक पल में उनका हाथ मेज़ पर पड़ी घंटी पर लगा और किसी के कुछ बोलने से पहले ही दरवाजे की ओर से संतरी की आवाज़ आयी। जी जनाब

सबके लिये चाय का इंतजाम करो। तेजपाल सिंह ने आदेश दिया।

आप सब लोग बैठिये न। खुद बैठते हुये और सबके अभिवादन का जवाब देते हुये तेजपाल सिंह ने कहा।

क्यों चमन जी, मैने कहा था न, दुनिया में ऐसा कोई शैतान नहीं जिसका अंत करने के लिये भगवान ने कोई फरिश्ता न बनाया हो। हरपाल सिंह जैसे शैतान को ठीक करने के लिये हमारे इस शेरदिल भाई जैसा दूसरा कोई भी इंसान नहीं मिलेगा आपको, इस शहर में। वाहेगुरु ने पूरी मेहर की है आपको इनसे मिलवाकर। अब आपका काम होने से कोई नहीं रोक सकता। तेजपाल सिंह के स्वर में प्रधान जी के प्रति पूर्ण विश्वास था।

तेजपाल सिंह जैसे निडर इंसान के मुंह से प्रधान जी की इतनी तारीफ सुनने के बाद चमन शर्मा को अपनी किस्मत पर नाज हुआ और उसने मन ही मन भगवान संकटमोचक को कोटि कोटि धन्यवाद दिया, जिनकी कृपा से प्रधान जी उसे मिले थे।

आपने तो कमाल कर दिया उस दिन तेजपाल भाई, मुझे चमन जी ने सब बताया है। प्रधान जी की आवाज़ को सुनकर चमन शर्मा के विचारों की कड़ी टूटी।

अरे प्रधान भाई, मेरा बस चलता तो मैं उस हरपाल सिंह को वहीं ठोक देता; लेकिन ऐन मौके पर साला………………, कुछ कहते कहते तेजपाल सिंह एकदम से रुक गये।

रुक क्यों गये तेजपाल भाई, कहिये न, साला किसका फोन आ गया। प्रधान जी ने मज़ा लेते हुये कहा।

आपको तो पता है न प्रधान भाई, नौकरी है, नाम नहीं ले सकते। अपने आप को संभालते हुये तेजपाल सिंह बोले।

कुछ बड़ा ही मामला लगता है ये, जो आपके जैसा शेर अफसर भी चुप कर गया। प्रधान जी ने गंभीरता से कहा।

बहुत ऊपर से सिफारिश है उसकी प्रधान जी। पुलिस पर बहुत दबाव है इस मामले में। तेजपाल का स्वर गंभीर हो गया था।

हम अभी अभी एस एस पी साहिब से मिलकर आये हैं और उन्होने इस मामले में कार्यवाही करने के लिये कल तक का समय मांगा है। आपको क्या लगता है, तेजपाल भाई। प्रधान जी ने पूछा।

बहुत मुश्किल है इतनी जल्दी इस मामले में कोई कार्यवाही होनी। इसका हल तो आपको अपने अंदाज़ में ही करना होगा। तेजपाल सिंह के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गयी थी।

आपका मतलब मोर्चा लगाना पड़ेगा। प्रधान जी के इन शब्दों के साथ ही चमन शर्मा को तेजपाल सिंह की बात का अर्थ समझ आ गया।

इसमें कोई शक नहीं है प्रधान भाई, जब तक इस केस में चमन जी की ओर से जबरदस्त दबाव नहीं बनेगा, पुलिस के पास हरपाल सिंह के आकाओं को पीछे हटाने का कोई बहाना नहीं है। तेजपाल सिंह ने सिर हिलाते हुये कहा।

ह्म्म्म्म्म्…… एक लंबी हुंकार भरते हुये प्रधान जी ने कहा।

और दबाव बनाने के लिये न्याय सेना से अच्छा इस शहर में कोई संगठन नहीं है। इसीलिये तो मैने चमन जी को कहा था कि इनका काम करने के लिये आपसे अच्छा कोई विकल्प हो ही नहीं सकता। कहते कहते तेजपाल सिंह मुस्कुरा दिये थे।

तो ठीक है फिर तेजपाल भाई, पहले कल एस एस पी साहिब की कार्यवाही को देखते हैं और फिर उसके बाद हालात के हिसाब से आगे की रणनीति बनाते हैं। टेबल पर आ चुकी चाय का कप उठाते हुये प्रधान जी ने कहा।

एक बात आपका ये भाई भी कहना चाहता है, प्रधान भाई। तेजपाल सिंह के स्वर में कड़वाहट घुलनी शुरू हो गयी थी।

आप हुकुम कीजिये भाई साहिब, आपका हर हुकुम सर माथे पर। प्रधान जी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में नारा लगाया।

चाहे कुछ भी हो जाये, चाहे कहीं तक भी जाना पड़ जाये, इस दुष्ट हरपाल सिंह को छोड़ना मत प्रधान भाई। मेरी वर्दी ने मेरे हाथ बांध दिये हैं वरना मैं भैन……………… तेजपाल सिंह के स्वर की कड़वाहट अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी।

ऐसा ही होगा तेजपाल भाई, सारा शहर बहुत जल्द ही हरपाल सिंह का बुरा हाल देखेगा, ये आपके इस प्रधान भाई का वायदा है। अब चाहे हरपाल सिंह के पीछे स्वयम प्रदेश के मुख्यमंत्री ही क्यों न खड़े हो जायें, वो बच नहीं पायेगा। आप आराम से चाय पीजिये और तमाशा देखिये। प्रधान जी की आवाज़ में दृढता और हास्य का मिश्रण था।

ये हुई न बात, इस बात पर तो चाय के साथ बिस्किट भी खाना बनता है प्रधान भाई। तेजपाल सिंह के इतना कहते ही कमरे में एक दम से कई ठहाके गूंज उठे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 06

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

अगले दिन सुबह 10:30 बजे, एस एस पी कार्यालय जालंधर।

चमन शर्मा सुशील कुमार के साथ एस एस पी कार्यालय के बाहर बड़ी उत्सुकुता के साथ प्रधान जी की प्रतीक्षा कर रहा था।

प्रधान जी ने 10:30 का समय ही दिया था न चमन भाई। सुशील कुमार ने पूछा।

जी सुशील भाई, राजकुमार का कल शाम फोन आया था और उसने कहा था कि कल मैं न्याय सेना के कार्यालय की बजाय सुबह 10 बजकर 30 मिनट पर एस एस पी कार्यालय पर ही पहुंच जाऊं। प्रधान जी मुझे वहीं मिलेंगे। चमन शर्मा ने जवाब दिया।

तब तो प्रधान जी आने वाले ही होंगे।

इतने में ही प्रधान जी सामने से आते हुये दिखायी दिये। उनके साथ राजकुमार और राजू के अलावा आज एक और युवा लड़का भी था, जो आस पास देखता हुआ एकदम तन कर चल रहा था।

ये आज साथ में एक और लड़का कौन है सुशील भाई। अपनी जानकारी बढ़ाने के लिये चमन शर्मा ने पूछा।

इसका नाम जगत प्रताप है और सारे इसे जग्गू कहते हैं। ये प्रधान जी का बहुत विश्वस्त सिपहसालार है और उनके एक इशारे पर मरने मारने को तैयार रहता है। इसके पास हरजीत राजू की तरह ही युवाओं की एक बड़ी फौज है।

सुशील कुमार ने बताया तो चमन शर्मा को जग्गू के इस तरह तन कर चलने का कारण समझ आया। असल में वो प्रधान जी के एकदम पीछे एक अंगरक्षक की तरह चल रहा था।

रास्ते में मिलने वाले अनेक लोगों के अभिवादनों का जवाब देते हुये प्रधान जी जब इन दोनों के पास पहुंचे तो चमन शर्मा ने भी सुशील कुमार की तरह ही आज प्रधान जी के चरण स्पर्श किये।

जीते रहो, जीते रहो। वातावरण में प्रधान जी का चिर परिचित स्वर गूंजा।

चमन जी, आप सारी शिकायतों वाली फाईल लेकर हमारे साथ एस एस पी साहिब के पास चलेंगे और बाकी सब लोग यहीं पर इंतजार करेंगे। राजकुमार की इस आवाज़ पर चमन शर्मा ने एकदम से अपने हाथ में पकड़ी हुई फाईल को टटोला।

राजकुमार ने आगे बढ़कर प्रधान जी का कार्ड कार्यालय के बाहर खड़े संतरी को दिया, जो प्रधान जी को अभिवादन करने के बाद वो कार्ड लेकर अंदर चला गया।

एक मिनट से भी कम का समय गुज़रा होगा कि संतरी ने वापिस आकर कहा, प्रधान जी साहिब ने आपको अंदर बुलाया है।

चलिये चमन जी, आपको आज हमारे एस एस पी साहिब से मिलवाते हैं। प्रधान जी का स्वर सुनकर चमन शर्मा तेजी से प्रधान जी और राजकुमार के पीछे हो लिया जो अपनी सधी हुई गति से कार्यालय के भीतर जा रहे थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 05

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

भीतर के केबिन से सब लोग बाहर जा चुके थे और अब केवल प्रधान जी और राजकुमार ही अंदर थे। प्रधान जी अपनी कुर्सी पर और राजकुमार उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठा था।

तो पुत्तर जी, आपकी क्या सलाह है, इस मामले को हमें किस तरह से डील करना चाहिये।

मैने सारे पेपर्स देखे हैं प्रधान जी, और मेरे ख्याल से हमें सबसे पहले इस मामले में एस एस पी सौरव कुमार से मिलना चाहिये। राजकुमार के स्वर में आदर स्पष्ट झलक रहा था।

ओ जीत रहो मेरे युवराज, मेरे मुंह की बात छीन ली। प्रधान जी ने प्रसन्नता भरे स्वर में ऐसे कहा जैसे उन्हें पहले ही पता हो कि राजकुमार का यही जवाब होगा।

सौरव कुमार बहुत ही कुशल एस एस पी हैं और आपके उनके साथ बहुत अच्छे संबंध भी हैं। भले ही किसी राजनैतिक दबाव के कारण इस मामले में सीधे रूप से वो हमारी कुछ मदद न कर पायें, पर ऊपर तक ये बात जरूर पहुंचा देंगे कि न्याय सेना ने ये मामला अब अपने हाथ में ले लिया है, जिसका लाभ हमें मिलेगा। राजकुमार कहता जा रहा था।

हरपाल सिंह कोई नई बदमाशी करने से बाज आ जायेगा क्योंकि वो आपके प्रभाव और न्याय सेना की ताकत को जानता है। इससे हमें अपना काम आराम से करने का समय मिल जायेगा और फिर एक लाभ और भी हो जायेगा। राजकुमार ने अपनी बात को विराम दिया।

वो क्या पुत्तर जी। प्रधान जी ने जैसे सब समझते हुये भी राजकुमार को परखने के लिये पूछा।

पुलिस के सभी अधिकारियों के साथ न्याय सेना के बहुत अच्छे संबंध हैं। कोई और कदम उठाने से पहले उन्हें एक मौका दे देने से उन्हें बाद में ये कहने का अवसर नहीं मिलेगा कि हमने उनपर भरोसा न करते हुये सीधे ही कोई आक्रामक कदम उठा लिया। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की।

ओ जीते रहो मेरे शेरू, मेरी डार्लिंग। जी करता है इस बात पर तेरा मुंह चूम लूं। प्रधान जी के स्वर में ऐसा गर्व झलक रहा था जैसे कोई गुरू अपने बहुत काबिल शिष्य को देखकर करता है।

यूं तो संगठन में एक से एक हीरा भरा पड़ा है, पर राजतंत्र की प्रणाली को समझ कर उसमें से काम निकालने की जो समझ तुम्हारे अंदर है, वो और किसी में नहीं। प्रधान जी के स्वर में गर्व की मात्रा बढ़ती जा रही थी।

सब आपसे ही सीखा है प्रधान जी। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

इसीलिये तो हम तुम्हें अपना युवराज कहते हैं, मेरे राजकुमार। प्रधान जी के स्वर में अब गर्व के साथ साथ एक पिता का प्रेम भी उमड़ आया था।

प्रधान जी की जय हो। प्रधान जी के स्वर में घुले हुये प्रेम की तीव्रता को भांपते हुये राजकुमार ने माहौल को हल्का करने के लिये कहा।

तो फिर तय रहा, कल सुबह चमन शर्मा के साथ सबसे पहले एस एस पी सौरव कुमार को मिला जायेगा और उनसे इस केस पर बनती उचित कार्यवाही करने को कहा जायेगा। वहां से आगे फिर हालात के हिसाब से निर्णय लिया जायेगा। प्रधान जी का स्वर पुन: संतुलित हो चुका था।

जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी, तब तक मैं इस केस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में अपनी जानकारी बढ़ा लेता हूं ताकि जब हम एस एस पी से मिलें तो पूरी तरह से तैयार हों। राजकुमार ने कहा।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 04

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

दस बजने में लगभग बीस मिनट शेष थे और चमन शर्मा मिलाप चौक पहुंच चुका था। उत्सुकुता के कारण वो 15 मिनट जल्दी ही घर से निकल गया था।

आस पास देखने पर जब उसे ऑफिस ही ऑफिस दिखाई दिये तो उसने किसी से पूछ लेना ही उचित समझा।

भाई, यहां पर न्याय सेना पंजाब का कार्यालय कहां है, मुझे वरूण शर्मा जी से मिलना है। चाय की एक दुकान पर जाकर चमन शर्मा ने पूछा क्योंकि उसका अंदाज़ा था कि चाय वाले को ज़रुर पता होगा।

श्रीमान जी, प्रधान जी का नाम नहीं लेता कोई, उन्हें केवल प्रधान जी ही कहते हैं सब। चाय वाले के स्वर में आदर एकदम स्पष्ट झलक रहा था।

गल्ती हो गई भाई, चमन शर्मा को एकदम से लगा जैसे उसने इस चाय वाले के सामने प्रधान जी का नाम लेकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।

अरे ऐसी कोई बात नहीं, मैं तो आपको एक सामान्य बात बता रहा था। वो सामने सीढियां दिखाइ दे रहीं हैं न, ऊपर चढ़कर पहली मंजिल पर है उनका कार्यालय। वो देखिये सामने बोर्ड भी लगा हुआ है। चाय वाले ने इस बार बहुत मित्रता भरी आवाज़ में कहा।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई। कहते हुये चमन शर्मा ने चाय वाले की बताई दिशा में देखा तो उसे कार्यालय का बोर्ड दिखायी दे गया।

बेझिझक जाईए श्रीमान जी, अगर आपका कार्य सही होगा तो प्रधान जी आपकी सहायता अवश्य करेंगे। और एक बार उन्होंने आपकी सहायता का वचन दे दिया तो फिर आपका काम होने से कोई नहीं रोक सकता। बजरंग बली की अपार कृपा है हमारे प्रधान जी पर। चाय वाले के स्वर में एक बार फिर आदर उमड़ आया था।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद, भाई। इतना कहकर चमन शर्मा न्याय सेना के कार्यालय की ओर चल दिया। सुशील कुमार और चाय वाले ने जिस प्रकार प्रधान जी में आस्था और आदर दर्शाया था, उससे चमन शर्मा को विश्वास हो चला था कि आज प्रधान जी के कार्यालय से वो खाली हाथ नहीं जायेगा।

इन्हीं विचारों में डूबा हुआ चमन शर्मा न्याय सेना के कार्यालय को जाने वाली सीढियां चढ़ गया और कार्यालय के भीतर पहुंच गया।

मुझे प्रधान जी से मिलना है, कार्यालय में बैठे एक युवा दिखने वाले लड़के से चमन शर्मा ने कहा। देखने में ये लडका 20-22 साल का लगता था, जिसका कद करीब 6 फीट और शरीर तगड़ा था।

जी कहिये आपको क्या काम है, क्या आपने मिलने का समय लिया हुआ है ? सामने से उस लड़के ने पूछा।

ये अपने ही साथ हैं राजू भाई । चमन शर्मा अभी कोई जवाब सोच ही रहा था कि पीछे से सुशील कुमार की आवाज़ सुनाई दी। चमन शर्मा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि सुशील कुमार कार्यालाय के भीतर प्रवेश कर चुका था।

कैसे हैं सुशील भाई, बहुत दिनों बाद दर्शन हुये हैं आपके। राजू नाम के उस लड़के ने बहुत आत्मीयता के साथ पूछा।

बस ठीक हूं राजू भाई, ये अपने चमन शर्मा जी हैं। बहुत संकट में हैं। मैने प्रधान जी से सुबह इनके बारे में बात की थी और उन्होने दस बजे कार्यालय आने के लिये कहा था। सुशील कुमार ने जवाब दिया।

तब तो आप प्रधान जी के कार्यालय में ही बैठ जाईये, वो किसी भी समय आते ही होंगे। कहते कहते राजू ने भीतर के एक केबिन का दरवाजा खोल दिया।

धन्यवाद राजू भाई। चमन भाई, ये हमारे हरजीत सिंह राजू भाई हैं। न्याय सेना के सचिव और प्रधान जी के बहुत करीबी लोगों में से एक। सुशील कुमार ने चमन शर्मा का परिचय राजू से करवाते हुये कहा।

चमन शर्मा ने दोनो हाथ जोड़ कर राजू को नमस्कार किया और कहा। राजू भाई, बहुत बड़े संकट में हूं। अब तो केवल आप लोगों का ही सहारा है।

चिंता मत कीजिये चमन जी, आपका संकट तो इस कार्यालय के बाहर ही रह गया। यहां कोई संकट नहीं आता, यहां तो केवल समाधान आते हैं। हमारे प्रधान जी पर साक्षात संकटमोचक भगवान की कृपा है। आप निश्चिंत हो जायें। राजू के स्वर में भी वही आत्मविश्वास और आदर था जो चमन शर्मा ने सुशील कुमार और चाय वाले की आवाज़ों मे महसूस किया था।

राजू ने कार्यालय का दरवाजा खोल कर उन्हें एक बड़े टेबल के एक ओर पड़ी कुर्सियों पर बैठा दिया। टेबल के दूसरी ओर एक बड़ी रिवाल्विंग कुर्सी लगी हुई थी जो निश्चित रूप से ही प्रधान जी के बैठने के लिये ही थी।

आप लोग बैठिये, मैं चाय का इंतजाम करता हूं। कहते हुये राजू कार्यालय से बाहर निकल गया।

चमन शर्मा ने नज़र घुमा कर देखा तो पाया कि कार्यालय के एक कोने में एक छोटा सा मंदिर बना हुआ था जिसमें भगवान शिव, मां जगदंबा और संकटमोचक भगवान बजरंग बली की तस्वीरें रखी हुईं थीं।

संकटमोचक के चित्र पर दृष्टि पड़ते ही चमन शर्मा का मन आदर और श्रद्धा से भर गया। भगवान ने इतने कम समय में ही उसे उसकी समस्या के समाधान के इतना करीब पहुंचा दिया था।

भक्ति भाव से भरे चमन शर्मा के मन में अक्समात ही श्री हनुमान चालीसा का स्तोत्र फूट पड़ा।

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर। राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवन सुत नामा………………………………

टीटू, काले, तारी, जल्दी से सब सामान ठीक कर लो। प्रधान जी घर से निकल चुके हैं और किसी भी समय कार्यालय पहुंचने वाले हैं। माहौल में राजू की आवाज़ गूंजी और साथ ही चमन शर्मा ने नज़र घुमा कर देखा कि चार पांच युवा लड़के कार्यालय में आ चुके थे और सामान को ठीक जगह पर रख रहे थे।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा, भीम रूप धरि असुर संहारे, राम चंद्र के काज संवारे…………………………………… चमन शर्मा निरंतर हनुमान चालीसा का पाठ करता जा रहा था।

ये सब लड़के न्याय सेना के सदस्य एवम पदाधिकारी हैं, चमन भाई। सुशील कुमार की आवाज़ चमन शर्मा के कानों में पड़ी, जो अपना पाठ जारी रखे हुए था।

……………………………और देवता चित्त न धरहिं, हनुमत से ही सर्व सुख करहिं। संकट कटे मिटे सब पीड़ा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।

प्रधान जी आ गये, प्रधान जी आ गये। बाहर से कार्यालय में प्रवेश करते हुये एक युवा लड़के ने जैसे ही कहा, राजू सहित सारे लड़के एक दम सावधान मुद्रा में खड़े हो गये।

चमन शर्मा ने आवाज़ की दिशा में नज़र घुमायी तो देखा कि प्रधान जी कार्यालय के प्रवेश द्वार से अंदर आ रहे थे।

ये हनुमान चालीसा का असर था या चमन शर्मा के मन के भाव, प्रधान जी को देखते ही उसे एक बार तो ऐसा लगा कि जैसे साक्षात बजरंग बली का ही कोई रूप देख लिया हो उसने।

40-45 की उम्र, मध्यम कद, तगड़ा कसरती शरीर, सिर पर छोटे बाल और चेहरे पर एक अदभुत तेज। एक बार चमन शर्मा की नज़र जो प्रधान जी के चेहरे पर पड़ी तो फिर वहां से हट न सकी।

चरण स्पर्श प्रधान जी, चरण स्पर्श प्रधान जी। राजू सहित कई स्वर एक साथ वातावरण में गूंज उठे जो चमन शर्मा को कहीं दूर से आते हुये प्रतीत हो रहे थे क्योंकि वो तो प्रधान जी के व्यक्तित्व के प्रभाव में ही खोया हुआ था।

जीते रहो पुत जी, जीते रहो मेरे शेर। वर्षा के मेघ जैसी वही पहचानी हुई आवाज़ जब चमन शर्मा के कानों में पड़ी तो उसकी तन्द्रा टूटी और उसने एक बार फिर से माहौल का जायज़ा लिया।

प्रधान जी भीतरी केबिन के दरवाजे से अंदर आ रहे थे और सुशील कुमार अपनी कुर्सी से उठकर उनके चरण स्पर्श करने के लिये आगे बढ़ रहा था।

पैरी पौना प्रधान जी। चरण स्पर्श करते हुये सुशील कुमार ने कहा।

ओ जीते रहो मेरे शेरू। मेघ ने जैसे एक बार फिर से नाद किया।

नमस्कार राजकुमार भाई, कैसे हैं आप। चमन शर्मा के कानों में सुशील कुमार का ये स्वर पड़ा तो उसकी नज़र प्रधान जी के बिल्कुल साथ चल रहे एक युवा लड़के पर पड़ी।

भगवान शिव की कृपा से सब ठीक है, सुशील भाई। लड़के की आवाज़ में जबरदस्त आत्मविश्वास और अपनापन था।

देखने में 22-23 वर्ष का ये लड़का मध्यम कद का था, मज़बूत शरीर, प्रधान जी की तरह ही छोटे बाल और चाल में गज़ब का आत्मविश्वास। एक बार तो चमन शर्मा को लगा जैसे प्रधान जी का अपना बेटा ही हो।

प्रधान जी, ये हैं मेरे मित्र चमन शर्मा। सुशील कुमार की आवाज़ सुनकर चमन शर्मा की विचार धारा को विराम लगा तो उसने देखा कि स्वत: ही वो अपनी कुर्सी से उठ चुका था और उसके हाथ अपने आप ही जुड़ चुके थे।

नमस्कार प्रधान जी, जुड़े हुये हाथों के साथ पूरे आदर के साथ चमन शर्मा ने कहा।

कैसे हैं चमन जी, मेघ के गर्जन में बहुत आत्मीयता थी।

बस मुझे दो मिनट दीजिये, फिर आपसे बात करता हूं। कहते हुये प्रधान जी कोने में लगे हुये मंदिर की ओर चल दिये और उनके पीछे पीछे राजकुमार नाम का वह लड़का भी चल पड़ा।

चमन शर्मा के देखते ही देखते प्रधान जी ने मंदिर में धूप जलायी, फिर पूजा करनी शुरू कर दी। राजकुमार नाम का वह लड़का भी साथ साथ ही पूजा कर रहा था।

ये लड़का कौन है, सुशील भाई। प्रधान जी का कोई विशेष आत्मीय लगता है। साये की तरह उनके साथ है। चमन शर्मा के स्वर में उत्सुकुता थी।

आपने ठीक पहचाना चमन भाई। ये प्रधान जी का साया ही है। नाम राजकुमार है, उम्र 25 वर्ष और ये न्याय सेना के सैक्रटरी जनरल हैं, अर्थात सब महासचिवों में सबसे बड़े। इनके लिये ये पद प्रधान जी ने विशेष रूप से बनाया है। सुशील कुमार ने कहा।

इसकी उम्र पर मत जाईएगा, इसके कारनामे बहुत बड़े हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त है, धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता है, दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता है और गजब का साहसी है। भगवान शिव का भक्त है, और इस पर उनकी विशेष कृपा है। सुशील कुमार बोलता जा रहा था।

प्रधान जी का दांया हाथ है ये। वे इसे अपने बेटे की तरह मानते हैं। संगठन को आधुनिक रूप देने में इसका बहुत बड़ा योगदान है, सारे कागज़ी काम यही देखता है और प्रधान जी संगठन का कोई भी विशेष निर्णय इसकी सलाह के बिना नहीं लेते। कई लोग तो इसे प्रधान जी का उत्तराधिकारी भी कहते हैं। सुशील कुमार ने अपनी बात पूरी की।

और सुनाईये सुशील जी, पुन: मेघ गर्जना हुई तो चमन शर्मा ने देखा कि प्रधान जी पूजा करके अपनी कुर्सी की ओर बढ़ रहे थे और साथ साथ राजकुमार भी था।

आपके आशिर्वाद से सब ठीक है प्रधान जी, ये हैं मेरे मित्र चमन शर्मा जी, जिनके बारे में आपसे बात की थी। सुशील कुमार ने कहा।

चमन जी, आप कैसे हैं। मेघ का गर्जन इस बार बहुत सौम्य और आत्मीय था। प्रधान जी कुर्सी पर बैठ चुके थे और राजकुमार उनकी कुर्सी के पीछे ही खड़ा हो गया था।

बहुत सताया हुआ हूं प्रधान जी, बस अब आपका ही सहारा है। चमन शर्मा के अंदर के दर्द का बांध जैसे टूट गया था, प्रधान जी के इन आत्मीय शब्दों को सुनकर।

चिंता मत कीजिये, चाय आ गयी है। चाय पीजिये और आराम से सारी बात बताईये। भगवान संकटमोचक की कृपा से आपकी समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकल आयेगा। प्रधान जी के इन ढाढस बंधाते शब्दों के साथ ही चमन शर्मा ने देखा कि एक लड़का सबके सामने चाय के कप रख रहा था।

प्रधान जी, मैं माडल टाऊन में फास्ट फूड की एक दुकान चलाता हूं। पास ही में मेरा गोदाम है, जिसमें हम सारा सामान तैयार करके दुकान पर ले जाते हैं। कहते कहते चमन शर्मा ने नोट किया कि प्रधान जी तो बहुत सामान्य होकर उसकी बातें सुन रहे थे किंतु राजकुमार उसे बहुत गौर से देख रहा था।

पहली बार चमन शर्मा ने नोट किया कि राजकुमार की दृष्टि में गजब का पैनापन था। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी नज़र चमन शर्मा के भीतर तक जाकर सच निकाल लायेगी।

मेरे साथ वाली इमारत में हरपाल सिंह नाम के एक ठेकेदार का ऑफिस है। चमन शर्मा कहता जा रहा था………………………………………………………………………

और इस तरह आज उस घटना को सातवां दिन हो गया है, पर कोई भी मेरा साथ देने को राज़ी नहीं। सब अफसरों के पास जा चुका हूं, राजनेताओं को भी मिल चुका हूं, पर हरपाल सिंह का नाम सुनकर सब बहाना बना देते हैं। चमन शर्मा ने अपनी बात पूरी की।

क्या आपने आधिकारिक रूप से इस सारी घटना की शिकायत दर्ज करवा के कार्यवाही की मांग की है। प्रधान जी की बजाये राजकुमार का सधा हुआ स्वर चमन शर्मा के कानों में पड़ा तो उसने एक बार फिर पाया कि प्रधान जी बहुत सहज भाव में बैठे थे, जबकि राजकुमार का शत प्रतिशत ध्यान चमन शर्मा की एक एक बात पर केंद्रित था।

मैने आपसे कहा था न चमन भाई, संगठन के कागज़ात से संबधित सारे काम राजकुमार ही देखते हैं। ये आपसे जो भी प्रश्न पूछते हैं, उनका ठीक ठीक उत्तर देते जाईये। सुशील कुमार का स्वर चमन शर्मा के कानों में पड़ा।

जी बिल्कुल की है, थाने से लेकर एस एस पी कार्यालय तक सब जगह की है। चमन शर्मा ने कहा।

क्या आप वो सारे पेपर्स साथ लाये हैं। राजकुमार के स्वर में फिर वही सधापन था।

जी हां, ये रहे वो सारे पेपर्स। कहते हुये चमन शर्मा ने एक फाईल राजकुमार की तरफ बढा दी।

फाईल लेकर राजकुमार ने उसमें से कुछ पढ़ना शुरू कर दिया और माहौल में एक मिनट के लिये शांति कायम हो गयी, जिसे एक बार फिर मेघ की गर्जना ने तोड़ा।

आप चाय पीजिये चमन जी, तब तक राजकुमार आपकी फाईल को स्टडी कर लेंगे।

चमन शर्मा ने चाय का कप उठाया और चुस्की लेने लगा। बाकी सब लोग भी अपनी अपनी चाय पीने लगे।

लगभग पांच मिनट तक माहौल में सन्नाटा कायम रहा, जिसे तोड़ा चमन शर्मा की फाईल के टेबल पर गिरने की आवाज़ ने, जो राजकुमार ने पढ़ने के बाद टेबल पर रखी थी।

चमन शर्मा ने देखा कि राजकुमार प्रधान जी के कान में कुछ कह रहा था, बदले में प्रधान जी ने उसके कान में कुछ कहा और फिर राजकुमार ने उनके कान में कुछ कहा।

संगठन आपका केस लेगा या नहीं, इसका फैसला अभी हो जायेगा चमन भाई। राजकुमार और प्रधान जी आपके केस के बारे में सलाह कर रहे हैं और इसके तुरंत बाद आपको निर्णय सुना दिया जायेगा। सुशील कुमार की ये आवाज़ चमन शर्मा के कानों में पड़ी तो उसका दिल जैसे उछल कर उसके गले में फंस गया।

मन ही मन भगवान संकटमोचक को याद करते हुये उसने प्रधान जी और राजकुमार की ओर देखा जो लगातार कानाफूसी करते जा रहे थे। माहौल में गजब की शांति थी जैसे सबको पता था कि कुछ बहुत महत्वपूर्ण हो रहा है।

लगभग दो मिनट की कानाफूसी के बाद राजकुमार एक बार फिर सीधा खड़ा हो गया और प्रधान जी ने चमन शर्मा की ओर देखा, जिसका दिल अभी भी ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था।

आपका केस हमें सच्चा लग रहा है चमन जी, न्याय सेना ने इसे हाथ में लेने का निर्णय लिया है। मेघ की इस गर्जना में इस बार वो सारा अमृत रूपी जल भी था, जिसने चमन शर्मा के मन की सूखी हुई ज़मीन को जैसे पूरी तरह से भिगो दिया था।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद प्रधान जी, मैं इस सहायता के लिये सदा आपका आभारी रहूंगा। प्रसन्नता से भरी आवाज़ के साथ चमन शर्मा ने कहा।

इसमें धन्यवाद जैसी कोई बात नहीं चमन जी, हमारा ये संगठन पीड़ितों की सहायता करने का ही काम करता है। अब आप आराम से अपना काम कीजिये और कल सुबह दस बजे हमारे कार्यालय दोबारा आ जाईये। तब तक हमारा संगठन आपके केस को डील करने की रणनीति बना लेगा। प्रधान जी के स्वर में पूर्ण आश्वासन था।

और हां, अपना मोबाइल नंबर नोट करवाते जाईएगा ताकि आवश्यकता पड़ने पर हम आपसे बात कर सकें। कहते हुये प्रधान जी ने अपनी बात समाप्त की।

बिलकुल ठीक है प्रधान जी, पर मेरे मन में बस एक ही भय है। डरते डरते चमन शर्मा ने कहा।

नि:संकोच होकर कहिये चमन जी, जो भी आपके मन में है। एक बार फिर प्रधान जी का आत्मीय स्वर चमन शर्मा के कानों में पड़ा।

हरपाल सिंह ने मुझे 15 दिन दिये थे जिसमें से सात दिन आज पूरे हो गये हैं। अगर हम लोगों ने बचे हुये आठ दिनों में कुछ नहीं किया तो उसने मेरे गोदाम की सारी इमारत गिरा देने की धमकी दी है। क्या अगले सात दिन में हमारा काम हो जायेगा। चमन शर्मा की आवाज़ में बहुत ही भोलापन था।

इतना सुनते ही एक साथ कई ठहाके माहौल में गूंज उठे जिसमे सुशील कुमार का ठहाका भी था। कुछ भी न समझने वाले अंदाज़ में चमन शर्मा ने प्रधान जी की ओर देखा तो पाया कि वो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

आपके काम को चाहे एक महीना भी लग जाये चमन जी, अब कोई माई का लाल आपकी इमारत की एक ईंट पर भी नज़र नहीं डाल सकता। न्याय सेना का पूरा बल अब आपके साथ है और हमारे संगठन में ऐसे हज़ारों भाई बहन हैं, जो प्रधान जी के एक इशारे पर अपनी जान की बाज़ी लगा सकते हैं……………… ये आवाज़ राजू के मुंह से निकली थी जो बड़े ही आत्मविश्वास से भरपूर लग रहा था।

अब आज्ञा दीजिये प्रधान जी, सुशील कुमार ने जब कह कर चमन शर्मा को इशारा किया तो उसने भी हाथ जोड़कर प्रधान जी से आज्ञा ली और बाहर के केबिन में जाकर वहां बैठे एक लड़के को अपना मोबाइल नंबर नोट करवा दिया।

अब चिंता छोड़ दो चमन भाई, अब आपका गोदाम आपसे कोई नहीं छीन सकता। सीढियां उतरते हुये चमन शर्मा के कानों में सुशील कुमार के शब्द जैसे भगवान की आवाज़ की तरह पड़ रहे थे।

हिमांशु शंगारी