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इस घटना के लगभग चार महीने बाद राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय के भीतरी केबिन में बैठा कुछ पेपर्स के साथ कुछ करने में वयस्त था। प्रधान जी भी अपनी कुर्सी पर ही बैठे हुये थे।
इन चार महीनों में राजकुमार ने संगठन में एक विशेष स्थान बना लिया था अपना, और अपनी प्रतिभा से उसने प्रधान जी के अलावा संगठन के और भी बहुत से पदाधिकारियों को चकित कर दिया था। आजकल वो संगठन का आधु्निकीकरण करने में लगा हुआ था, जिसके प्रस्ताव को प्रधान जी ने सहर्ष ही अनुमति दे दी थी।
इस प्रक्रिया के चलते संगठन के सब पदाधिकारियों को पहचान पत्र जारी किये जा रहे थे और उनके पते तथा फोन नंबर्स का रिकार्ड बनाया जा रहा था। इससे किसी भी सदस्य से कभी भी संपर्क किया जा सकता था और न्याय सेना के सदस्यों की ठीक संख्या का हर समय पता भी चलाया जा सकता था। कंप्यूटर्स के क्षेत्र में अच्छा ज्ञान होने के कारण राजकुमार ये सारे रिकार्ड खुद अपने कंप्यूटर पर बना रहा था। अब तक लगभग पांच हज़ार सदस्यों और पदाधिकारियों को जारी किये जा चुके थे ये पहचान पत्र।
“ये पहचान पत्र वाला काम तो बहुत अच्छा हो गया, पुत्तर जी। कब से ये विचार मेरे दिमाग में बार बार आता था, पर इस काम की जटिलता और विशालता को देखते हुये इसे करने वाला कोई पदाधिकारी संगठन में नज़र नहीं आ रहा था मुझे। तुमने इतने कम समय में ही हज़ारों सदस्यों का रिकार्ड बना लिया है। सारा दिन तो मेरे साथ रहते हो, फिर कब करते हो ये सारा काम?”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर प्रशंसनीय दृष्टि से देखते हुये कहा।
“जी रात को अपने कंप्यूटर पर बैठ कर बनाता हूं ये सारे रिकार्ड और फिर उनका प्रिंट आऊट लाकर यहां कार्यालय की फाईल में लगा देता हूं ताकि आवश्यकता पड़ने पर संगठन का कोई भी पदाधिकारी किसी भी सदस्य से संपर्क कर सके”। राजकुमार ने उत्तर दिया और तुरंत ही वापिस अपना काम करने में जुट गया।
“अनिल खन्ना जी मिलना चाहते हैं, प्रधान जी?” राजू की इस आवाज़ ने प्रधान जी के साथ साथ राजकुमार का ध्यान भी आकर्षित किया। राजकुमार को पता था कि अनिल खन्ना एक कलाकार था और जालंधर दूरदर्शन के माध्यम से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में काम करता था। आज सुबह ही उसने प्रधान जी से मिलने का समय लिया था।
“उन्हें फौरन अंदर भेजो और चाय का प्रबंध करो, पुत्तर जी”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने राजकुमार की ओर इस प्रकार देखा जैसे उसे कहना चाहते हों कि अब ये काम छोड़ कर इस मुलाकात पर ध्यान दो। राजकुमार पहले ही राजू की इस बात को सुनकर पेपर्स एक ओर रखकर सतर्क मुद्रा में बैठ गया था।
“चरण स्पर्श, प्रधान जी”। अनिल खन्ना ने आते ही प्रधान जी के पैर छूये।
“ओ जीते रहो, मेरे अनिल जी। बड़ी खुशी होती है आपको टीवी पर देखकर। आईये बैठिये”। प्रधान जी ने खुश होते हुये कहा।
“सब आपका ही आशिर्वाद है, प्रधान जी”। कहते हुये अनिल खन्ना प्रधान जी के सामने लगी कुर्सी पर बैठ गया।
“और सुनाईये अनिल जी, सब कुशल मंगल तो है?”। प्रधान जी जानते थे कि एक वयस्त कलाकार होने के कारण अनिल खन्ना सामान्यतया बिना किसी विशेष कार्य के उनके कार्यालय नहीं आता था। इसलिये उन्होंने सीधे काम का सवाल ही कर दिया था।
“आज का अखबार देखा आपने, प्रधान जी?” अनिल खन्ना ने भेद भरे स्वर में पूछा।
“कहीं आप मशहूर गायक जस्करण सिंह जस्सी के उस बयान की बात तो नहीं कर रहे जिसमें उसने जालंधर दूरदर्शन में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त होने के आरोप लगाये हैं?” प्रधान जी ने अनिल खन्ना का आशय समझते हुये कहा। राजकुमार जानता था कि सुबह उठकर सभी महत्वपूर्ण अखबारों की खबरों को अच्छे से पढ़ना और उनमें से अपने काम की खबरें निकालना प्रधान जी की दिनचर्या की शुरुआत होती थी।
राजकुमार ने भी ये महत्वपूर्ण सबक सीख लिया था प्रधान जी से, और अब वो भी सुबह उठते ही सभी महत्वपूर्ण अखबारों की खबरें पढ़ता था जिससे शहर, प्रदेश और देश में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी रहे उसे। न्याय के लिये लड़ने वाले एक सामाजिक संगठन को चलाने के लिये बहुत आवश्यक भी था ये, कि आस पास के हालात की पूरी जानकारी रहे आपको।
“जी बिल्कुल ठीक पकड़ा आपने, प्रधान जी। मैं जस्सी के उस बयान की ही बात कर रहा हूं। आपने देखा कितने संगीन आरोप लगाये हैं उन्होनें जालंधर दूरदर्शन के अधिकारियों पर?” अनिल खन्ना की आवाज़ में उर्जा और राजकुमार के चेहरे पर रुचि, दोनों ही बढ़ गये थे।
“हां, बड़े ध्यान से पढ़ी है, मैने ये खबर। हैरान हूं कि जस्सी जैसे स्थापित गायक को भी इस भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा है?”। प्रधान जी ने हैरान होते हुये कहा। जसकरन जस्सी पंजाबी के एक मशहूर गायक थे। ‘दिल लै गयी कुड़ी पंजाब दी’ से चर्चा में आये जस्सी के कई गाने हिट हो चुके थे और अच्छा खासा नाम कमा लिया था उन्होने।
“जितना आप समझ चुके हैं, मामला उससे बहुत बड़ा है प्रधान जी। इसीलिये तो आया हूं आपके पास”। अनिल खन्ना के स्वर का भेद बढ़ता ही जा रहा था।
“खुल के कहिये अनिल जी, जो कहना है”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना को प्रोत्साहित करते हुये कहा।
“जी वो…………”। अनिल खन्ना ने प्रधान जी की आंखों में देखते हुये आखों के इशारे से ही राजकुमार की ओर संकेत किया। प्रधान जी समझ गये थे कि अनिल खन्ना कोई बहुत गोपनीय बात करना चाहता है और राजकुमार की उपस्थिति में वो ये बात नहीं करना चाहता।
“अरे, बातों बातों में मैं आपको राजकुमार से मिलवाना तो भूल ही गया, अनिल जी। इनसे मिलिये, ये हैं राजकुमार। हमारे संगठन में सबसे छोटी आयु के महासचिव। इनकी उम्र पर मत जाईयेगा अनिल जी, बहुत प्रतिभाशाली हैं हमारे राजकुमार। संगठन का हर बड़ा कार्य अब इनसे सलाह करने के बाद ही होता है। आप इन्हें डॉक्टर पुनीत जैसा ही समझ सकते हैं”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना का संकेत समझते हुये इशारे में ही जैसे सब कुछ समझा दिया था उसे।
“बहुत खुशी हुयी आपसे मिलकर, राजकुमार। प्रधान जी ने अगर आपकी इतनी तारीफ की है तो आप अवश्य ही इसके काबिल होंगे”। अनिल खन्ना ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।
“ये तो प्रधान जी का बड़प्पन है अनिल जी, जो इन्हें सबकी केवल खूबियां ही दिखतीं हैं, खामियां नहीं। मैने आपको कई बार टीवी पर देखा है, बहुत अच्छा अभिनय करते हैं आप”। राजकुमार ने प्रधान जी और अनिल खन्ना दोनों की ही तारीफ करते हुये कहा।
“धन्यवाद राजकुमार। तो मैं ये कह रहा था प्रधान जी, कि ये मामला बहुत बड़ा है। कुछ समय पहले ही जब जस्सी ने दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले नववर्ष कार्यकर्म में गाने की इच्छा जाहिर की तो अधिकारियों ने उनसे गाना गाने के लिये एक लाख रुपये की मांग कर दी”। अनिल खन्ना ने फिर उसी भेद भरे स्वर में दबी आवाज़ के साथ कहा, जैसे उसे डर हो कि कहीं बाहर के केबिन में बैठे लोग उसकी बात न सुन लें।
“जस्सी से एक लाख रुपये मांग लिये, ये क्या बात हुई अनिल जी? मैने तो सुना है कि अच्छे गायकों को दूरदर्शन पर गाना गाने के पैसे दिये जाते हैं, ये तो उल्टी ही बात सुनायी आपने”। प्रधान जी और राजकुमार दोनों के चेहरों पर ही हैरानी के भाव आ गये थे।
“इसीलिये तो कहा था प्रधान जी, कि मामला बहुत बड़ा है। दूरदर्शन का नववर्ष का कार्यक्रम लोग बहुत शौक से देखते हैं, इसलिये दूरदर्शन अधिकारी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने की इच्छा रखने वाले हर प्रकार के कलाकार से पैसा मांगते हैं। फिर चाहे वो गायक हो या एक्टर”। अनिल खन्ना की बातों में रहस्य का पुट बढ़ता ही जा रहा था।
“तो क्या आप ये कहना चाहते हैं कि आप भी पैसे देते हैं इन भ्रष्ट अधिकारियों को? अगर ऐसा है तो आपने आज तक इस बारे में कोई चर्चा क्यों नहीं की मेरे साथ, सालों की खाट खड़ी कर देता मैं?” प्रधान जी ने हैरानी और क्रोध के मिश्रित भावों से अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा।
“क्या करें प्रधान जी, जो सब करते हैं वो मुझे भी करना पड़ता है। आप तो जानते ही हैं कि जालंधर दूरदर्शन को देखने वालों की संख्या आज भी बहुत अधिक है, और कुछ सालों पहले तक तो सैटेलाईट चैनल इस देश में आये तक नहीं थे। मनमानी थी इनकी और इसीलिये सब कलाकारों से जबरन वसूली करते थे ये, जो आज भी जारी है”। अनिल खन्ना ने उदास स्वर में कहने के बाद अपनी बात को विराम दिया।
“बड़ी हैरानी की बात बतायी है आपने। नये कलाकारों को चांस देने के बदले में पैसे मांगने की बात तो कई बार सुनी है मैने, पर स्थापित कलाकारों से पैसा वसूली की बात पहली बार सुन रहा हूं आपके मुंह से अनिल जी”। प्रधान जी ने एक बार फिर आश्चर्य से कहा।
“वो इसलिये प्रधान जी, कि कलाकारों का भी एक संघ है जिसमें आपसी सहमति के साथ इस मामले में किसी भी कलाकार को कुछ बोलने से मना किया गया है। बहुत बड़ा दायरा है दूरदर्शन का, प्रधान जी। बहुत नुकसान कर सकता है हमारा”। अनिल खन्ना ने चिंता और भय के मिले जुले भावों के साथ कहा।
“तो फिर आज क्यों बोला है जस्सी, अगर इतना ही डर है सब कलाकारों को दूरदर्शन का?” प्रधान जी की बात में इस बार हैरानी के साथ हल्का व्यंग्य भी था।
“वो इसलिये प्रधान जी, एक तो जस्सी एक निडर इंसान हैं, दूसरा अब दूरदर्शन ने भ्रष्टाचार की हद कर दी है और तीसरा अब और चैनल्स भी आ गये हैं, विकल्प के रूप में। इसलिये अब कलाकारों का सालों से दबा हुआ रोष बाहर आने की कोशिश कर रहा है। जस्सी ने उसी रोष को शब्द दिये हैं, इस बयान के साथ। लेकिन ये मामला इतना ही नहीं है प्रधान जी, बल्कि इससे भी कहीं अधिक गंभीर है। और भी बहुत सी बदमाशियां हो रही हैं, दूरदर्शन के अंदर”। अनिल खन्ना ने फिर एक नयी पहेली खड़ी कर दी थी।
“और क्या है वो बदमाशियां, अनिल जी?”। प्रधान जी की रूचि अब इस सारे मामले में बढ़ती जा रही थी।
“दूरदर्शन के अंदर लगी कुछ महंगी मशीनों को खराब दिखाकर नयी मशीनें खरीदी जाती हैं समय समय पर, जबकि वास्तव में वही पुरानी मशीनें ही काम कर रहीं हैं और सारा पैसा मशीनें बेचने वाली कंपनियों के साथ सैटिंग करके नकली बिलों के भुगतान के माध्यम से खा जाते हैं, ये दूरदर्शन वाले। करोड़ों का हेर फेर करते हैं ये, प्रधान जी”। अनिल खन्ना ने एक और खुलासा किया।
“इतनी बड़ी धांधली, आश्चर्य है। कभी कोई शिकायत या जांच नहीं होती इसकी?” प्रधान जी की हैरानी और रूचि बढ़ती जा रही थी इस मामले में अब।
“शिकायत से कोई लाभ नहीं प्रधान जी, सीधे सूचना और प्रसारण मंत्रालय के बड़े अधिकारियों के साथ सैटिंग है इनकी। उन्हीं की शह पर तो होता है ये सारा भ्रष्टाचार और एक बड़ा हिस्सा उन्हें भी जाता है”। अनिल खन्ना ने एक और भेद खोलते हुये कहा।
“लेकिन देश के सूचना और प्रसारण मंत्री तरुण जेतली तो बहुत साफ छवि वाले और बहुत इंटैलिजैंट व्यक्ति हैं। वो क्यों नहीं करते इस मामले में कुछ?” प्रधान जी ने एक और प्रश्न उछाल दिया था अनिल खन्ना की ओर।
“मंत्री जी के पास सारे देश में ऐसे कितने ही संस्थान और अन्य बहुत से कार्य हैं, जिसके चलते वो हर संस्थान को खुद तो नहीं देख सकते। इसलिये हर बड़े संस्थान के उपर केंद्र से एक वरिष्ठ अधिकारी लगाया जाता है, देखरेख करने के लिये………”। अनिल खन्ना ने अपनी बात को अधूरा ही छोड़ते हुये प्रधान जी की ओर कुछ समझाने वाले भाव से देखा।
“और उस देखरेख करने वाले अधिकारी की ये भ्रष्ट लोग अच्छी तरह से देखरेख कर लेते हैं, ताकि वो इनके बारे में सब अच्छा बोलता और लिखता रहे”। प्रधान जी ने सबकुछ समझ जाने वाले भाव में कहा। उनके स्वर में इस बार तीखा व्यंग्य था। राजकुमार इस सारे वार्तालाप को बहुत दिलचस्पी से सुन रहा था।
“बिल्कुल यही बात है प्रधान जी, इसीलिये तो कोई आवाज़ नहीं उठाता इनके खिलाफ। पर अब इनकी मनमानी हद से बढ़ गयी है। इसीलिये तो आया हूं मैं आपके पास, प्रधान जी………”। अनिल खन्ना ने एक बार फिर अधूरी पहेली उछाल दी थी प्रधान जी की ओर।
“खुल कर कहिये जो कहना चाहते हैं, अनिल जी”। प्रधान जी का स्वर गूंज उठा कार्यालय में।
“पिछले कुछ समय से कलाकार संघ के एक हिस्से में इन अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है और साथ ही साथ बढ़ता जा रहा है, कलाकारों के इस हिस्से का आकार। आज की तिथि में लगभग आधे कलाकार दूरदर्शन के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहते हैं, और जस्सी के इस बयान ने इन सब कलाकारों के अंदर की आग पर जैसे तेल डालने का काम किया है। हंगामा मच गया है कलाकार संघ में। सुबह से अनेक कलाकारों के फोन आ चुके हैं मुझे, इसीलिये आपसे समय मांगा था मैने मिलने का”। अनिल खन्ना ने कहने के बाद अपनी बात को विराम दे दिया।
“तो फिर ये सारे कलाकार मिलकर लड़ते क्यों नहीं दूरदर्शन में व्याप्त इस भ्रष्टाचार के खिलाफ?” प्रधान जी ने अनिल खन्ना को प्रोत्साहित करते हुये कहा।
“करना तो सब वही चाहते हैं प्रधान जी, पर हम कलाकार हैं, क्रांतिकारी या बड़े नेता नहीं। हमें सुनियोजित तरीके से लड़ाई लड़ने का ढ़ंग नहीं आता। और फिर हमारे सीधे रूप से यूं सामने आ जाने से दूरदर्शन के इन अधिकारियों का कोई नुकसान हो न हो, हमारा बहुत नुकसान जरूर हो सकता है। इसीलिये तो अधिकतर कलाकार इस बात पर सहमत हैं कि कलाकारों के हक में ये लड़ाई कोई अच्छा संगठन लड़े और सारे कलाकार उसे पीछे से सहयोग दें”। अनिल खन्ना एक बार फिर अपनी बात को विराम देकर प्रधान जी की ओर देखने लगा था।
“और आपने उन्हें न्याय सेना का नाम सुझा दिया होगा। इसीलिये आप मेरे पास आये हैं ताकि न्याय सेना इस मामले को हाथ में ले ले, कलाकारों की ओर से”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की बची हुयी बात को पूरा करते हुये कहा। उनके चेहरे पर रोमांचक मुस्कुराहट आ गयी थी।
“बिल्कुल ठीक कहा आपने प्रधान जी, बस एक फर्क है। मैने आपका नाम नहीं सुझाया बल्कि बहुत से कलाकारों ने खुद मुझसे कहा है कि मैं आपसे निवेदन करूं, इस मामले में हमारी सहायता करने के लिये। वे सब जानते हैं कि मेरे आपके साथ अच्छे संबंध हैं”। अनिल खन्ना ने तत्परता के साथ कहा।
“पर न्याय सेना ही क्यों, और भी तो कई सामाजिक संगठन हैं इस शहर में?” प्रधान जी ने जैसे सब समझते हुये भी अनिल खन्ना से प्रश्न किया।
“इसका जवाब तो आप जानते ही हैं, प्रधान जी। बहुत बड़ा और प्रभावशाली संस्थान है दूरदर्शन। लाखों रुपये के लालच से लेकर बहुत बड़े दबाव, धमकियां और साजिशें झेलनी पड़ेंगीं इस लड़ाई का बीड़ा उठाने वाले संगठन को। इतने लालच और दबाव के आगे भी न तो बिकने वाला और न ही झुकने वाला केवल एक ही संगठन है इस शहर में, और वो है आपकी छत्रछाया में चलने वाला न्याय सेना का ये संगंठन”। अनिल खन्ना के स्वर और अंदाज़ में प्रधान जी के लिये प्रशंसा के जबरदस्त भाव थे।
“इतना विश्वास करते हैं कलाकार हमपर, मैं तो इनमें से अधिकतर के साथ कभी मिला भी नहीं?” प्रधान जी ने थोड़ा हैरान होते हुये कहा।
“ये तो मैने बहुत कम कहा है प्रधान जी, आपको अपने प्रभाव के बारे में अभी पूरी तरह से पता ही नहीं। आप इन कलाकारों को निजी रूप से जानते हों या न, किन्तु आपके किये हुये बड़े बड़े कारनामों से और आपकी एकदम बेदाग तथा निर्भय छवि से हर कोई भली भांति वाकिफ है। इसलिये सब कलाकारों को पूरा विश्वास है कि इतने बड़े काम को अंजाम तक ले जाने के लायक केवल आपका ही संगठन है”। अनिल खन्ना ने प्रधान जी की तारीफों के पुल बांधते हुये कहा।
राजकुमार प्रधान जी की कलाकारों जैसे उच्च वर्ग में भी इतनी स्वच्छ छवि को जानकर संगठन के साथ जुड़ने के अपने फैसले पर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।
“ये तो आपने बहुत बड़ी बात कह दी अनिल जी, अब तो हमें इस मामले में अपने कलाकार भाईयों के लिये संघर्ष करना ही होगा। आप निश्चिंत हो जाईये, हम आपकी हर संभव सहायता करेंगे और अपने कलाकार भाईयों को न्याय दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे”। प्रधान जी ने कहा और फिर अनिल खन्ना के कोई प्रतिक्रिया देने से पहले ही राजकुमार की ओर देखा।
“पुत्तर जी, आपने सारी बात सुन ली होगी। हमें अब इस काम को अंजाम देना है। अगर आप इस मामले में अपनी कोई राय देना चाहो, तो बोल सकते हो”। प्रधान जी ने राजकुमार के विचार जानने के लिये पूछा।
“मैं बस कुछ सवाल पूछना चाहता हूं अनिल जी से, अगर आपकी आज्ञा हो तो”। राजकुमार ने आदर सहित कहा।
“हा हा हा, तुम्हारी इस कुछ सवाल पूछने की आदत से मैं अब भली भांति वाकिफ हो चुका हूं, पुत्तर जी”। प्रधान जी ने हंसते हुये कहा और इससे पहले अनिल खन्ना प्रधान जी की इस हंसी का कारण समझ पाता, प्रधान जी आवाज़ ने उसका ध्यान खींच लिया।
“लीजिये अनिल जी, अब हमारे राजकुमार के कुछछ… सवालों का जवाब दीजिये। इनके सवाल पूरे होते होते आपको समझ आ जायेगा कि इतनी छोटी आयु में ही इन्हें न्याय सेना का महासचिव क्यों बनाया गया है। इस काम को आसान मत समझियेगा और बिल्कुल उसी तरह से तैयारी कर लीजिये जैसे परीक्षा के समय करते थे”। प्रधान जी ने हंसते हुए अनिल खन्ना से कहा। ‘कुछ’ शब्द को उन्होने जानबूझकर खींच कर और ज़ोर देकर बोला था, क्योंकि वो इन चार महीनों में कई बार देख चुके थे कि राजकुमार के इन ‘कुछ’ सवालों का जवाब देते समय अधिकतर लोग नर्वस हो जाते थे।
“अनिल जी, कुछ साधारण से प्रश्न हैं मेरे बस”। राजकुमार ने प्रधान जी की सहमति मिलने के बाद अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा। उसकी इस बात पर प्रधान जी एक बार फिर मुस्कुरा दिये जबकि अनिल खन्ना की समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था।
“जी, जरूर पूछिये”। हैरान से अनिल खन्ना के मुंह से बस इतना ही निकल पाया।
“कितने कलाकार हैं आपके पक्ष में और कितने विपक्ष में?” राजकुमार ने अपना पहला सवाल किया।
“लगभग आधे कलाकार हमारे पक्ष में हैं और विपक्ष में तो शायद कोई भी नहीं है। बाकी के आधे कलाकार इस पचड़े से दूर रहना चाहते हैं, पर संघर्ष करने वाले कलाकारों की खिलाफत भी नहीं करना चाहते वो। आखिर इस भ्रष्टाचार से मुक्त तो सभी होना चाहते हैं”। अनिल खन्ना ने उत्तर दिया।
“इनमें से लगभग कितने कलाकारों ने आपको न्याय सेना से ये काम अपने हाथ में लेने के लिये कहा है?” राजकुमार का अगला प्रश्न भी तैयार ही था।
“लगभग नौ से दस कलाकारों ने”। अनिल खन्ना ने कुछ सोचते हुये कहा।
“और आपको मिलाकर इन दस लोगों में से कितने लोग हमें दूरदर्शन में व्याप्त इस भ्रष्टाचार का शिकार होने की बात शपथपत्र पर लिखकर दे सकते हैं?” राजकुमार के इस अगले प्रश्न को सुनकर अनिल खन्ना एकदम से असहज हो गया था।
“मैं कुछ समझा नहीं?” कहते हुये अनिल खन्ना ने प्रधान जी की ओर देखा जो निरंतर मुस्कुरा रहे थे।
“जी बस एक सवाल और, इसके बाद समझाता हूं आपको। दूरदर्शन के अंदर मशीनों को झूठमूठ खरीदने की जिस धांधली के बारे में आपने हमें बताया है, उसका कोई ठोस सुबूत दे सकते हैं आप हमें?” राजकुमार के इस अगले प्रश्न ने अनिल खन्ना का बचा खुचा संतुलन भी बिगाड़ दिया और उसने एकदम असहज होकर प्रधान जी की ओर सहायता की दृष्टि से देखा। उसके चेहरे से साफ था कि उसे राजकुमार से इतने तीखे सवालों की बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी।
“चिंता की कोई बात नहीं है अनिल जी, ये तो हमारे राजकुमार का स्वभाव है, बाल की खाल निकालना। लेकिन इसका कोई भी सवाल बिना गहरे अर्थ के नहीं होता”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने राजकुमार की ओर ऐसे देखा जैसे उसे कह रहे हों कि अनिल खन्ना को इन सवालों का अर्थ समझाया जाये।
“अनिल जी, अभी अभी आपने ही कहा है कि दूरदर्शन बहुत प्रभावशाली संस्थान है और इसके खिलाफ लड़ने वाले संगठन को पैसा, दबाव और अन्य कई कठिन परीक्षाओं से निकलना पड़ेगा। जब ये बात हमारे जैसे बड़े संगठनों पर लागू होती है तो कलाकारों के बिकने की या झुक जाने की संभावना तो बहुत अधिक है। वे तो थोड़े से दबाव में आकर ही मुकर सकते हैं कि उन्होंने ऐसी कोई शिकायत नहीं की है न्याय सेना से। मेरी बात ठीक है या नहीं, अनिल जी?” राजकुमार ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा। प्रधान जी के चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी जैसे उन्हें पहले से ही पता था कि राजकुमार के इस सवाल का कारण क्या था।
“बिल्कुल हो सकता है ये, और ऐसा तो कई बार हो भी चुका है पहले। समय समय पर कुछ कलाकारों ने शिकायत की थी इस भ्रष्टाचार के खिलाफ, पर फिर किसी लालच या दबाव में आकर पीछे हट गये”। अनिल शर्मा जैसे राजकुमार की बात का अर्थ समझ गया था अब।
“अब जरा विचार कीजिये, न्याय सेना कलाकारों के हक में लड़ाई शुरू कर दे और बाद में कलाकार ही पीछे हट जायें तो कितनी जग हंसाई होगी हमारी?” राजकुमार के इस तर्क का कोई तोड़ नहीं था अनिल खन्ना के पास।
“इसी प्रकार बिना किसी ठोस सुबूत के हम दूरदर्शन पर महंगी मशीनों को झूठमूठ खरीदने का इल्ज़ाम लगा दें और बाद में पता चले कि ये बात भी महज़ एक अफवाह के अलावा कुछ नहीं तो? इसका सारा दायित्व सीधा हमारे संगठन पर आ जायेगा, कि बेकार में ही कितने अधिकारियों को परेशान किया बिना किसी ठोस सुबूत के। इसलिये पूछे थे आपसे ये दोनो सवाल”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये अपनी बात को विराम देते हुये प्रधान जी की ओर देखा।
“राजकुमार के कहने का अर्थ ये है अनिल जी कि आपको कुछ कलाकारों से हमें ये शिकायत लिखित रूप में लेकर देनी होगी कि उनसे काम के बदले में पैसे लिये गये हैं। इससे बाद में ये कलाकार चाह कर भी पीछे नहीं हट पायेंगे। इसी प्रकार आपको हमें मशीनों वाले मामले में भी कुछ ऐसे सुबूत देने होंगे जो हमें ये आरोप लगाने का कोई ठोस आधार दे पायें”। प्रधान जी ने एक पल के लिये अपनी वाणी को विराम दिया और फिर से शुरू हो गये।
“बहुत संवेदनशील मामला है ये अनिल जी, और आप ही के कहने के अनुसार बहुत बड़े अधिकारी शामिल हैं इसमे, जालंधर से लेकर दिल्ली तक। इसलिये हमें इस मामले में बहुत सतर्कता बरतनी पड़ेगी। अब बताईये, आपका क्या विचार है?”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा।
“आपकी बात बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, और मैने राजकुमार के महासचिव बनने के पीछे छिपी इनकी प्रतिभा भी देख ली। जहां तक मेरा सवाल है, मैं तो ये शपथपत्र अभी दे सकता हूं। बाकी कलाकारों से इस बारे में बात करने के लिये और मशीनों वाले मामले में कोई ठोस सुबूत ढ़ूंढ़ने के लिये आप मुझे कल तक का समय दीजिये। इन बातों का भी कोई न कोई हल निकल ही आयेगा”। अपनी बात पूरी करने के बाद अनिल खन्ना ने अपनी दृष्टि प्रधान जी चेहरे पर जमा दी।
“बिल्कुल ठीक है अनिल जी, आप जरूर लीजिये कल तक का समय। तब तक हम भी इस मामले से झुड़े कुछ पहलुओं पर गौर कर लेते हैं”। प्रधान जी के निर्णायक स्वर में इतना कहने के बाद अनिल खन्ना ने दूसरे दिन 11 बजे मिलने का समय निश्चित करते हुये उन दोनों से विदा ली।
“क्या लगता है पुत्तर जी, कहां तक जा सकता है ये मामला?” दो मिनट के बाद प्रधान जी राजकुमार से पूछ रहे थे।
“मेरे विचार से ये मामला बहुत बड़ा है प्रधान जी, और इसमें कामयाबी मिलने पर संगठन की साख बहुत अधिक बढ़ जायेगी। सीधा केंद्र के इतने बड़े मंत्रालय से जुड़ा है ये मामला”। राजकुमार ने अपना विचार पेश करते हुये कहा।
“और क्या लगता है तुम्हें, अनिल खन्ना कल आयेगा हमारी मांगी हुयी चीज़ों के साथ या फिर पीछे हट जायेगा”। प्रधान जी ने इस बात का उत्तर पता होते हुये भी राजकुमार को परखने के विचार से पूछा।
“जिस आत्मविश्वास के साथ वो उसी समय शपथपत्र देने की बात कर रहा था, उससे तो लगता है कि ज़रूर आयेगा, प्रधान जी”। राजकुमार से अपनी अपेक्षा के अनुसार उत्तर मिलने पर प्रधान जी मुस्कुरा दिये।
“बिल्कुल ठीक समझे तुम, पुत्तर जी। मैं अनिल खन्ना को सालों से जानता हूं, ये भागने वालों में से नहीं है। ये ज़रुर आयेगा। देखना बस ये है कि कितने और कलाकार तथा क्या सुबूत ला पाता है अपने साथ?” प्रधान जी ने इतना कहते हुये अपनी वाणी को विराम दिया।
“अगर आप की आज्ञा हो तो कल तक इस मामले से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के विषय में अपनी जानकारी बढ़ा लूं, प्रधान जी?” राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।
“जैसे मेरी आज्ञा न मिलने पर तू हट जायेगा बदमाश, मैं अच्छी तरह से जान चुका हूं तुझे। एक नंबर का कंजर है तू और हर समय तेरे दिमाग में कोई न कोई शैतानी चलती रहती है। अब तेरे दिमाग में ये जासूसी करने का कीड़ा घुस गया है तो तू हटेगा थोड़े ही। जुटा ले जो जानकारी जुटानी है तुझे अपने तरीके से”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।
“प्रधान जी का हुक्म सर आंखों पर”। राजकुमार ने भी शरारती स्वर में ही जवाब दिया तो दोनों ही हंस पड़े।
हिमांशु शंगारी