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उसी दिन दोपहर के लगभग दो बजे प्रधान जी अपने कार्यालय में बैठे डॉक्टर पुनीत के साथ कुछ विचार विमर्श कर रहे थे।
“कैसा लगा आपको वो लड़का, डॉक्टर साहिब?” प्रधान जी पुनीत को डॉक्टर साहिब कहकर ही बुलाते थे, हालांकि पुनीत उम्र में बहुत छोटा था उनसे।
“बिल्कुल वैसा ही प्रधान जी, जैसा इस समय न्याय सेना को चाहिये। शिक्षित, बातचीत करने में कुशल, निर्भय और मौके के हिसाब से व्यवहार करने वाला”। पुनीत ने राजकुमार की तारीफ करते हुये कहा।
“मेरे मुंह की बात छीन ली आपने, डॉक्टर साहिब। लड़का है ही तारीफ के काबिल। आपने देखा था, मेरे इतना क्रोध करने पर भी न तो डरा और न ही अपना संयम खोया उसने। सौम्य किंतु दृढ़ स्वर में हर बात का जवाब देता रहा। मुझे उसकी ये बात बहुत पसंद आयी”। प्रधान जी राजकुमार से बहुत प्रभावित लग रहे थे।
“बिल्कुल ठीक कहा आपने प्रधान जी, लड़के में कुछ तो खास है। इतना समय आपके साथ बिताने पर भी मैने बहुत कम ऐसे लोगों को देखा है, जो आपके क्रोध को बिना विचलित हुये झेल जायें”। पुनीत ने प्रधान जी की बात का समर्थन करते हुये कहा।
“तो फिर क्या राय है आपकी, कल उसके सामने न्याय सेना में शामिल होने का प्रस्ताव रखा जाये?” प्रधान जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से पुनीत की ओर देखते हुये पूछा।
“बिल्कुल रखा जाये प्रधान जी, न्याय सेना को इस समय अच्छे और शिक्षित लोगों की ही सबसे अधिक आवश्यकता है, जो विभिन्न केसों से जुड़े कागज़ात को भली भांति समझ सकें ताकि हम लोगों की ठीक प्रकार से सहायता कर सकें। और फिर मेरा तो इसमें निजी लाभ भी है, मुझे थोड़ा और समय मिल जायेगा अपनी प्रैक्टिस के लिये”। पुनीत ने मुस्कुराते हुये कहा।
न्याय सेना के पास उस समय उच्च शिक्षा प्राप्त लोग अधिक न होने के कारण डॉक्टर पुनीत को ही अधिकतर समय कागज़ात से जुड़े मामलों को देखना पड़ता था, जिसके कारण उनकी प्रैक्टिस पर विपरीत प्रभाव पड़ता था। फिर भी वे प्रधान जी के किसी भी समय बुलाने पर हाज़िर हो जाते थे।
“हा हा हा, ये बात भी खूब कही आपने, डॉक्टर साहिब। इसमें सबसे अधिक लाभ तो आपका ही होगा। तो फिर ठीक है, कल मैं राजकुमार से बात करूंगा, न्याय सेना में शामिल होने के लिये। वैसे अपके विचार में हमें क्या पद देना चाहिये उसे संगठन मे, अगर वो शामिल होने के लिये मान जाये तो?” प्रधान जी ने एक बार फिर पुनीत की राय जानने के इरादे से पूछा।
“उसकी अभी तक नज़र आ रही खूबियों को देखते हुये मेरे विचार से आपको उसे महासचिव का या कम से कम सचिव का पद देना चाहिये”। पुनीत ने अपना विचार पेश करते हुये कहा।
“सीधा महासचिव का पद, ज्यादा नहीं हो जायेगा ये डॉक्टर साहिब?” प्रधान जी ने एक और प्रश्न उछाल दिया था पुनीत की ओर।
“न्याय सेना का ये नियम आपने ही बनाया है प्रधान जी, कि संगठन में पद योग्यता देखकर दिये जायेंगे, नया या पुराना सदस्य देखकर नहीं। ये न्याय सेना के उत्तम नियमों में से एक है क्योंकि इस नियम के चलते हर प्रतिभावान व्यक्ति को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का पूरा अवसर और अधिकार प्राप्त हो जाता है। इससे न्याय सेना को ही लाभ होता है। इसी नियम के अंतर्गत राजकुमार महासचिव या सचिव बनने के योग्य है, कम से कम”। पुनीत ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।
“आपकी ये आदत मुझे बहुत पसंद है, डॉक्टर साहिब। किसी दूसरे काबिल व्यक्ति से इर्ष्या नहीं होती आपको। खुद महासचिव होते हुये भी आपने राजकुमार को सीधा महासचिव का पद देने की सिफारिश कर दी, बिना किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा की भावना के। न्याय सेना आपके जैसे पदाधिकारियों के कारण ही उन्नति करती जा रही है”। प्रधान जी ने खुले दिल से पुनीत की प्रशंसा करते हुये कहा।
“मेरे विचार में संगठन के प्रत्येक पदाधिकारी को अपना निजी लाभ न देखते हुये वो निर्णय लेने चाहियें, जिनसे संगठन को लाभ होता हो। आपने सदा ही उदाहरण बनकर ऐसे निर्णय लिये हैं और आपकी प्रेरणा से ही मैं और संगठन के अन्य पदाधिकारी ऐसे निर्णय लेने में सक्षम हो पाते हैं”। पुनीत के स्वर और आंखों में प्रधान जी के लिये अपार आदर और श्रद्धा झलक रही थी।
“क्या बात कही है डॉक्टर साहिब। इसीलिये तो कहता हूं कि आप बहुत अच्छे इंसान हैं, आप महान हैं, बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि आप पुरुष ही नहीं हैं”। प्रधान जी का जाना पहचाना विनोदी स्वभाव जाग चुका था।
“क्या मतलब प्रधान जी?” पुनीत ने जैसे सबकुछ समझते हुये भी मुस्कुरा कर कहा।
“महापुरुष हैं आप, महापुरुष। प्रधान जी के इस फिल्मी डायलॉग के पूरा होते ही दोनों ठहाका लगा कर हंस दिये।
“तो फिर तय रहा, डॉक्टर साहिब। कल राजकुमार से संगठन में शामिल होने की बात की जायेगी। रही बात पद की, तो कल वो अपने दोस्त के मामले को कैसे निपटाता है, इसी को देखकर उसका पद निर्धारित करेंगे। आईये अब खाना खाने चलते हैं, बहुत भूख लगी है”। कहते कहते प्रधान जी उठकर खड़े हो गये तो पुनीत ने भी उनका अनुसरण किया।
हिमांशु शंगारी