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शाम के करीब साढ़े पांच बजे प्रधान जी न्याय सेना के कार्यालय में ही बैठे थे, जब उनके पास ही बैठे राजकुमार के मोबाइल की घंटी बजने लगी। स्क्रीन पर फ्लैश होता यूसुफ आज़ाद का नाम दिखाते हुये राजकुमार प्रधान जी के पास आ गया और फोन रिसीव किया।
“एक और बड़ा घटनाक्रम शुरू हो गया है अभी अभी। सोमेश पुरी ने कल सुबह प्रैस कांफ्रैंस रखी है इस मामले में, दूरदर्शन के पक्ष में। पता चला है कि छोटे से लेकर मध्यम स्तर के कुछ कलाकार भी साथ शामिल होंगें इस प्रैस कांफ्रैंस में, और दूरदर्शन अधिकारियों के पक्ष में बोलेंगे। अभी दो घंटे पहले ही आपने बंस से हुयी प्रधान जी की बात का परिणाम बताया था। इतने दिनों की चुप्पी के बाद एक ही दिन में इस मामले में दो बड़े घटनाक्रम होने का अर्थ समझते हैं आप?” बिना किसी भूमिका के कहा आज़ाद ने और अपनी आदत के अनुसार राजकुमार को एक नयी पहेली सुलझाने के लिये बोल दिया।
“मेरे ख्याल से ये लोग इस प्रैस कांफ्रैंस की योजना कई दिनों से बना कर बैठे थे, और केवल बंस के साथ प्रधान जी की बात का परिणाम जानने के लिये ही रुके हुये थे। प्रधान जी के बंस को समझौते के लिये मना करते ही उन्होंने अपनी अगली चाल चल दी है”। राजकुमार ने अनुमान लगाते हुये कहा।
“आपका ख्याल एक बार फिर ठीक है, इसीलिये ये लोग इतने दिन तक चुप करके बैठे थे। शायद बंस और प्रधान जी के बीच होने वाली बातचीत से समझौते का रास्ता निकल आने की बहुत उम्मीद थी इन्हें। इस उम्मीद के टूटते ही लड़ाई का नगाड़ा बजा दिया है इन्होंने। ये खेल अब और भी मज़ेदार होने वाला है, तैयार हो जाईये आप लोग। कई दिनों की चुप्पी के कारण इस मामले में बोरियत का अहसास होने लगा था, अब मनोरंजन का समय आ गया है”। आज़ाद की आवाज़ ऐसे चहक रही थी जैसे ये उनका सबसे फेवरिट खेल हो।
“आप चिंता न करें भाई साहिब, हमारी ओर से पूरी तैयारी है”। राजकुमार ने हल्की हंसी के साथ कहा।
“चलिये फिर बाद में बात करते हैं”। अपनी आदत के अनुसार ही फोन डिस्कनैक्ट कर दिया था आज़ाद ने, बिना किसी विशेष औपचारिकता के।
“सुन लिया आपने सब, प्रधान जी? सोमेश पुरी को चुना है बलि का बकरा बनने के लिये”। राजकुमार ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा।
“उसका तो काम ही ये है, पैसे देकर किसी के भी हक में या खिलाफ कुछ भी बुलवा लो। कागज़ों में दिखाने के लिये एक सामाजिक संगठन बनाया हुआ है और खुद उसका मुखिया बना हुआ है। बस यही काम करता है उसका संगठन। पैसे लेकर या तो किसी के बारे में अच्छा बोल देता है या फिर बुरा। इस केस पर काम कर रहे कई अखबारों के पत्रकार बहुत चिढ़ते हैं इसके नाम से। अर्जुन कुमार और शिव वर्मा तो विशेष रूप से बहुत नापसंद करते हैं इसे। ब्लैकमेलर का नाम दिया है उन्होंने इसे”। प्रधान जी भी मुस्कुरा रहे थे।
“वैसे ये हमारे लिये बहुत अच्छा है प्रधान जी, कि ऐसी गंदी छवि वाला व्यक्ति दूरदर्शन के पक्ष में या हमारे खिलाफ बोलने जा रहा है। वो जितना मीडिया को समझाने की कोशिश करेगा, पत्रकार उतने ही भड़क जायेंगे। जो पत्रकार इस केस में खुलकर नहीं भी लिख रहे, इसके काले कारनामों से चिढ़ने के कारण वो भी लिखना शुरू कर देंगे”। राजकुमार ने मज़ा लेने वाले अंदाज़ में कहा।
“चलो देर से ही सही, इन लोगों ने कोई एक्शन तो लिया, मुझे तो बोरियत होने लग गयी थी दूरदर्शन अधिकारियों के चुपचाप बैठ जाने से। अब कुछ तेजी आयेगी माहौल में”। प्रधान जी के चेहरे पर रोमांच के भाव दिखाई दे रहे थे।
“जितनी जल्दी इन्होंने ये कदम उठा दिया है आपके बंस भाई को मना करने के बाद, उससे लगता है कि इनके तरकश में तीर बहुत हैं और इनके पास समय कम है। शायद इसीलिये समय गंवाना नहीं चाहते। मेरे ख्याल से इसके बाद भी बहुत कुछ करेंगे अभी ये लोग”। राजकुमार ने एक संभावना व्यक्त की।
“चला लेने दो इन लोगों को सारे तीर, हम अपने बड़े अस्त्र बचा कर रखेंगे। जब इनके सब तीर खत्म हो जायें, तो निकाल कर चला देंगे”। प्रधान जी ने भेद भरे स्वर में कहा और दोनो ही हंस दिये।
हिमांशु शंगारी