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दूसरे दिन सुबह लगभग 10:30 बजे का समय। जालंधर दूरदर्शन का निदेशक सुरेश अडवानी अपने कार्यालय में बैठा बेचैनी के साथ अपने सामने टेबल पर पड़ी अखबारों को देख रहा था। सुरेश अडवानी को दूरदर्शन के निदेशक का पद संभाले दो साल से भी अधिक समय हो चुका था। अपने काम करने के तरीके या अपने व्यक्तिव के कारण चर्चा में रहने की बजाये दिल्ली मंत्रालय में अपने उच्च स्तरीय संबंधों के लिये कहीं अधिक चर्चा में रहता था सुरेश अडवानी।
अधिकारिक क्षेत्रों में चलने वाली बातों के अनुसार सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय में सबसे उपर बैठे लोगों के साथ सीधा लेन देन चलता था उसका। इसीलिये शायद दूरदर्शन के अंदर से कोई ईमानदार अधिकारी दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार की शिकायत करने की हिम्मत नहीं करता था और बाहर से जिसने भी शिकायत की थी, या तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुयी, या फिर जांच के दौरान उस शिकायत को आधारहीन दिखा दिया गया था।
दूरदर्शन के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वास्ता रखने वाले सभी प्रभावशाली लोगों के साथ अच्छे सबंध बनाकर रखना अडवानी की नीति में शामिल था जिसके कारण जालंधर से छपने वाले कई अखबारों के बहुत से पदाधिकारियों के साथ भी अच्छे संबंध थे उसके।
“आज की इस आपातकालीन मीटिंग का मकसद तो समझ ही गये होंगें आप लोग”। सुरेश अडवानी ने अपने सामने की कुर्सियों पर बैठे तीन लोगों से कहा, जो निश्चित रूप से ही जालंधर दूरदर्शन में उच्च पदों पर आसीन अधिकारी थे।
“जी बिल्कुल सर, न्याय सेना के द्वारा कल की गयी प्रैस कांफ्रैंस में हम लोगों पर लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोप और उनकी जांच की मांग है, निश्चित रूप से इस मीटिंग का कारण”। दूरदर्शन के अतिरिक्त निदेशक सुरिंदर सिंह ने तत्परता के साथ जवाब दिया था अडवानी के इस सवाल का, जिसे शायद किसी जवाब की जरूरत थी ही नहीं।
“ये मामला तूल पकड़ सकता है और इसीलिये इसे समय रहते ही संभाल लेना बहुत आवश्यक है”। बड़े ही सीमित शब्दों में अपनी बात कहने के बाद सुरेश अडवानी ने एक बार फिर सामने बैठे अधिकारियों की ओर देखा।
“लेकिन सर, ऐसा प्रयास तो पहले भी कई लोग कर चुके हैं, और हर बार हमने उनकी कोशिशों को नाकाम कर दिया है, बिना किसी भी प्रकार की हानि उठाये। तो इस बार ये आपातकालीन मीटिंग बुलाने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी?” उत्सुकुता भरे ये शब्द निकले थे चीफ प्रोग्राम प्रोडयूसर विजय बहल के मुख से। बाकी के अधिकारियों के चेहरे भी विजय बहल के प्रश्न को ही पूछ रहे लगते थे।
“क्योंकि इस बार का ये मामला निश्चित रूप से ही कहीं अधिक गंभीर है, पिछले सारे मामलों से। आप लोग तो जानते ही हैं कि स्थानीय समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत पदाधिकारियों के साथ मधुर संबंध है हमारे, ऐसी किसी भी स्थिति को संभालने के लिये। इसी कारण दूरदर्शन के खिलाफ विभिन्न लोगों और संगठनों द्वारा समय समय पर लगाये जाने वाले आरोपों को या तो छापा ही नहीं गया, या फिर इतनी कांट छांट के बाद छापा गया कि उन आरोपों में कोई विशेष औचित्य न दिखाई दे”। अपनी बात को विश्राम देते हुये अडवानी ने विजय बहल की ओर देखा।
“जबकि इस बार न्याय सेना द्वारा लगाये गये आरोपों को न केवल बिना किसी कांट छांट के, बल्कि उल्टा बढ़ा चढ़ा कर छापा गया है, और वो भी अखबारों के बहुत महत्वपूर्ण पृष्ठों पर, जिससे अधिक से अधिक लोग इस न्यूज़ को पढ़ पायें”। अडवानी की अधूरी बात पूरी की थी मनजिंद्र जौहल ने जो दूरदर्शन में उप निदेशक के पद पर कार्यरत था।
“बिल्कुल ठीक समझा आपने जौहल साहिब, और वास्तव में बात इससे भी कहीं अधिक गंभीर है। न्याय सेना की इस प्रैस कांफ्रैंस की और इसमें लगाये गये आरोपों की सूचना प्रैस कांफ्रैंस के तुरंत बाद ही दे दी थी मेरे सूत्रों नें। लगभग सभी अखबारों में कार्यरत हमारे मित्रों से मेरी बात हो गयी थी और सबने आश्वासन दिया था इस खबर को दबाने और कांटने छांटने का, ऐसे अन्य अवसरों की तरह ही”। अडवानी ने जौहल की बात को ही आगे बढ़ाते हुये कहा।
“किन्तु आशा के विपरीत, सब अखबारों नें ही इस खबर को बहुत बढ़ा चढ़ाकर छापा है। दो तीन अखबारों में मैने सुबह बात की थी, इसका कारण जानने के लिये। हर जगह से एक ही जवाब आया कि अखबार में स्थानीय स्तर पर सबसे उच्च पद पर आसीन अधिकारी के सीधे दखल के कारण इस खबर के साथ कोई भी छेड़ छाड़ नहीं हो पायी। कहीं पर संपादक, कहीं पर ब्यूरो चीफ और कहीं पर मुख्य संपादक ने सीधे दखल दिया है इस मामले में”। एक पल से भी कम के विराम के बाद अपनी बात को दोबारा शुरु किया अडवानी ने।
“इससे दो बातें पता लगतीं हैं। नंबर एक, न्याय सेना के पदाधिकारियों ने ये प्रैस कांफ्रैस करने से पहले ही विभिन्न अखबारों में उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारियों को विश्वास में ले लिया था। इससे ये पता चलता है कि इस मामले में न्याय सेना किसी प्रकार की जल्दबाज़ी से काम न लेकर पूरी योज़ना बना कर चल रही है। जस्सी का बयान आने के दो दिन बाद हुयी है ये प्रैस कांफ्रैस, जिसका अर्थ ये निकलता है कि इन दो दिनों में इस मामले में तैयारी की है इन लोगों ने, और उसके बाद ही हमला किया है हमारे उपर”। अडवानी के इस खुलासे ने सबको चिंता में डाल दिया था।
“और दूसरी बात क्या है, सर?” विजय बहल के मुख से निकला ये प्रश्न जैसे हर कोई ही पूछना चाहता था।
“दूसरी बात है इस संगठन के उच्च स्तरीय संबंध। इस शहर में ऐसे कितने लोग या संगठन हैं जो इन समाचार पत्रों में उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारियों से इतने कम समय में न केवल मु्लाकात कर सकें, बल्कि उन्हें अपने पक्ष में चलने के लिये राज़ी भी कर सकें? मेरे विचार से ये सारी मुलाकातें इन लोगों ने एक ही दिन में की हैं, जिसका अर्थ है कि इन लोगों को किसी भी समय मिलने का समय दे देते हैं इस शहर के अखबारों में उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारी”। सुरेश अडवानी ने एक बार फिर विराम दिया था अपनी बात को।
“आपकी बात बिल्कुल ठीक है सर, अनेक अखबारों के मालिकों और उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारियों के साथ व्यक्तिगत और पारिवारिक संबध हैं वरुण शर्मा के”। अडवानी की बात की पुष्टि की जौहल ने, जो सभी अधिकारियों की तुलना में कहीं अधिक समय व्यतीत कर चुका था जालंधर दूरदर्शन में, जिसके चलते शहर की कहीं अधिक जानकारी रखता था वो।
“इससे फिर दो बातें सामने आती हैं। नंबर एक, इस मामले में मीडिया भविष्य में भी हमारा कोई लिहाज़ नही करने वाला है। नंबर दो, इन लोगों के विभिन्न आधाकारिक क्षेत्रों में और भी पदाधिकारियों के साथ घनिष्ठ संबंध हो सकते हैं। इन बातों का सार ये निकला कि इस बार दुश्मन न केवल ताकतवर है, बल्कि योजना बना कर चलने वाला भी है। यही है इस आपातकालीन मीटिंग को बुलाने का कारण”। कहते हुये अडवानी के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रहीं थीं और यही हाल बाकी सब लोगों का भी था।
“किन्तु सर, कोई सुबूत तो दिया नहीं इन्होंने अपने आरोपों के पक्ष में। केवल बयान दिया है कि कलाकारों से पैसा मांगा जाता है और मशीनों की खरीद के बिलों में घपला किया जाता है। ऐसा भी तो हो सकता है कि इन लोगों के पास कोई सुबूत हो ही नहीं और जस्सी के बयान के बाद केवल प्रचार पाने के इरादे से की गयी हो ये प्रैस कांफ्रैंस?” विजय बहल ने शंका जताते हुये कहा।
“अगर ऐसा होता तो उसी दिन कर दी गयी होती ये प्रैस कांफ्रैंस, दो दिन बाद नहीं बहल साहिब। और फिर सुबह के समय की गयी है ये प्रैस कांफ्रैंस, इससे पहले की शाम ही सब पत्रकारों को इसकी जानकारी देकर। इसका अर्थ इन लोगों ने पूरी तैयारी की है पहले और तैयारी हो जाने के बाद भी एक रात प्रतीक्षा की प्रैस कांफ्रैंस के लिये। मतलब कि ये लोग सुनियोजित तरीके से काम कर रहे हैं, और ऐसे लोग बिना किसी ठोस आधार के इतने बड़े कदम नहीं उठाते”। विजय बहल की शंका का निवारण करते हुये कहा अडवानी ने।
“तो क्या इनके पास हमारे खिलाफ कोई ठोस सुबूत है, सर?” विजय बहल के इतना कहते ही सब लोगों के चेहरे पर पहली बार खौफ की झलक दिखायी दी थी।
“आवश्यक तो नहीं है ये, लेकिन इसकी गहरी संभावना जरूर है। हम सब जानते हैं कि मशीनों के बिलों में उनके वास्तविक मूल्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती, और मामला कुछ और ही होता है। फिर भी असल मामले को सामने न लाकर वो आरोप लगाया गया है जो साबित ही नहीं हो सकता। इसका मतलब ये लोग हमें खुशफहमीं में रखना चाहते हैं कि इनके पास हमारे खिलाफ कुछ विशेष नहीं है, जिससे हम लापरवाह हो जायें और इन्हें अपना काम करने में आसानी हो जाये”। अडवानी के चेहरे पर मुस्कान और बाकी सब लोगों के चेहरे पर हैरत थी।
“फिर तो वाकई में ये मामला सीरियस है, सर। क्या करना चाहिये फिर हम लोगों को इस मामले में?” जौहल के स्वर ने तोड़ा था कमरे में चंद पल के लिये छा गये सन्नाटे को।
“एक साथ कई मोर्चे खोलने होंगे हमें, इस समस्या से निपटने के लिये। अब सुनिये इस समस्या से निपटने की योजना। मैं मंत्रालय में बात करके अपने शुभचिंतकों को इस मामले से आगाह कर देता हूं जिससे वहां तक कोई बात जाने पर उसे समय रहते ही दबाया जा सके। सुरिंदर जी, आप पता लगाने की कोशिश कीजिये कि इन लोगों के पास हमारे उपर लगाये गये आरोपों के पक्ष में क्या सुबूत हैं? जौहल साहिब, आप अपने उस कांटैक्ट से संबंध स्थापित कीजिये जिसे हमने ऐसे ही मौकों के लिये रखा हुआ है”। बात पूरी करते करते मुस्कुरा दिया था अडवानी, जौहल की ओर देखते हुये।
“कहीं आप योगेश दत्त की बात तो नहीं कर रहे सर?” कुछ समझ जाने वाले अंदाज़ में कहा था जौहल ने।
“आप बिल्कुल ठीक समझे हैं जौहल साहिब, मैनें योगेश दत्त की बात ही की है”। अडवानी ने सहमति में सिर हिलाते हुये कहा।
“लेकिन सर, क्या उसे इस मामले में इस्तेमाल करना उचित होगा। जहां तक मैं वरुण शर्मा को जानता हूं, हमारा ये हथियार नाकाम होने की संभावना बहुत अधिक है। ऐसी चीज़ों से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता उसे”। जौहल ने एक संभावना व्यक्त करते हुये कहा, शंकालु स्वर में।
“इस बात का अंदाज़ा मुझे भी है, किन्तु प्रयास करने में क्या हर्ज है। इसलिये आप उसे इस काम पर लगा दीजिये और जो भी परिणाम निकले, मुझे सूचित कीजियेगा। बहल साहिब, आप कुछ ऐसे कलाकारों को तैयार कर लीजिये जिनसे हमारे संबध बहुत अच्छे हैं और जिन्हें समय आने पर इस मामले में किसी भी प्रकार इस्तेमाल किया जा सके”। जौहल को समझाने के बाद विजय बहल की ओर देखते हुये कहा अडवानी ने।
“मैं आपका इशारा समझ गया सर, मैं फौरन लग जाता हूं इस काम पर”। विजय बहल ने सब कुछ समझ जाने वाले अंदाज़ में कहा।
“तो फिर सब लोग लग जाईये, अपने अपने काम पर। सबकी ओर से काम की रिपोर्ट आने पर एक बार फिर बैठेंगे, आगे की रणनीति बनाने के लिये”। बात को समाप्त करते हुये कहा अडवानी ने, और तेजी से किसी सोच में पड़ गया था। एक मिनट के अंदर ही सभी अधिकारी उसे अभिवादन करके कमरे से बाहर जा चुके थे।
हिमांशु शंगारी