संकटमोचक 02 अध्याय 07

Sankat Mochak 02
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दूसरे दिन सुबह के लगभग 11 बजकर 15 मिनट पर राजकुमार और राजीव प्रधान जी के कार्यालय में बैठे थे। टेबल पर चाय लग चुकी थी और प्रधान जी तथा पुनीत के अलावा राजू नाम का वह पदाधिकारी और उसके साथ रमेश गुलाटी भी कार्यालय में ही थे। रमेश गुलाटी का मुंह राजकुमार और राजीव को देखकर ऐसे कड़वा हो गया था, जैसे नीम का पानी पी लिया हो।

“हां तो शुरू करें फिर कार्यवाही। गुलाटी साहिब, इनका कहना है कि आपके द्वारा इनके खिलाफ दी गयी पुलिस शिकायत बिल्कुल झूठी है और वास्तव में ये पीड़ित हैं आपसे। आप क्या कहना चाहते हैं इस मामले में?” प्रधान जी ने राजकुमार और राजीव की ओर इशारा करते हुये रमेश गुलाटी से कहा।

“बिल्कुल झूठ बोलते हैं ये प्रधान जी, मेरे पास सारे सुबूत हैं मेरे सच्चा होने के, और वो भी कागज़ात के रूप में, जिन्हें सबसे बड़े सुबूत माना जाता है”। गुलाटी ने अपना पक्ष दृढ़ता से रखा।

“तो ठीक है फिर, हम अब दूसरे पक्ष को अपनी बात रखने का मौका देंगे। किन्तु इस बात का ध्यान रहे गुलाटी साहिब, अगर आपके इस सच्चा होने के बयान के बाद इनका पक्ष सही निकल आया, तो न केवल हम इनका साथ देंगे इस मामले में, बल्कि आपको न्याय सेना को गुमराह करने का दंड़ भी भुगतना पड़ेगा”। प्रधान जी ने बड़े ही संतुलित मगर दृढ़ स्वर में कहा तो एक पल के लिये रमेश गुलाटी के चेहरे पर ऐसे भाव आ गये, जैसे उसकी चोरी पकड़ी जाने वाली हो।

“हां तो पुत्तर जी, आप अपना पक्ष रख सकते हैं अब”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। उनके राजकुमार को पुत्तर जी कहने से जहां गुलाटी की परेशानी बढ़ गयी थी, वहीं संगठन के सचिव हरजीत राजू को हैरानी हो रही थी। राजू सोच में पड़ गया था कि ये कौन लड़का है जिसे इतने साल प्रधान जी के साथ रहने पर भी उसने आज तक नहीं देखा और जिससे प्रधान जी इतने प्यार से पेश आ रहे हैं?

“धन्यवाद प्रधान जी, हमें ये मौका देने के लिये। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं गुलाटी साहिब से कुछ सवाल पूछना चाहूंगा”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये विनम्र स्वर में कहा।

“अवश्य पुत्तर जी। गुलाटी साहिब, ये लड़का जो कुछ भी पूछता है उसका ठीक ठीक उत्तर दीजिये। अगर बाद में आप कुछ कहना चाहें तो पूरा मौका दिया जायेगा आपको”। प्रधान जी के स्वर में बिल्कुल वही निष्पक्षता और दृढ़ता थी जो इंसाफ करते समय किसी अच्छे राजा या न्यायाधीश के स्वर में होती है। राजकुमार प्रधान जी की इस विशेषता से प्रभावित हुये बिना न रह सका।

“जी ठीक है प्रधान जी”। गुलाटी के स्वर का कंपन बता रहा था कि वो खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहा था।

“शुरु हो जाओ पुत्तर जी, और पूछो जो भी पूछना है गुलाटी साहिब से”। प्रधान जी के इतना कहते ही राजकुमार ने राजीव की ओर देखा जैसे कुछ पूछ रहा हो। राजीव के सिर हिलाने के बाद उसने अपना चेहरा गुलाटी की ओर घुमा लिया। शायद राजकुमार ने राजीव से मौन सहमति मांगी थी कि आज चाहे कुछ भी हो जाये, वो अपना संयम खोकर बीच में नहीं बोलेगा, और राजकुमार को बात करने देगा।

“जी गुलाटी साहिब, कुछ साधारण से प्रश्न हैं मेरे। अपने राजीव को कितना पैसा दिया था?” राजकुमार ने सवालों का सिलसिला शुरु करते हुये कहा। प्रधान जी और पुनीत का पूरा ध्यान इस वार्तालाप पर केंद्रित हो चुका था, आखिर दो बड़े फैसले जो लेने थे उन्हें इस वार्तालाप के बाद। इस केस से जुड़े सच का फैसला और राजकुमार को न्याय सेना में कौन सा पद दिया जाये, इस बात का फैसला।

“पांच लाख रुपये”। गुलाटी ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

“कब दिये थे आपने ये रुपये राजीव को और क्यों दिये थे?” राजकुमार का अगला प्रश्न भी तुरंत ही तैयार था।

“तीन महीने पहले दिये थे। इसने कहा था कि इसके संपर्क में इंग्लैंड का वीज़ा लगवाने वाले लोग हैं जो एक महीने में काम करवा देंगे। मैने अपने भतीजे को भेजने के लिये इसे ये पैसा दिया था”। गुलाटी ने एक बार फिर पूरा पूरा उत्तर दिया। उसके चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं था, जिससे उसकी मनोस्थिति का पता चल सके।

“इसके बदले में आपने अपने पैसे की सुरक्षा के लिये कुछ मांगा था राजीव से?” राजकुमार जैसे अपने सारे प्रश्न रट कर ही आया था, जो एक पल भी गंवाये बिना एक के बाद एक प्रश्न पूछे जा रहा था।

“हां, मैने इससे पांच लाख रुपये का एक चैक लिया था और एक कागज़ पर ये लिखवाकर इसके हस्ताक्षर करवा लिये थे कि इसने ये पैसा मेरे भतीजे को विदेश भेजने के लिये लिया है और दो महीने के अंदर या तो ये मेरे भतीजे को विदेश भेज देगा, या फिर मेरे पैसे वापिस कर देगा”। गुलाटी का जवाब भी तैयार ही था।

“आप राजीव को कैसे और कब से जानते हैं, और कहां दिया था आपने ये पैसा?” राजकुमार ने एक और प्रश्न बिना किसी देरी के गुलाटी की ओर दाग दिया।

“मेरे एक जानकार ने लगभग चार महीने पहले मिलवाया था मुझे इससे और कहा था कि ये लोगों को विदेश भेजने का काम करता है। मैने ये पैसा उस जानकार के सामने ही इसे अपने कार्यालय में ही दिया था”। गुलाटी ने एक बार फिर से पूरा पूरा उत्तर देते हुये कहा।

“और तीन महीने निकल जाने के बाद भी जब न तो राजीव ने आपके भतीजे को विदेश भेजा, न ही आपका पैसा वापिस किया और उपर से आपके पैसा वापिस मांगने पर इसने आपके खिलाफ पुलिस में इसे गुंडों के जरिये प्रताड़ित करने की शिकायत दे दी, तो आप प्रधान जी के पास आ गये। क्या ये ठीक है?” राजकुमार बिल्कुल भावहीन चेहरे के साथ प्रश्न पूछता जा रहा था। प्रधान जी इस सारे मामले का मज़ा ले रहे थे और पुनीत भी दिलचस्पी से सारे वार्तालाप को सुन रहा था।

“बिल्कुल ठीक है”। गुलाटी के चेहरे पर पूरा आत्मविश्वास दिखायी दे रहा था। अभी तक के इस वार्तालाप में दोनों पक्षों के हाव भाव से कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि कौन सा पक्ष सच्चा है। हां प्रधान जी ने इतना अवश्य नोट किया था कि राजकुमार ये सारे प्रश्न पहले से ही तैयार करके आया था और शायद उसे पता था कि गुलाटी क्या उत्तर देगा, उसके प्रश्नों के। इसीलिये वो एक बार भी गुलाटी के किसी जवाब पर विचलित नहीं हुआ था।

“क्या आपके पास इस समय वो चैक है जो राजीव ने आपको अपने हस्ताक्षर करके दिया था?” राजकुमार का वही संतुलित स्वर एक बार फिर कमरे में गूंज उठा।

“हां मेरे पास ही है, वो चैक भी और वो कागज़ भी”। गुलाटी भी हर सवाल का जवाब तुरंत ही देता जा रहा था।

“बस अब एक आखिरी सवाल, क्या आप चार महीने से पहले राजीव से कभी मिले हैं?” राजकुमार ने फिर उसी सधे हुये स्वर में पूछा।

“न…हीं”। गुलाटी ने बिल्कुल छोटा सा उत्तर दिया राजकुमार के इस आखिरी सवाल का। प्रधान जी और पुनीत ने बखूबी नोट कर लिया था कि राजकुमार के इस प्रश्न का जवाब देते समय गुलाटी का स्वर कांपा था और उसके चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलकी थी, जिसे उसने जल्दी ही छिपा लिया था। वहीं राजकुमार के चेहरे पर गुलाटी का उत्तर सुनते ही ऐसी मुस्कान आ गयी थी जैसे ये मामला उसने हल कर लिया हो।

“धन्यवाद गुलाटी साहिब, अब मुझे आपसे कुछ नहीं पूछना। बस केवल इतनी विनती करनी है कि आप वो चैक प्रधान जी के हवाले कर दें”। राजकुमार के चेहरे की मुस्कुराहट अब स्थायी हो गयी थी जिससे प्रधान जी को स्पष्ट पता चल गया था कि राजकुमार जल्द ही इस पहेली को हल करने वाला है।

“घबराने की कोई बात नहीं गुलाटी साहिब, निश्चिंत होकर दे दीजिये चैक प्रधान जी को”। इस बार ये स्वर राजू के मुंह से निकला था जिसे सुनकर गुलाटी ने एक फाईल में से एक चैक निकालकर प्रधान जी के सामने रख दिया।

“प्रधान जी, अब मुझे आपको कुछ बताना है, अगर आपकी आज्ञा हो तो”। राजकुमार ने प्रधान जी से विनम्र स्वर में कहा।

“जरूर कहो, पुत्तर जी”। प्रधान जी ने चैक को पकड़ते हुये कहा। उनकी उत्सुकुता बढ़ती जा रही थी।

“अब मैं आपको इस केस की असली कहानी सुनाता हूं, प्रधान जी”। राजकुमार ने भेद भरे स्वर में कहा और फिर शुरू हो गया।

“वास्तव में ये पैसा राजीव के स्वर्गीय पिता ने गुलाटी साहिब से लगभग एक वर्ष पहले अपनी बिटिया के विवाह के समय लिया था, और केवल दो लाख ही लिया था। गुलाटी ने ये पैसा तीन प्रतिशत महीने के ब्याज़ पर इसके पिता को दिया था और बदले में अपने पैसे की सुरक्षा के लिये राजीव के पिता और राजीव दोनों से ही दो-दो खाली चैक और एक एक खाली कागज़ हस्ताक्षर करवा के ले लिया था”। राजकुमार के इन शब्दों ने सारे मामले को एक नया ही मोड़ दे दिया था।

“ये लड़का झूठ बोल रहा ………………………” राजकुमार की बात काटकर बीच में ही बोल पड़ने पर गुलाटी को प्रधान जी के हाथ का संकेत देख कर रुक जाना पड़ा।

“राजकुमार को अपनी बात कहने दीजिये गुलाटी साहिब, और बीच में मत बोलिये। बाद में आपको अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जायेगा। आगे बताओ, पुत्तर जी”। प्रधान जी ने गुलाटी को चुप कराते हुये एक बार फिर राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। गुलाटी के चेहरे पर इस तरह के भाव आ गये जैसे बहुत बेबस हो गया हो।

“जी, प्रधान जी। आठ महीने तक इसे ब्याज़ देते रहने के बाद अचानक राजीव के पिता का हार्ट अटैक के कारण लगभग चार महीने पहले देहांत हो गया। उनके देहांत के पश्चात घर की सारी जिम्मेदारी राजीव पर आ गयी। हालांकि राजीव पिछले दो साल से नौकरी कर रहा है, पर उसकी अकेले की कमाई इतनी नहीं है कि घर भी चला सके और गुलाटी साहिब को ब्याज भी दे सके”। राजकुमार एक बार फिर अपने उसी सधे हुये स्वर में शुरू हो गया था। प्रधान जी जहां उसकी सारी बात रोमांचित होकर सुन रहे थे, वहीं गुलाटी के चेहरे के भाव बिगड़ने शुरू हो गये थे।

“इसलिये जब राजीव ने अपने पिता के अकस्मात देहांत के बाद गुलाटी साहिब को ब्याज छोड़ देने के लिये कहा और असल रकम देने के लिये एक साल का समय मांगा तो इन्होंने गुंडों के माध्यम से इसे तंग करवाया और ये धमकी भी दी कि ब्याज सहित पूरा पैसा न देने पर राजीव की गुंडों से पिटाई करवाने के बाद उस पर 420 का केस डलवा देंगें। इस धमकी के बाद मेरे ही सुझाव पर राजीव ने थाना डिवीजन सात में इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी थी, ताकि ये गुंडों के माध्यम से सच में ही राजीव का कोई नुकसान न कर दे”। राजकुमार ने अपनी बात को विराम दिया और राजीव की ओर देखा जिसने तुरंत एक फाईल राजकुमार के सामने रख दी, जैसे दोनों ने सारा प्लान पहले से ही बना रखा हो।

“अब मैं आपको अपनी कहानी के पक्ष में कुछ ऐसे सुबूत दिखाना चाहता हूं प्रधान जी, जिससे आपको राजीव के निर्दोष होने का साफ साफ पता चल जायेगा”। राजकुमार ने फाईल खोलते हुये तेजी से कुछ निकालना शुरु कर दिया। सबके चेहरे की उत्सुकुता चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी जबकि गुलाटी के चेहरे पर विचित्र दुविधा के भाव आने शुरू हो गये थे।

“इस तस्वीर को ध्यान से देखिये, प्रधान जी। एक साल पहले की ये तस्वीर राजीव की बड़ी बहन के विवाह की है, जिसमें गुलाटी साहिब राजीव के पिता जी और बाकी परिवार के साथ नज़र आ रहे हैं जबकि इनका कहना है कि ये चार महीने से पहले राजकुमार से मिले ही नहीं”। कहने के साथ ही राजकुमार ने एक तस्वीर प्रधान जी के सामने रख दी।

इस तस्वीर को देखते ही प्रधान जी के चेहरे पर क्रोध के भाव आने शुरू हो गये थे। इसमें गुलाटी राजकुमार सहित उसके पूरे परिवार के साथ दिखायी दे रहा था। इससे पहले कि प्रधान जी गुलाटी से कुछ कह पाते, राजकुमार के स्वर ने एक बार फिर उनका ध्यान खींच लिया।

“अब अपने सामने पड़े इस चैक को देखिये प्रधान जी, और साथ में ही बैंक का ये कागज़ भी देखिये”। राजकुमार के कहने पर प्रधान जी ने चैक और बैंक का आधिकारिक कागज़ उठा लिया।

“इस कागज़ में पैन से निशान लगाये हुये चैक नंबर्स को देखिये, प्रधान जी। ये लगभग आठ चैक हैं, ये सारे के सारे चैक पिछले एक साल से लेकर पिछले तीन महीने तक बैंक से कैश हुये हैं और इन सबके नंबर गुलाटी साहिब को दिये हुये नंबरों के बाद वाले हैं”। अपनी बात को पूरा करते हुये राजकुमार ने प्रधान जी की ओर रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ देखा, और इसके साथ ही अपने हाथ में पकड़ीं दो चैक बुक्स में से एक चैक बुक उन्हें पकड़ा दी।

“इसका मतलब राजीव ने ये चैक गुलाटी को एक साल या उससे भी पहले दिया था”। कहते हुये प्रधान जी ने गुलाटी को खा जाने वाली नज़रों से देखा तो उसके प्राण मानों गले में ही फंस गये।

“अब ये एक और सुबूत भी देखिये, प्रधान जी”। राजकुमार की आवाज़ ने एक बार फिर प्रधान जी का ध्यान आकर्षित किया और वो गुलाटी को भूल कर राजकुमार की ओर देखने लगे, जो उसी चैक बुक के पीछे लगे उस पेज की ओर उनका ध्यान खींच रहा था, जिसमें किसी को दिये हुये या कैश करवाये गये चैक्स के नंबर, तिथि और नाम भरे जाते हैं।

“ध्यान दीजिये प्रधान जी, गुलाटी साहिब को दिये गये इस चैक का काऊंटर राजीव के पिता जी की हैंड राईटिंग में भरा गया है, जिसे बड़ी आसानी से साबित किया जा सकता है। अब ये राजीव के पिता जी के बैंक की चैक बुक का यही पेज भी देखिये। वही तिथि, गुलाटी साहिब का नाम और ब्लैंक चैक, दोनों चैक बुक्स में बिल्कुल एक जैसे भरे गये हैं ये रिकार्ड, राजीव के पिता की हैंड राईटिंग में”। एक सैकेंड के लिये सांस ली राजकुमार ने और किसी के कोई प्रतिक्रिया देने से पहले ही एक बार फिर शुरू हो गया।

“वास्तव में गुलाटी साहिब को चैक्स देने के बाद राजीव के पिता जी ने दोनों चैक बुक्स के रिकार्ड में ये चीज़ें अपने स्वभाववश नोट कर दीं थीं। राजीव के पिता के देहांत को चार महीने हो चुके हैं प्रधान जी, और गुलाटी साहिब का कहना है कि ये चैक इन्होनें तीन महीने पहले लिया था। गुलाटी साहिब से पैसा लेने से पहले राजीव के पिता जी को एक हार्ट अटैक आ चुका था जिसके चलते इन्होंने अतिरिक्त सुरक्षा के लिये राजीव से भी चैक्स और खाली कागज़ पर हस्ताक्षर करवा लिये थे”। राजकुमार ने अपनी बात को विराम दिया और मुस्कुरा कर प्रधान जी की ओर देखा जिनके चेहरे पर प्रशंसा और क्रोध, दोनो के भाव ही प्रखर हो चुके थे।

“ये क्या बदमाशी है गुलाटी, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी न्याय सेना को गुमराह करके गलत काम करवाने की? जल्दी से जवाब दो और ध्यान रखना कि इस बार अगर तुमने एक भी झूठ बोला, तो कल का सूरज जेल की सलाखों के पीछे देखोगे, धोखाधड़ी के मामले में”। प्रधान जी के स्वर में सिंह का वो गर्जन शामिल हो गया था जो उनकी आवाज़ में तभी आता था जब किसी की शामत आने वाली होती थी। कमरे में मौजूद हर व्यक्ति की निगाहें केवल और केवल गुलाटी पर ही लगीं हुयीं थी अब, और राजकुमार के चेहरे की मुस्कान और भी गहरी हो गयी थी।

“जी…… वो प्रधान जी…………………गलती हो गयी, माफ कर दीजिये। इस लड़के ने जो भी कहा है वो सच है”। प्रधान जी के सिंह नाद से बुरी तरह भयभीत गुलाटी इस बार चाह कर भी झूठ नहीं बोल पाया था। उसके चेहरे पर हलाल होते हुये बकरे जैसे भाव दिखाई दे रहे थे।

“इसे गलती नहीं, गुस्ताखी कहते हैं गुलाटी, और इसका दंड अवश्य मिलेगा तुम्हे”। सिंह के नाद में अब वो भीष्णता नहीं थी परंतु क्रोध स्पष्ट झलक रहा था।

“माफ कर दीजिये प्रधान जी, आगे से ऐसा कभी नहीं होगा”। लगभग मिमयाते हुये कहा गुलाटी ने।

“कितने ब्याज दे चुके हो इसे पुत्तर जी?” प्रधान जी ने इस बार ये सवाल बड़े ही प्रेम भरे स्वर में राजीव से पूछा था।

“जी, आठ महीने तक पापा इसे हर महीने 6 हज़ार रुपये देते रहे थे। इस हिसाब से 48 हज़ार रुपये बनते हैं प्रधान जी”। जल्दी जल्दी हिसाब लगाते हुये कहा राजीव ने। उसे एकदम से प्रधान जी के इस सवाल की आशा नहीं थी।

“हूं 48 हज़ार……………बाकी बचा 1 लाख 52 हज़ार। कब तक लौटा पाओगे 1 लाख 52 हज़ार गुलाटी को पुत्तर जी, और कैसे लौटा पाओगे?” प्रधान जी के स्वर में पिता का प्रेम भरा पड़ा था।

“जी एक साल में दो बार करके लौटा सकता हूं, प्रधान जी”। कहते हुये राजीव को चाहे प्रधान जी का हिसाब समझ आया हो न हो पर राजकुमार सब समझ गया था, और उसके चेहरे पर प्रधान जी के लिये प्रशंसा के भाव आ गये थे।

“अब सुनो गुलाटी, राजीव के पिता तुम्हारे दो लाख में से 48 हज़ार रुपये दे चुके हैं। बचे हुये 1 लाख 52 हज़ार रुपये राजीव तुम्हें डेढ़ साल में 6-6 महीने के बाद बराबर किस्तों में तीन बार करके देगा। पहली किस्त आज से 6 महीने बाद दी जायेगी और तुम्हें इसके और इसके पिता के हस्ताक्षर किये हुये सारे कागज़ात अभी के अभी वापिस करने होंगे”। प्रधान जी ने गुलाटी की ओर क्रोध से देखते हुये अपना फैसला सुनाया।

“जी………जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी”। हलाल हो रहे बकरे की आवाज़ में मिमयाते हुये कहा गुलाटी ने। उसे पता था कि अब ब्याज के बारे में बात करने पर प्रधान जी उसका दंड और भी बढ़ा देंगे। सबके चेहरे पर प्रधान जी के इस इंसाफ को देखकर प्रशंसा और आदर के भाव थे। राजीव इस प्रकार प्रधान जी की ओर देख रहा हो जैसे साक्षात भगवान के दर्शन कर रहा हो।

“डॉक्टर साहिब, आप सब लोगों को लेकर बाहर वाले केबिन में जाकर ये फैसला लिखवा लीजिये। फैसले पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर करवा लीजिये और गुलाटी से राजीव के सारे कागज़ात लेकर इसे दे दीजिये”। प्रधान जी ने पुनीत की ओर देखते हुये भेदभरी मुस्कान के साथ कहा तो पुनीत समझ गया कि प्रधान जी राजकुमार से अकेले में बात करना चाहते हैं। उसने तुरंत सिर हिला कर सहमति दी और उठकर खड़ा हो गया।

“प्रधान जी, मैं आपसे क्षमा चाहता हूं कि मैने गुलाटी के मामले का सत्य जाने बिना ही आपसे इसके काम की सिफारिश कर दी”। राजू के इस स्वर ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उसे पता था कि प्रधान जी को अन्यायी का साथ देने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं थे।

“इसमे तुम्हारी कोई गलती नहीं है, पुत्तर जी। इस गुलाटी के पास सुबूत ही इतने थे कि एक बार के लिये तो हम भी धोखा खा गये थे। पूरा घाघ है ये, हमारे हाथों एक बड़ा अन्याय करवाने वाला था”। प्रधान जी ने एक बार फिर खा जाने वाली नज़रों से गुलाटी की ओर देखा तो उसने जल्दी से बाहर के केबिन में जाना ही मुनासिब समझा।

“प्रधान जी, मैं आपका बहुत शुक्रगुज़ार हूं। आपने न केवल मुझे इतना समय लेकर दिया है गुलाटी के पैसे लौटाने का, बल्कि 48 हज़ार रुपये भी छुड़वा दिये। इससे मुझे बहुत मदद मिलेगी”। राजीव ने कृतज्ञ भाव से प्रधान जी की ओर देखते हुये विनम्र स्वर में कहा। राजकुमार के चेहरे पर भी लगभग राजीव जैसे ही भाव थे।

“शुक्रिया की कोई बात नहीं है, पुत्तर जी। बहुत परेशानी झेलनी पड़ी है तुम्हें इस मामले में, और इस परेशानी का एक कारण हम भी थे। चाहे अनजाने में ही सही, पर बहुत बड़ा अन्याय करने जा रहे थे हम तुम्हारे साथ। ये उसी का पश्चाताप है”। प्रधान जी ने स्नेह भरे स्वर में राजीव की ओर देखते हुये बहुत बड़ी बात कह दी थी।

राजकुमार प्रधान जी के चरित्र से अधिक से अधिक प्रभावित होता जा रहा था, उनकी हर एक विशेषता देखकर। कितना प्रभावशाली आदमी और कितनी सहजता से मान लिया था कि उनके हाथों अन्याय होने जा रहा था। प्रधान जी की ये बात सुनकर राजकुमार के मन में उनके लिये अपार श्रद्दा उमड़ आयी थी।

“अब जाकर फैसला लिखवा लो पुत्तर जी, और भविष्य में कभी किसी तरह की आवश्यकता पड़े तो बेझिझक चले आना हमारे पास”। प्रधान जी के इतना कहने पर राजीव और राजकुमार ने प्रधान जी को अभिवादन किया और सब लोग बाहर की ओर चल दिये।

“पुत्तर जी, आप यहीं रुक जाओ। मुझे आपसे कुछ बात करनी है”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। उनके स्वर में फिर वही पिता वाला प्रेम उमड़ आया था।

“जैसा आप कहें, प्रधान जी”। राजकुमार ने आदरपूर्वक कहा और दोबारा अपनी कुर्सी पर बैठ गया। बाकी सब लोग एक एक करके बाहर के केबिन में चले गये और पुनीत ने जाते जाते बीच का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।

“कहां से लेकर आये इतनी प्रतिभा पुत्तर जी, इतनी छोटी उम्र में। इतनी सूझबूझ के साथ हल किया तुमने इस मामले को, कि गुलाटी ने अपने मुंह से ही मान लिया अपनी गलती को”। प्रधान जी ने प्रशंसा भरे स्वर में कहा।

“जी, वो शुरू से ही मुझे मुश्किल चीज़ों की तह में जाने का शौक है, शायद इसीलिये……”। राजकुमार ने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी थी।

“इतनी प्रतिभा को रोज़मर्रा के कामों में व्यर्थ क्यों गवां रहे हो, पुत्तर जी? हमारे संगठन में शामिल हो जाओ और अपनी प्रतिभा से अधिक से अधिक लोगों को लाभ लेने दो। क्या कहते हो, पुत्तर जी?” प्रधान जी ने अपनी मंशा जाहिर करते हुये कहा। उनके चेहरे के भाव साफ बता रहे थे कि राजकुमार की प्रतिक्रिया की तीव्र प्रतीक्षा थी उन्हें।

“जी ये तो मेरा सौभाग्य होगा, अगर मैं आपके जैसे महान व्यक्ति के साथ काम कर पाऊं। मैने आज तक आपके जैसा अच्छा इंसान नहीं देखा अपने जीवन में। मैं जितना भी हो सकेगा, उतना समय आपकी सेवा में लगाना चाहूंगा”। राजकुमार ने अपने मन के भाव एकदम स्पष्ट कर दिये थे।

“अरे वाह, ये तो बहुत अच्छी बात है। तुम्हारे जैसे प्रतिभाशाली युवाओं की बहुत आवश्यकता है इस संगठन को, पुत्तर जी। मैं चाहता हूं कि तुम संगठन में महासचिव का पद संभालो, जैसे अपने डॉक्टर साहिब हैं”। प्रधान जी ने प्रसन्न होते हुये कहा।

“ये तो बहुत बड़ा दायित्व है, प्रधान जी”। राजकुमार ने थोड़े उलझन भरे स्वर में कहा। एकदम से इतना बड़ा पद मिलने की बात उसे हज़म नहीं हो रही थी शायद।

“तुमने योग्यता सिद्ध की है इस पद के लिये पुत्तर जी, और न्याय सेना का नियम है कि पद देते समय आयु या सेवा के समय की तुलना में योग्यता को अधिक महत्व दिया जाता है। योग्य व्यक्ति ही पद के साथ उचित इंसाफ कर पाता है पुत्तर जी। इसलिए शंका छोड़ो और स्वीकार करो इस दायित्व को। डॉक्टर साहिब की भी यही राय है कि आपको संगठन में महासचिव का पद दिया जाये”। प्रधान जी के इन शब्दों के साथ ही राजकुमार समझ गया था कि उसे संगठन में शामिल करने का निर्णय उसके आने से पहले ही ले लिया गया था।

“जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी, मैं पूरा प्रयास करूंगा आपके विश्वास पर खरा उतरने का”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में कहा।

“तो फिर ठीक है, मैं अभी आपके महासचिव बनने के प्रस्ताव पर आधिकारिक मुहर लगा देता हूं। डॉक्टर साहिब…………………” प्रधान जी ने जोर से पुनीत को आवाज़ लगायी।

“जी, प्रधान जी”। लगभग पांच सैकेड़ के अंदर ही पुनीत कमरे के दरवाज़े पर नज़र आया, जैसे प्रधान जी की इसी आवाज़ की प्रतिक्षा कर रहा हो।

“राजकुमार आज से न्याय सेना के महासचिव होंगे, डॉक्टर साहिब। आप इसका आधिकारक पत्र बनाईये, मैं हस्ताक्षर कर देता हूं”। प्रधान जी ने पुनीत की ओर देखते हुये प्रसन्नता से कहा।

“अरे वाह, ये तो बड़ी अच्छी खबर है प्रधान जी। मैं बस बाहर का ये काम पांच मिनट में निपटा कर फौरन बना देता हूं ये पत्र। न्याय सेना का महासचिव बनने की बहुत बहुत बधाई, राजकुमार। बहुत कुछ सीखने को मिलेगा आपको, प्रधान जी के साथ काम करके। इनके साथ रहते रहते मुझमें और न्याय सेना के अन्य कई अधिकारियों में ऐसी अच्छाईयां आ गयीं है, जो या तो पहले थीं हीं नहीं या फिर दबी हुयीं थी”। पुनीत ने प्रधान जी की प्रशंसा करते हुये कहा।

“जी पुनीत जी, प्रधान जी की बहुत सी अच्छाईयां तो मैं इन दो दिनों में ही देख चुका हूं। इसीलिये मैं इनकी छत्रछाया में रहकर काम करना चाहता हूं ताकि इनसे बहुत कुछ सीख सकूं”। राजकुमार ने भी पुनीत की बात का समर्थन किया। उसके चेहरे पर प्रधान जी के लिये बहुत आदर और श्रद्धा के भाव थे।

“बस तो फिर कल सुबह से ही आ जाओ, पुत्तर जी। न्याय सेना का कार्यालय दस बजे शुरू हो जाता है। कार चलानी आती है तुम्हें?” प्रधान जी ने पूछते हुये प्रश्नात्मक दृष्टि से राजकुमार की ओर देखा।

“जी प्रधान जी, अच्छी तरह से आती है”। राजकुमार ने तत्परता के साथ जवाब दिया।

“अरे वाह, ये तो और भी अच्छी बात है”। प्रधान जी की इस बात पर पुनीत मुस्कुरा दिया क्योंकि वो जानता था कि प्रधान जी को कार ड्राईव करना पसंद नहीं था और सदा न्याय सेना का कोई पदाधिकारी ही उनके साथ रहता था कार चलाने के लिये।

लगभग आधे घंटे के बाद राजकुमार और राजीव न्याय सेना के कार्यालय से बाहर निकल कर पार्किंग में खड़े स्कूटर की ओर जा रहे थे।

“यार, तूने तो कमाल कर दिया आज। अपना मामला भी हल हो गया इतने अच्छे से, और उपर से इतना बड़ा पद भी मिल गया तुझे इतने अच्छे संगठन में”। राजीव की आवाज़ से उसकी खुशी साफ झलक रही थी। प्रधान जी के न्याय ने उसे बहुत प्रभावित किया था और यही प्रभाव राजकुमार पर भी दिखाई दे रहा था।

“हां राजीव, शिव कृपा से ये बहुत अच्छा मौका मिला है मुझे कुछ करने का और बहुत कुछ सीखने का। बहुत कम लोगों को मिलता है ऐसा मौका”। राजकुमार ने प्रसन्न स्वर में राजीव की ओर देखते हुये कहा।

 

हिमांशु शंगारी