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“लेकिन रामपाल भाई, जब आप जान चुके हैं कि राजीव का कोई कुसूर नहीं है तो फिर पुलिस इसे बार बार तंग क्यों कर रही है?” अपने सामने बैठे पुलिस कर्मचारी से कहा राजकुमार ने। वो इस समय किसी पुलिस थाने में बैठा था।
राजकुमार की उम्र इस समय लगभग 23-24 वर्ष के करीब थी और अपने एक मित्र राजीव के साथ वो जालंधर शहर के थाना डिवीज़न नंबर सात में बैठा हुआ था। उसके सामने ही बैठा हुआ था रामपाल नाम का वह व्यक्ति जो थाने का मुंशी था।
“तुम्हारी बात ठीक है राजकुमार, लेकिन मेरे ये समझ लेने से कुछ नहीं होता कि तुम्हारा दोस्त निर्दोष है। थाना प्रभारी का बहुत दबाव है हमारे उपर, इस मामले में राजीव के खिलाफ केस दर्ज करने के लिये। वो तो तुम्हारे दखल के बाद मैने इस केस की जांच करने वाले अतिरिक्त सब-इंस्पैक्टर से निवेदन करके इसे कुछ समय के लिये ढ़ीला करवा दिया ताकि तुम्हें इस केस की गंभीरता के बारे में बता सकूं”। रामपाल ने राजकुमार की ओर देखते हुये गंभीर स्वर में कहा।
“अगर आप कहें तो मैं थाना प्रभारी से मुलाकात करके उन्हें सारी सच्चाई बताऊं? सच जानने के बाद तो वो अवश्य ही हमारा साथ देंगें”। राजकुमार ने रामपाल की ओर दिशा निर्देश मांगने वाले अंदाज़ में देखते हुये कहा।
“उससे भी कोई विशेष लाभ नहीं होगा राजकुमार, क्योंकि इस मामले में उनके उपर भी बहुत दबाव है। इसलिये उन्होंने हमें सीधे शब्दों में निर्देश दिया है कि या तो राजीव दूसरी पार्टी के पैसे वापिस कर दे, नहीं तो उसके खिलाफ आई पी सी की धारा 420 के तहत केस दर्ज करके उसे गिरफ्तार कर लिया जाये”। रामपाल के स्वर में गंभीरता बनी हुयी थी।
“ऐसे कैसे दे सकता है ये पांच लाख रुपये दूसरी पार्टी को, जबकि वास्तविकता ये है कि इसे उनका केवल दो लाख रुपया देना है। और वो दो लाख रुपया भी दूसरी पार्टी ने इसे अपनी सहमति के साथ दिया था, न कि इसने कोई फ्रॉड करके उनसे लिया है। तो फिर 420 का मामला कैसे बनता है, रामपाल भाई?” राजकुमार ने अपने साथ बैठे राजीव के हाथ को इस तरह दबाते हुये कहा जैसे उसे आश्वस्त कर रहा हो कि कुछ नहीं होगा।
“ऐसा तो सदा से होता ही आया है राजकुमार, और ऐसा शायद भविष्य में भी होता रहेगा। लड़ाई कर रहे दो पक्षों में से जब एक पक्ष बहुत अधिक प्रभावशाली हो तो कानून अक्सर उसके हक में जाकर बैठ जाता है। फिर चाहे वो पक्ष ठीक हो या ग़लत। ताकत और प्रभाव का ये खेल तो सदियों से चलता आ रहा है इस संसार में”। रामपाल ने राजकुमार को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।
“तो फिर कानून कहां है, इंसाफ कहां है और इन सबसे भी उपर, पुलिस कहां है रामपाल भाई?” राजकुमार के शब्दों में तीखा व्यंग्य था और उसकी दृष्टि पूरी तरह से रामपाल के चेहरे पर जम चुकी थी, जैसे उसके चेहरे के भावों को ठीक तरीके से पढ़ना चाहता हो।
“मैं तुम्हारी बात का मतलब समझ रहा हूं राजकुमार, लेकिन पुलिस की भी अपनी मजबूरियां हैं। हमारे उपर बहुत दबाव रहता है कुछ मामलों में, और इस दबाव के विपरीत जाने की स्थिति में नुकसान हमें उठाना पड़ता है। इसलिये ऐसे मामलों में अक्सर पुलिस इंसाफ नहीं कर पाती”। रामपाल ने पुलिस या शासन व्यवस्था को बचाने की कोई भी कोशिश न करते हुये सीधे सीधे सिस्टम की इस कमी को स्वीकार कर लिया था।
“तो ऐसे मामलों में फिर पीड़ित पक्ष कहां जाये, रामपाल भाई? क्या प्रभावशाली लोगों के विपक्ष में होने पर आम आदमी के लिये ठीक होने के बाद भी कोई इंसाफ नहीं है इस देश में? ये कैसा लोकतंत्र है रामपाल भाई, ये तो फिर राजतंत्र हुआ, जो राज करता है, जिसका प्रभाव है, उसका गलत भी ठीक। और आम आदमी का ठीक भी गलत”। राजकुमार के स्वर की उंचाई और उसके अंदाज़ की बगावत बढ़ती ही जा रही थी।
“तुम्हारी ये बात भी ठीक ही है, राजकुमार। प्रभावशाली आदमी के विपक्ष में होने पर आम आदमी के लिये अक्सर इस देश में कोई विशेष इंसाफ नहीं होता और उसे बहुत कुछ झेलना पड़ता है। पर शायद तुम्हारे दोस्त के केस में ऐसा न हो। एक रास्ता नज़र आता है मुझे”। रामपाल ने जैसे कुछ सोचते हुये कहा।
“क्या है वो रास्ता, रामपाल भाई? आप शीघ्र बताईये ताकि हम उस रास्ते पर चलकर इस मामले का उचित हल निकाल पायें”। उत्सुकुता भरे स्वर में पूछा राजकुमार ने।
“इस मामले में थाना प्रभारी पर प्रधान जी का दबाव है। मेरे सुझाव से आपको एक बार जाकर सीधे प्रधान जी से ही मुलाकात करनी चाहिये इस मामले में। तभी इस समस्या का कोई हल संभव है”। रामपाल ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।
“प्रधान जी, ये कौन हैं, और ये कैसा नाम हुआ रामपाल भाई? और फिर वो जो भी हैं, हम उनके पास क्यों जायें? जो व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से एक गलत आदमी का साथ दे रहा है, वो भला हमारी बात क्यों सुनेगा? इससे अच्छा तो हम शहर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास चले जाते हैं और उनसे मिलकर सारी बात बताते हैं। शायद हमारी बात बन जाये?” राजकुमार ने एक साथ कई प्रश्न उछाल दिये थे रामपाल की ओर, जिसका ये सुझाव शायद उसे पसंद नहीं आया था। उसके स्वर में एक बार फिर तीखापन और बगावत आ चुकी थी।
“कोई विशेष लाभ नहीं होगा आपको एस एस पी साहिब के पास जाने से भी। इस मामले में प्रधान जी का नाम आते ही उनका दिशा निर्देश होगा कि इस मामले को प्रधान जी के साथ मिलकर आपसी सहमति से सुलझा लिया जाये”। रामपाल ने राजकुमार को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।
“ऐसा कौन सा प्रभावशाली इंसान है ये प्रधान जी, जिसके मामले में एस एस पी साहिब भी दखल नहीं देना चाहते, जिससे आपके थाना प्रभारी भी डरते हैं और जिसका नाम तक नहीं सुना मैने आज तक? क्या सत्ताधारी पार्टी का कोई बहुत बड़ा नेता है ये प्रधान जी?” राजकुमार के शब्दों में प्रधान जी के लिये कोई विशेष आदर नहीं था जैसे वो उन्हें कोई विलेन समझ रहा हो।
“पुलिस डरती नहीं है प्रधान जी से राजकुमार, बल्कि बहुत आदर करती है उनका। और इस आदर के पूरी तरह से हकदार भी हैं वो। किसी राजनैतिक पार्टी से कोई लेना देना नहीं उनका, और एक सच्चे समाज सेवक हैं, प्रधान जी। शहर में पिछले बीस सालों में जितना काम सत्ता में होने के बाद भी राजनेताओं नें नहीं किया, उससे कहीं अधिक प्रधान जी ने बिना किसी सत्ता के कर दिखाया है”। रामपाल के स्वर में प्रधान जी के लिये अपार आदर झलक आया था और उसने अपनी बात को जारी रखते हुये कहा।
“उनके जैसा सच्चा समाज सेवक मैने अपने जीवन में आज तक नहीं देखा। सदा सच का साथ देते हैं, और गरीबों के मसीहा के नाम से जाने जाते हैं, प्रधान जी। उनका नाम वैसे तो वरुण शर्मा है, किन्तु प्यार और आदर से सारा शहर उन्हें प्रधान जी ही कहता है। इस शहर में पीड़ितों के पक्ष में पुलिस, प्रशासन और सत्ता से लड़कर जितने कारनामें उन्होनें अंजाम दिये हैं, साधारण आदमी तो ऐसे साहस की कल्पना तक नहीं कर सकता”। रामपाल के स्वर में प्रधान जी के लिये आदर निरंतर बना हुआ था और वो खुलकर प्रशंसा कर रहा था, प्रधान जी नाम के इस इंसान की।
“अगर इतने ही सच्चे इंसान हैं तुम्हारे प्रधान जी, रामपाल भाई, तो फिर इस मामले में अन्याय करवाने पर क्यों तुले हुये हैं?” राजकुमार के स्वर का व्यंग्य बदस्तूर बना हुआ था, हालांकि उसकी आवाज़ अब धीमी हो गयी थी और उसके चेहरे पर उत्सुकुता के भाव भी आ गये थे। शायद प्रधान जी के व्यक्तित्व के बखान का प्रभाव था ये।
“यही बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही, और इसीलिये तो मैने आपको प्रधान जी से मुलाकात करने का सुझाव दिया था। मेरे मुताबिक बस एक ही कारण हो सकता है उनका इस मामले में पुलिस पर आपके दोस्त के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये दबाव बनाने का। और वो कारण है ये है कि उनके किसी करीबी ने उन्हें इस बात से आश्वस्त कर दिया है कि उनका पक्ष ठीक है और आपके दोस्त का पक्ष गलत”। रामपाल ने राजकुमार को समझाने वाले भाव में कहा।
“ओह, तो आपका अर्थ है कि इस मामले में प्रधान जी जानबूझकर गलत नहीं कर रहे, बल्कि ये सब उनसे अंजाने में हो रहा है। इसीलिये आपने हमें उनसे मिलकर सच बताने की बात कही थी, ताकि वो इस मामले से पीछे हट जायें”। राजकुमार जैसे अब रामपाल की बात समझ गया था और उसके स्वर में अब प्रधान जी के लिये कुछ आदर भी आ गया था।
“अब तुम बिल्कुल ठीक समझ गये हो, राजकुमार। इसीलिये मैने तुम्हें प्रधान जी से मुलाकात करने के लिये कहा था। रामपाल ने मुस्कुराते हुये कहा।
“पर क्या आपको वास्तव में लगता है कि इस मामले का सच जानने के बाद वो इस केस से पीछे हट जायेंगे और पुलिस को अपना काम निष्पक्ष रूप से करने देंगें? इन बड़े लोगों का अहंकार भी तो बहुत बड़ा होता है, रामपाल भाई। एक बार किसी केस में अपना हाथ लगा दिया तो फिर ठीक हो या ग़लत, अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना कर बैठ जाते हैं”। राजकुमार के मन में एक बार फिर शंका ने जन्म ले लिया था।
“लगता है नहीं राजकुमार, बल्कि पूरा विश्वास है मुझे कि पूरी बात समझ आ जाने पर प्रधान जी इस मामले से पीछे हट जायेंगे। साक्षात भगवान संकटमोचक की अपार कृपा है उनपर। अहंकार तो उनके आस पास भी नहीं है, बहुत विनम्र इंसान हैं हमारे प्रधान जी। अपनी गलती पता चलने पर एकदम से उसे मान कर सुधार लेते हैं”। रामपाल ने राजकुमार की शंका का निवारण करते हुये कहा।
“अगर वास्तव में ऐसा है, तो फिर ये प्रधान जी अवश्य ही कोई महान व्यक्ति हैं, जो इतना प्रभाव होते हुये भी इतने विनम्र हैं और अहंकार से परे हैं। ऐसे व्यक्ति से तो मैं एकबार अवश्य मिलना चाहूंगा और देखना चाहूंगा कि जितनी प्रशंसा आपने उनकी की है, क्या वास्तव में इतने अच्छे हैं, आपके प्रधान जी?” राजकुमार ने अपने अंतिम शब्द बोलते हुये रामपाल की ओर एक भेद भरी मुस्कुराहट उछाल दी। उसके स्वर में अब प्रधान जी के लिये पहले से भी अधिक आदर आ गया था, किन्तु उनके चरित्र को लेकर शंका अभी भी बनी हुयी थी।
“मैने तो उनकी बहुत कम प्रशंसा की है राजकुमार, प्रधान जी तो इससे भी बहुत आगे पहुंचे हुये इंसान हैं। अगर आपने उन्हें इस बात का विश्वास दिला दिया कि आपका दोस्त इस मामले में निर्दोष है, तो न केवल वो इस मामले में दूसरे पक्ष की सहायता करने से मना कर देंगें, बल्कि…………”। अपनी बात को जानबूझकर अधूरा छोड़ दिया था रामपाल ने, जो राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुरा रहा था।
“बल्कि क्या, रामपाल भाई? जल्दी बताईये न”। रामपाल के अनुमान अनुसार ही राजकुमार की उत्सुकुता एकदम से बढ़ गयी थी।
“बल्कि वो अपनी पूरी ताकत लगा देंगें राजीव को इंसाफ दिलाने के लिये। ऐसे हैं हमारे प्रधान जी। सत्य का पता चलते ही एक पल में पक्ष बदल कर आपकी ओर आ जायेंगे वो”। रामपाल ने मुस्कुराते हुये अपनी बात पूरी की।
“फिर तो जल्दी बताईये रामपाल भाई, कि हम उनसे कब और कहां मिल सकते हैं? अगर वो वास्तव में ही इतने महान हैं तो फिर अवश्य ही दर्शन करना चाहूंगा मैं उनके”। राजकुमार के स्वर में आदर और उत्सुकुता का मिश्रण था।
“न्याय सेना के नाम से एक संगंठन चलाते हैं प्रधान जी, और इस संगठन का मुख्य कार्यालय मिलाप चौक क्षेत्र में है। मैं आपको उनके कार्यालय का फोन नंबर दे देता हूं, आप मिलने का समय लेकर चले जाईये”। कहते हुये रामपाल ने अपने मोबाइल फोन में से कोई नंबर ढ़ूंढ़ना शुरू कर दिया।
“ये बिल्कुल ठीक रहेगा, रामपाल भाई”। अपनी बात पूरी करते ही राजकुमार ने अपने मोबाइल पर वो नंबर सेव करना शुरू कर दिया जो रामपाल बता रहा था।
“बस आपसे एक और निवेदन है, रामपाल भाई। जब तक इस मामले में हमारी मुलाकात प्रधान जी से न हो जाये, आप कृप्या राजीव के खिलाफ कोई केस दर्ज मत होने दीजियेगा”। राजकुमार ने बड़ी आशा भरी निगाहों से रामपाल की ओर देखते हुये बहुत ही विनम्र स्वर में कहा।
“बहुत देर तक तो नहीं, किन्तु एक या दो दिन तो लटका ही सकते हैं हम इस मामले को। इतने समय में आपको ये काम कर लेना होगा और काम होते ही जो भी नतीजा निकले, फौरन मुझे बता दीजियेगा। हमें भी थाना प्रभारी को जवाब देना है इस मामले में, जल्द से जल्द”। रामपाल ने आश्वासन देते हुये कहा।
“दो दिन तो बहुत हैं हमारे लिये, रामपाल भाई। हम कल का ही कोई समय निर्धारत करके मुलाकात कर लेंगें प्रधान जी से और कल शाम तक आपको सारी स्थिति से अवगत करवा दूंगा मैं। अब चलते हैं, आपका बहुत आभारी रहूंगा मैं, इस मामले में हमें सही दिशा दिखाने के लिये”। कहते हुये राजकुमार और राजीव ने रामपाल से विदा ली।
“लेकिन राजकुमार, तुमने प्रधान जी से कल मिलने की बात क्यों कही? आज का अभी आधे से अधिक दिन पड़ा है, हम आज भी तो मिलने का समय मांग सकते हैं उनसे?” लगभग पांच मिनट के बाद राजीव ने राजकुमार से पूछा। दोनों स्कूटर पर बैठ कर एक दिशा की ओर जा रहे थे।
“वो इसलिये राजीव, कि प्रधान जी से मिलने से पहले मैं आज रात तक उनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर लेना चाहता हूं। तुम्हें तो पता ही है कि किसी के साथ आमने सामने होने से पहले उसके स्वभाव, ताकत और कमज़ोरी का अधिक से अधिक अंदाज़ा लगा लेना मेरी आदत है। इससे बहुत लाभ मिलता है”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।
“अरे हां, मैं तो भूल ही गया था कि किसी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाये बिना उसका सामना करना तुम्हारी आदत नहीं। आखिर ऐसे ही तो सब दोस्त तुम्हें इंटनैशनल जासूस नहीं कहते थे कॉलेज में”। राजीव ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।
“हा हा हा………ये बात भी खूब याद दिलायी। कॉलेज के दिन याद करवा दिये तूने, क्या क्या कारनामे करते थे हम”। राजकुमार ने हंसते हुये कहा।
“हम नहीं, कारनामे तो तू ही करता था, हमारा तो बस नाम लग जाता था तेरी शरारतों में तेरा दोस्त होने के कारण। बहुत बार सज़ा मिली है टीचर्स से तेरा दोस्त होने के कारण”। राजीव ने एक बार फिर राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।
“दोस्ती की है, निभानी तो पड़ेगी ही मेरे राजू प्यारे”। राजकुमार के इतना कहते ही दोनों ठहाका लगा कर हंस दिये।
“एक जरूरी बात है राजीव, इतना ध्यान रखना कि अपनी आपा खोकर कुछ भी बोल देने की आदत पर वैसे है काबू रखना है तुझे इस मुलाकात के दौरान, जैसे आज रखा है”। एक मिनट के बाद जैसे कुछ सोचते हुये कहा राजकुमार ने।
“ठीक है ठीक है, मैं समझ गया पिता जी”। राजीव ने राजकुमार को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा और एक बार फिर दोनों हंस दिये।
स्कूटर तेजी से अपनी मंज़िल की ओर भागा जा रहा था और स्कूटर की गति से भी तेज़ गति से भाग रहा था राजकुमार का दिमाग, जो इस मामले के साथ और प्रधान जी के साथ जुड़े तथ्यों का विशलेषण कर रहा था।
हिमांशु शंगारी